आज का दिन हम सभी के लिए बहुत खास होता है।आज हम अपना गणतंत्र दिवस मनाते हैं क्योंकि इस दिन हम पूर्ण गणतंत्र बने थे लेकिन मेरी प्रसन्नता आज द्विगुणित हो गई है क्योंकि आज ही के दिन आपके साथ मेरा पूरा एक वर्ष व्यतीत हो गया है।पिछले वर्ष 2019 को 26 जनवरी के दिन ही मैंने अपने ब्लॉग लेखन का प्रारंभ किया था और मुझे लिखने में हर्षमिश्रित गर्व हो रहा है कि आपका साथ और सुझाव मुझे हमेशा मिलता रहा है।यदि आप लोग इतने उत्साह से मेरे लेखों को न पढ़ते और अपनी प्रतिक्रिया न देते तो शायद मैं इतना लिख ही न पाती।इसलिए आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत आभार।
आज हम अपना 71वा गणतंत्र दिवस मना रहे हैं।किसी भी देश के लिए स्वतंत्रता का बहुत मूल्य होता है।वह स्वतंत्रता जो देश के लोगों को अपनी शर्तों पर जीने की सुविधा देती है,उन्हें वह करने का अवसर देती है जो वे करना चाहते हैं परन्तु यह स्वतंत्रता उस समय बेमानी हो जाती है जब राष्ट्र-जीवन के सञ्चालन हेतु आवश्यक नियम नज़रंदाज़ कर दिए जाएँ।
अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन की रचनाएँ विश्व-प्रसिद्ध हैं।20 जनवरी 1896 को वे मुंबई (उस समय बम्बई) की धरती पर व्याख्यान देने और भारत-भ्रमण के उद्देश्य से आये थे।उन्होंने भारत के विषय में अपने जो भी उद्गार व्यक्त किये हैं उन्हें आज के समय में हमें पढ़ने और मनन करने की आवश्यकता है क्योंकि आज मैं देखती हूँ कि हमारे देश के लोगों की एक सोच ऐसी विकसित हो गई है जिसमें अपने देश की बुराई के सिवा उन्हें कुछ और दिखता ही नहीं।अपने देश,अपने धर्म और अपनी परम्पराओं को बुरा और संकुचित कह देने में बहुत से लोग गर्व महसूस करते हैं।उन्हें ऐसा लगता है कि अपनी और अपने धर्म की बुराई करके वे बहुत वृहद ह्रदय तथा महान हो गये हैं लेकिन यह सोच बिलकुल गलत है।हमारा धर्म और परम्पराएं तो हमें यही सिखाती हैं कि हम अपने धर्म का सम्मान करें और जितना हो सके उसके नियमों का पालन करें तथा साथ ही साथ अन्य धर्मों का भी सम्मान करें और उनकी अच्छी बातों का अनुसरण करें।मार्क ट्वेन ने लिखा-
“भारत कई मायनों में बाकी दुनिया से अलग है।यह वह ज़मीन है,जहाँ सभ्यता ने सबसे पहले अपने कदम रखे।परम्पराएं सबसे पहले पनपीं,सत्य अहिंसा के अमृत का स्रोत भी सर्वप्रथम यहीं से फूटा।लिहाजा इस ज़मीन को दुनिया का टुकड़ा नहीं बल्कि सांस्कृतिक उपहार कहा जाना चाहिए।”
मार्क ट्वेन जिस भारत की खूबसूरती को अपने शब्दों में व्यक्त कर रहे हैं उस खूबसूरती का भी कोई अर्थ नहीं जब तक देश को एक उचित व्यवस्था,एक प्रणाली न मिले।गणतंत्र एक ऐसी ही व्यवस्था है,जिसे प्राप्त कर 26 जनवरी 1950 को सही अर्थों में भारत ‘रिपब्लिक’ भारत बना। ‘वी द पीपुल ऑफ़ इंडिया’ से शुरू हुई संविधान की प्रस्तावना सिर्फ कुछ शब्द भर नहीं बल्कि देश के लोगों में एकता का भाव भरता मन्त्र है जो दशकों से हम पर जादुई असर डाल रहा है।हमारे संविधान में भारत को सोशलिस्ट,डेमोक्रेटिक,सेक्युलर और रिपब्लिक बताया गया है।स्पष्ट है कि भारतीय जनता की इच्छा को ही सर्वोपरि माना गया है और उनके लिए ही संविधान बनाया गया है,जिसमें उनके अधिकार व कर्तव्य सुरक्षित हैं।
सदियों तक विदेशियों की गुलामी में रहने के बाद हमने एक महत्वपूर्ण बात सीखी कि यदि अपनी अखंडता को कायम रखना है तो स्वयं को ‘एक’ रखना होगा।हमारा संविधान इसी कड़ी में एक शक्तिशाली कदम था,जिसके बहुत सारे प्रावधान देश के रूप में तो हमारी अखंडता सुनिश्चित करते ही हैं,साथ ही इतिहास में की गई गलतियों को न दोहराने का वादा भी लेते हैं।इसलिए आज जब हम अपना गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो सिर्फ उत्सव तक ही न इसे सीमित रखें वरन एक बार अपने भीतर झांकें और ऐसे संकल्प लें जो देश के हित में हों और हमारे देश को विश्व-स्तर पर आगे ले जाएँ न कि विश्व-पटल पर हमारा सर शर्म से झुके।
आज समाज में एक बात बहुत बढ़ गई है और खासकर युवाओं में कि अपने हर सवाल के लिए सरकार की ओर ताकना,उसकी जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह लगाना लेकिन यह सब अब बहुत हो चुका।अभी तक हम यही तो करते आ रहे थे।इसका हमें क्या लाभ मिला यह तो हम सभी जानते ही हैं।इसलिए इस बार के गणतंत्र दिवस से हम क्यों न एक नई शुरुआत करें?अपनी जिम्मेदारियों को समझें और राष्ट्रनिर्माण में अपनी सीधी भूमिका तलाशें।क्या यह सब कुछ संभव है?जी हाँ है लेकिन यह तभी होगा जब आज का युवा देश के प्रति ईमानदार बनेगा और सिर्फ अपने अधिकारों की ही बात न करके अपने कर्तव्यों को भी समझेगा।आज के युवा जोश में आकर अक्सर अनुशासन की हदें पार कर रहे हैं।मेरा यह मानना है कि यदि युवा अपने जोशीले रंगों में अनुशासन को बना रहने दें तो भारत देश का गणतंत्र नई ऊंचाईयां छू सकेगा।आज किसी भी बात को लेकर अपनी मांगें पूरी कराने के लिए पढ़ने वाले विद्यार्थी और छोटे-छोटे बच्चे भी ऐसे प्रदर्शनों में शामिल हो जाते हैं जो हिंसक और उग्र होता है।ऐसे प्रदर्शनों में युवाओं की गंभीर,अहिंसक और अनुशासित भागीदारी होनी चाहिए।आज के युवा को नए विचारों से प्रेरित होने की बहुत आवश्यकता है।नये और रचनात्मक विचार ही युवाओं को कामयाब बनाने में मदद करेंगे।आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम नवीन और रचनात्मक विचारों से प्रेरित होकर एक नये भारत का निर्माण करेंगे जो विश्व के किसी भी देश से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है।
महात्मा गाँधी कहते थे कि ‘असली भारत गांवों में बसता है।’ परन्तु यह हमारे देश का शायद सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा कि शहरों की तुलना में गांवों की तरक्की बहुत कम हुई।आज से 20-25 वर्ष पहले तक युवाओं के लिए तरक्की का रास्ता शहरों से ही होकर जाता था लेकिन आज गांवों की दशा में बहुत सुधार हुआ है।वहां भी पक्की सड़कें बन गई हैं।कई उद्यम वहां लग गये हैं और भी लगाये जा रहे हैं।इस तरह गांवों में भी आज रोज़गार के भरपूर अवसर हैं।ऐसी स्थिति में अगर आज का युवा वर्ग अपने साथ-साथ देश की दो-तिहाई आबादी का भी भला करने की सोच ले तो असंतुलित विकास की बात समाप्त हो जाएगी और शहर और गांवों के विकास में एक संतुलन स्थापित हो जाएगा।आज भी स्वरोजगार मुख्य धारा में अपना स्थान नहीं बना पाया है।आज भी युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग सरकारी,अर्ध सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में ही अपने सपने खोज रहा है।2020 के गणतंत्र दिवस से ही यदि युवा अपना सारा श्रम,सारी ऊर्जा स्वयं का मार्ग तैयार करने में लगायें तो संभव है कि 2021 का गणतंत्र नौकरियों की बंदिश से हटकर अपना मालिक आपको खुद ही बना दे।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि आज़ादी के संघर्ष के दौरान तो हमारी लड़ाई हम पर शासन कर रही विदेशी शक्तियों से थी लेकिन आज स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद हमारा संघर्ष भ्रष्टाचार (चाहे राजनीतिक क्षेत्र हो या सामाजिक या आर्थिक कोई भी) घपले-घोटाले,गुंडा-गर्दी और लिंग-भेद तथा महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार से चल रहा है।इतिहास गवाह है कि यह कुदरत का नियम है कि एक निश्चित समय-सीमा के बाद समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन और सुधार की आवश्यकता होती है और आज का समय ऐसा ही है जब समाज का हर वर्ग जागरूक है लेकिन इस जागरूकता को अराजकता में न बदलें।अपने अधिकारों को ज़रूर समझें लेकिन कर्तव्यों से भी विमुख न हों।आज हम राष्ट्रवाद की बात तो बहुत जोर देकर करते हैं लेकिन राष्ट्रवाद क्या है इसे समझने की चेष्टा भी करें।सिर्फ अपने हक की बात कर लेने से और कुछ देश-भक्ति की बात कह देने से ही हमारी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं हो जाएगी बल्कि देश की एक भी विरासत,उसका एक भी पैसा हमारे कारण बर्बाद न हो यह हमारा असली राष्ट्रवाद है और यही गणतंत्र दिवस पर हमारी हमारे देश को सच्ची सलामी है।
आलोकित हो अन्तरतम,
जन-जन में गरिमा आये,
गणतन्त्र-दिवस की आस्था
कण-कण में मुखरित कर दो,
गणतन्त्र-दिवस के उज्जवल
भावों को मधुमय स्वर दो……
71 वे गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई।
जय हिंद!