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युवा रचनाकार विक्रांत राजलीवाल

 “हिम्मत करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता
वह कौन सा उक़दा है जो हो नहीं सकता
तदबीर अगर चाहे तो तक़दीर बदल जाए
बिगड़े हुए हालात की तस्वीर बदल जाए।”
सच में हिम्मत ही वह ढाल है जो हमें हर दुख,कठिनाई या बुराई से निकाल लेती है लेकिन फिर भी हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो इतनी जल्दी हिम्मत हार जाते हैं कि उन्हें जीवन के छोटे-छोटे से भी जो सामान्य दुख हैं वह भी बहुत बड़े लगते हैं और वे सोचते हैं कि उनके दुख की तो कोई सीमा ही नहीं है।इस प्रकार के लोग हर दिन टेंशन और अवसाद में जाने का बहाना ढूंढ ही लेते हैं।ऐसे लोगों को हमारे आज के पॉडकास्ट के कार्यक्रम के जो मेहमान हैं उनके जीवन से अवश्य कुछ सीख मिलेगी।जिन्होंने जीवन के संघर्षों का हिम्मत से सामना किया और विपरीत परिस्थितियों को भी अपने हक़ में कर लिया।
आज जिनकी मैं बात कर रही हूँ, वे एक ऐसे युवा रचनाकार हैं जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।उपन्यास, ग़ज़ल, नज़्म और कविताएं तो वे लिखते ही हैं साथ ही काफी समय से नारकोटिक्स एनोनिमस कार्यक्रम के साथ भी जुड़े हुए हैं।आप हैं विक्रांत राजलीवाल जी जिन्होंने दिल्ली से ही शिक्षा प्राप्त की और अब वही उनकी कर्मभूमि है।
आपकी प्रथम काव्य नज़्म की पुस्तक ‘एहसास’ वर्ष 2016 में प्रकाशित हो चुकी है।2017 से आपने ब्लॉग लेखन भी आरम्भ किया।तब से लेकर अब तक वे सैकड़ों ग़ज़ल ,नज़्म ,कविताएं आदि लिख चुके हैं और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर लाइव सुना भी चुके हैं।
उनके दो उपन्यास ऑनलाइन प्रकाशित हो चुके हैं।अभी कुछ दिन पहले Poetic Atma जो एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का साहित्यिक मंच है उनके साथ भी आपने लाइव कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।
विक्रांत राजलीवाल जी का व्यक्तित्व आज के किशोर और युवा लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हो सकता है क्योंकि आपने स्वयं स्वीकार किया कि बचपन और किशोर वय में संगत के असर से आपको भी नशे की लत लग गयी थी जिसे न सिर्फ आपने त्यागा वरन उसके बाद ऐसी लेखनी उठाई कि हज़ारों युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए।
2003 से आप नारकोटिक्स एनोनिमस के कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं और सैकड़ों व्यक्तियों की नशा मुक्ति एवं जीवन सुधार से संबंधित कॉउंसलिंग कर चुके हैं।नारकोटिक्स एनोनिमस कार्यक्रम के अपने अब तक के अनुभवों पर बहुत से आर्टिकल अपने ब्लॉग पर लिख चुके हैं और इन्हें लाइव सुना भी चुके हैं।
तो निस्संदेह ऐसे व्यक्तित्व अपने अपने क्षेत्र में मील का पत्थर होते हैं बस उनकी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके यही प्रयास होना चाहिए और मैं यही कर रही हूं।
विक्रांत जी की रचना – ‘एक एहसास – ज़िंदगी’
ज़िंदगी की हर एक कसौटियों पर,  हम ख़ुद को परखते हुए चलते गए।

हर हालात ए ज़िंदगी से जूझते हुए, हम खुद को हर हालात ए ज़िंदगी के मुताबिक ढालते गए।।

सकूँ सांसो का ज़िंदगी मे कभी पा ना सके, हम ज़िंदगी को ठोकरों पर ठोकर लगाते गए।

बचपन गुज़रा, जवानी भी ढल सी गई जो एक दम, हम ख़्वाबों को जिंदगी के पूरा करने में ज़िंदगी को बिताते गए।।

एहसास ख़ुद का हमें आज भी डराता है, हम हर एहसास को ज़िंदगी से अपने मिटाते गए।

हर लम्हा एक तन्हाई सी मालूम होती है, हम अपनों में खुद को हर मरतबा तन्हा पाते गए।।

याद आती है आज भी बचपन की वो गलियां, उम्र गुजरती गई, सितम ज़िंदगी का हम सहते गए।

उम्र गुजार दी हमनें सलीका ज़िंदगी का सीखते हुए, हम आज भी सलीका ज़िंदगी का जो सीख ना सके।।

हर हक़ीक़त को ज़िंदगी की अपने सीने से लगाए, हर हक़ीक़त को ज़िंदगी की हम ज़िंदगी से झुठलाते गए।

इश्क़ है हमें आज भी जिंदगी से बेइंतेहा, ज़हर सांसो से जिंदगी का पीते हुए हम जो मुस्कुराते गए।।

उनकी एक और ग़ज़ल जो उन्होंने वैश्विक महामारी कोरोना को ध्यान में रखकर लिखी,उसे मैं यहां दे रही हूं।

” रहे महफूज़ यह दुनिया ”

रहे महफूज़ ये दुनिया, घरों में रोक लो दुनिया, बचा लो खुद को कोरोना से, रहे आबाद ये दुनिया।

घिर आई घटा है जो, जहरीली जहरीली, दम घोट देगी वो, धड़कने रोक देगी वो, हो कर दूर दुनिया से, बचा लो ये दुनिया।।

वो खुली हवा, वो आज़ादी, जल्द ही लौट आएगी, देखना एक रोज़ जीत जाएगी, ये रुकी हुई दुनिया।

यकीं खुद पर रहे कायम, हँसी-मुस्कुराहट से होगी रौशन, हरा कोरोना को, ये हसीं दुनिया।।

ये कैसी हो चली दुनिया, संक्रमण से कोरोना के, अब डरने लगी ये दुनिया।

सांस लेते, कहीं जाते, छूने से भी देखो, अब डरने लगी ये दुनिया।।

ये कैसी अनहोनी आ गई, यह सोच सोच, अब मरने लगी ये दुनिया।

कहीं भूखे मरते गरीब, कहीं जान ख़तरे में, कहीं दूर अपनो से, फंसी हुई ये दुनिया।।

ये दुनिया है जो ये दुनिया, हरा हर संक्रमण को, देखना जी जाएगी ये दुनिया।

एहसास मोहब्ब्त का, रहे कायम हमेशा, साथ अपनो से, महक जाएगी ये दुनिया।।

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