आज के समय में यह कोई नई जानकारी नहीं है कि इन्टरनेट पर हिंदी का लिखने और पढ़ने में भरपूर उपयोग हो रहा है।मगर कुछ रिपोर्ट अभी हाल के समय में ऐसी आईं हैं कि जिनके आकड़े चौकाने वाले हैं।अभी तक इस क्षेत्र में अंग्रेजी का ही वर्चस्व था और ऐसे में यदि यह सुनने को मिले कि इन्टरनेट की दुनिया में हिंदी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पीछे छोड़ दिया है तो यह अत्यधिक प्रसन्नता की बात होगी।यह स्वाभाविक है कि जैसे-जैसे इन्टरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा वैसे-वैसे हिंदी और भारतीय भाषाओँ की दुनिया का भी विस्तार होगा।आंकड़े बताते हैं कि गैर हिंदी भाषी इलाकों में भी लगभग सोलह-सत्रह प्रतिशत लोग हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं।जिन इलाकों में हिंदी नहीं बोली जाती वहां भी लोग अपनी भाषाओँ में सबसे ज्यादा इन्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं।कहने का मतलब कि अंग्रेजी वहां भी पीछे है।
इन्टरनेट पर हिंदी बहुत तेजी से फ़ैल रही है और आने वाले समय में यह संख्या एक अनुमान के अनुसार कई गुना तेजी से बढ़ने वाली है।इन्टरनेट पर हिंदी साहित्य का संसार भी काफी व्यापक हो गया है।एक आंकलन के अनुसार साहित्यिक हिंदी वेबपन्नों की संख्या करोड़ को पार कर चुकी है। ‘कविताकोश’ जैसी वेबसाइट में चंदवरदाई से लेकर अभी-अभी लिखना शुरू करने वाले नये कवियों की कविताओं का खज़ाना उपलब्ध है।इसी प्रकार हजारों वेबसाइट और सामूहिक ब्लॉग हैं जो साहित्य रचने में तल्लीन युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन दे रहे हैं।लगभग 12-15 वर्ष पूर्व कुछ ब्लॉगों और वेबसाइटो के द्वारा आरम्भ हुआ हिंदी साहित्य का इन्टरनेट सफ़र आज अपनी मंज़िल को तलाश चुका है और तेजी से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।एक दौर वह भी था जब इन्टरनेट पर हिंदी में साहित्य रचने वाले लोगों को मुख्यधारा का वर्ग गंभीरता से नहीं लेता था।लगभग उसी दौर में प्रसिद्ध लेखक आलोचक नामवर सिंह ने रायपुर में आयोजित एक संगोष्ठी में इन्टरनेट पर हिंदी में छपी समस्त हिंदी रचनात्मकता को कूड़ा कहा था।इसी प्रकार एक कार्यक्रम में राजेंद्र यादव ने भी इन्टरनेट को ‘दोजख़ की जुबान’ माना था परन्तु मुख्यधारा के युवा लेखक और कवियों की इन्टरनेट पर बढ़ी मौजूदगी ने वरिष्ठ साहित्यकारों को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचने को मजबूर किया।आजकल देश-विदेश में अकादमिक स्तर पर ई-साहित्य पर चर्चा,गोष्ठी,सेमिनार और सम्मलेन होते रहते हैं।हिंदी की इन्टरनेट की दुनिया से दूर रहने वाले साहित्यकार बहुत जल्दी ही इस नई मीडिया के जानकर घोषित कर दिए गये।अब जिन रचनाकारों को भी अपने विचार या रचनाएँ वैश्विक स्तर पर ले जानी हैं वे इन्टरनेट का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं और सोशल मीडिया में भी छाये हुए हैं।जबकि कुछ वर्ष पूर्व तक सोशल मीडिया या इन्टरनेट का प्रयोग करने में प्रतिष्ठित रचनाकार अपना छोटापन समझते थे।कहा जा सकता है कि आज इन्टरनेट के त्वरित और अकल्पनीय विस्तार का अंदाजा सभी को लग चुका है इसीलिए हिंदी की कई लघु पत्रिकाओं में भी इसकी चर्चा होने लगी है।बहुत से पत्र-पत्रिकाओं ने भी अपने ब्लॉग,वेबसाइट और फेसबुक पेज बना लिए हैं।आज हिंदी के तमाम समाचार-पत्र भी इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं।
हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास को आज कौन नहीं जानता?अपनी कविताओं से तो वे प्रसिद्ध हुए ही लेकिन उससे भी अधिक हिंदी भाषा और साहित्य को उनका योगदान यह है कि उन्होंने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाया।जिन गुज़रे ज़माने के मशहूर रचनाकारों को आज के लोगों ने लगभग भुला ही दिया था,उनकी रचनाओं का गान अपने मधुर कंठ से करके उन्होंने उन महान रचनाकारों को नया जीवन दिया।यद्यपि एक बार महान साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन जी की रचना का गान करने पर उन्हें अभिनेता और हरिवंशराय जी के सुपुत्र अमिताभ बच्चन के कोप का भाजन भी बनना पड़ा था,खैर अब यह एक अलग मुद्दा है जो सुलझ भी चुका है।कुमार विश्वास सोशल मीडिया पर तो बहुत सक्रिय रहते हैं और उनके ट्वीट भी काफी वायरल होते हैं।आयकर विभाग ने अलग-अलग श्रेणी में सबसे ज्यादा टैक्स देने वाले लोगों को सम्मानित किया।साहित्य की श्रेणी में सबसे ज्यादा टैक्स देने के मामले में कुमार विश्वास का नाम था।अब इसी बात से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि कुमार विश्वास के करियर में इन्टरनेट का कितना स्थान है क्योंकि आज जहाँ-जहाँ भी वे पहुंचे हैं उसमे सोशल मीडिया के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।उनकी चुटीली बातें और राजनेताओं पर तंज या व्यवस्था पर व्यंग्यात्मक तरीके से चोट करने की कला सभी कुछ सोशल मीडिया के द्वारा लोगों तक अति शीघ्र ही पहुँच जाता है और लोग ऐसे रचनाकार या कवि से आसानी से ‘कनेक्ट’ हो जाते हैं।यह सब कुछ केवल एक रचनाकार के लिए ही नहीं अच्छा होता बल्कि इससे आज हमारे सम्पूर्ण हिंदी साहित्य का सर्वांगीण विकास हुआ है।
आज के समय में इन्टरनेट ने हिंदी साहित्य को नये पाठक भी दिए हैं।इस बात के प्रमाण में मैं यह कह सकती हूँ कि जहाँ हिंदी की बहुत सी पत्रिकाएँ ऐसी हैं जिनकी पहुँच पांच सौ भी नहीं है,वही हिंदी के एक सामान्य ब्लॉग या फेसबुक पेज की पहुँच कई हज़ार है।पत्रिकाओं को प्रकाशित करवाना एक बड़ी मुहिम है।जिसमें मुद्रण,प्रकाशन और प्रेषण में इतनी लागत आ जाती है कि बेचारा लेखक जल्दी से इस तरफ सोचने की हिम्मत ही नहीं कर पाता।इसलिए इन्टरनेट आज के लेखकों के लिए एक बहुत ही सुगम,सरल और कम लागत में अच्छी पहुँच वाला विकल्प बनकर आया है जिसकी पहुँच वैश्विक है।फेसबुक पर ही ऐसे हजारों लोग हैं,जिन्होंने यह स्वीकार किया कि अपने स्कूल या कॉलेज के दिनों के बाद उन्होंने पहली बार ही किसी साहित्यिक रचना को इन्टरनेट पर पढ़ा।व्हाट्सएप पर भी आजकल बहुत से अच्छे और प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाएँ आती रहती हैं जिन्हें लोग बड़े चाव से पढ़ते और फिर आगे प्रेषित करते हैं।इस तरह न जाने कितने रचनाकारों को आज वह सम्मान मिल रहा है जिसके वे हकदार तो थे लेकिन उन्हें वह स्थान अभी तक मिल नहीं पाया था।व्हाट्सएप और फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर आजकल बहुत से साहित्यिक ग्रुप बन गये हैं जिनमें हजारों लोग रहते हैं और देशों की भी सीमाएं नहीं रहीं क्योंकि इन ग्रुपों में कई देशों के लोग शामिल रहते हैं और किसी भी रचना या रचनाकार की रचनाओं को मज़े लेकर पढ़ते और फिर उनपर कमेंट करके अपनी भावनाओं का इज़हार एक-दूसरे के साथ करते हैं।
एक और सोशल साइट ट्विटर पर भी हिंदी का खुलकर प्रयोग हो रहा है।डॉक्टर,प्रोफ़ेसर,अभिनेता,खिलाड़ी,उद्योगपति,नेता आदि सभी ट्विटर का प्रयोग कर रहे हैं।इनको देखकर इन्हें चाहने वाले भी ऐसा ही कर रहे हैं और इस तरह से हिंदी के लिए बहुत ही शुभ संभावनाएँ पैदा हो रही हैं।आज हिंदी के पंद्रह से भी ज्यादा सर्च इंजन हैं जो किसी भी वेबसाइट का कुछ ही मिनटों में हिंदी अनुवाद कर के उसे पाठकों के आगे प्रस्तुत कर देते हैं।फेसबुक,याहू,गूगल सभी हिंदी में उपलब्ध हैं।मोबाइल तक हिंदी की पहुँच ने भारत में देवनागरी लिपि के सामने कड़ी चुनौती को काफी हद तक समाप्त कर दिया है।आज सभी ज़रूरी वेबसाइटो के हिंदी संस्करण हैं।शेयर मार्किट में सेबी,बीएसई,एनएसई,भारतीय जीवन बीमा निगम,रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया,भारतीय स्टेट बैंक,भारतीय लघु विकास उद्योग बैंक आदि सभी की वेबसाइट हिंदी में भी उपलब्ध हैं।भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) की वेबसाइट भी हिंदी में है।
दुनिया के सबसे बड़े इन्टरनेट सर्च इंजन गूगल को इस बात का आभास था कि भविष्य में हिंदी समेत भारतीय भाषाओँ का इन्टरनेट में प्रयोग बढ़ेगा इसीलिए उसने अगस्त 2015 में देसी भाषाओँ में अपने सभी प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध कराने का एलान किया था और अगस्त 2015 में भारत में इन्टरनेट सेवा शुरू हुए 20 वर्ष पूरे हुए थे।गूगल इन्टरनेट की बड़ी और प्रतिष्ठित विज्ञापन एजेंसी भी है परन्तु उसका एड सेंस अंग्रेजी के मुताबिक ही रहा किन्तु कुछ वर्षों से उसने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओँ में इसकी सेवा शुरू की है।कुछ वर्षों पहले तक एशिया के देशों और हिंदी को गूगल एडसेंस से अप्रूवल बड़ी मुश्किल से मिल पाता था लेकिन अब अच्छी वेबसाइट को चाहे वह हिंदी में ही हो गूगल एड्सेंस अप्रूवल दे रहा है।मेरा भी यह सौभाग्य रहा कि मैंने इसी वर्ष 26जनवरी को पहला लेख अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया और मुझे मात्र तीन महीने बाद 27 अप्रैल को गूगल एडसेंस का अप्रूवल मिल गया।आज भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिंदी के प्रचार-प्रसार का माध्यम इन्टरनेट ही है।अमेरिका,कनाडा,ब्रिटेन,फीजी,नीदरलैंड,मारीशस,सूरीनाम और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इन्टरनेट और सोशल मीडिया के द्वारा अच्छा खासा हिंदी का प्रचार हो रहा है।
बहुत से ऐसे रचनाकार रहे जो प्रकाशकों द्वारा उपेक्षित रहे,क्योंकि हो सकता है कि प्रकाशकों को उनमे बाज़ार न दिखता हो जैसे त्रिलोचन,मुक्तिबोध नागार्जुन आदि।इन्टरनेट ने इन रचनाकारों की रचनाओं को महत्वपूर्ण स्थान दिया और पाठकों ने भी इन रचनाओं को बहुत मन से पढ़ा।कहा जा सकता है कि हमारी हिंदी भाषा को इन्टरनेट ने प्रकाशकों के चंगुल से मुक्त कराके एक बड़ी स्वतंत्रता दी है।अब रचनाकार बिना किसी प्रकाशक के दवाब के स्वतंत्र लेखन करके अपनी रचना स्वयं 24 घंटे में से किसी भी समय अपने ब्लॉग,फेसबुक में या किसी भी तरह से पोस्ट कर सकते हैं।
हिंदी का सफ़र इन्टरनेट पर रोमन लिपि से शुरू हुआ और फॉन्ट जैसी समस्याओं से जूझते हुए धीरे-धीरे यह देवनागरी लिपि तक पहुँच गया।यूनिकोड,मंगल जैसे यूनिवर्सल फॉन्ट ने देवनागरी लिपि को कंप्यूटर पर नया जीवन प्रदान किया।आज इन्टरनेट पर हिंदी साहित्य से सम्बंधित लगभग सभी पत्रिकाएँ देवनागरी लिपि में उपलब्ध हैं।इस तरह लेखकों के लिए आसानी भी हो गयी है।मैंने स्वयं वर्ष 2017 में अपना उपन्यास ‘पौन दर्ज़न’ जो लगभग पौने दो सौ पन्नों में था,उसे खुद ही यूनिकोड में अपने कंप्यूटर पर टाइप किया और फिर प्रकाशित करवाया।इसका लाभ यह हुआ कि मुझे लिखने की दोहरी मेहनत नहीं करनी पड़ी और सीधे कंप्यूटर पर ही मैं अपने विचारों को टाइप करती जाती थी और जो सही नहीं लगता था उसे हटाने का भी कोई झंझट नहीं।उसके बाद किताब प्रकाशित करवा ली।इस तरह समय की भी बहुत बचत हुई।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि इन्टरनेट पर हिंदी और हिंदी साहित्य का भविष्य चमकदार है।बस आवश्यकता इस बात की है कि हम इसे खुले मन से स्वीकार करें और नित हो रहे नये-नये प्रयोगों को भी जानते रहें और स्वयं भी उनका प्रयोग करने में झिझकें नहीं।
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