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‘राष्ट्रकवि’ दिनकर जी को जन्मदिवस पर कोटिशः नमन

हिंदी साहित्य के क्रांतिदर्शी कवि,अपनी कविता से हृदय को झकझोर देने वाले प्रमुख लेखक, कवि व निबंधकार आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन।
दिनकर जी का व्यकितत्व आत्म-विश्वास,दृढ़ता, साहित्यकार की अनुभूति-प्रवणता,दार्शनिक तत्वचिंतन तथा ओज से युक्त था।उनके वाह्य व्यक्तित्व में क्षत्रियों का तेज,ब्राह्मण का अहम,परशुराम की गर्जना और कालिदास की कलात्मकता थी।उनके इसी व्यक्तित्व के कारण महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी उन्हें ‘ईरानी’ कहा करते थे।गौर-वर्ण,उन्नत मस्तक,तेजपूर्ण नेत्र,ऊंचे कद और लंबी पतली उंगलियों से युक्त जब वे कविता पाठ करते थे तो ऐसा लगता था मानो परशुराम गरज रहे हों।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आप संसद भी गए परंतु ‘प्रथम दर्शन’ के गहरे आतंक के कारण आपके साहित्य के प्रसंशकों को भी आपके निकट जाने की हिम्मत मुश्किल से ही होती थी।दिनकर जी का सर्वोन्नत मस्तिष्क बोलता हुआ जान पड़ता था।’कुरुक्षेत्र’ के भीष्म,’रश्मिरथी’ के कर्ण और परशुराम की प्रतीक्षा के परशुराम दिनकर के व्यक्तित्व के ही अंश हैं।
उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका प्रासंगिक और सम- सामयिक होना।देखिए इन पंक्तियों को पढ़कर ऐसा नहीं लग रहा कि इन्हें रचनाकार ने बस कुछ दिन पहले ही आज के हालातों पर लिखा है-

~~~~समर शेष है~~~~

“ढीली करो धनुष की डोरी, तरकश का कश खोलो ,
किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?
किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।

फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !
ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!
सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,
दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।

मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,
ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार ।

वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है
देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है
माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।

पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज
सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज?

अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में ।

समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा
और नहीं तो तुझ पर पापिनी! महावज्र टूटेगा ।

समर शेष है, उस स्वराज को सत्य बनाना होगा
जिसका है ये न्यास उसे सत्वर पहुँचाना होगा
धारा के मग में अनेक जो पर्वत खडे हुए हैं
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं।

कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे
अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे।

समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो,
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो,
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोड़ेंगे,
समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे।

समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर,
खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर।

समर शेष है, अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं,
गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं,
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है,
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है।

समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल,
विचरें अभय देश में गाँधी और जवाहर लाल,

तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना,
सावधान हो खड़ी देश भर में गाँधी की सेना,
बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे,
मंदिर औ’ मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे।

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।”
कितनी सामयिक बात।वास्तव में ऐसे रचनाकार युगों-युगों तक दिलों में बसे रहते हैं।
दिनकर जी ने सन 1945 में वारसा(पोलैंड) के अंतरराष्ट्रीय काव्य-समारोह में भाग लिया।वहां जनता ने आपका भव्य स्वागत किया।पोलैंड से लौटते हुए वे इंग्लैंड, फ्रांस, स्विजरलैंड और मिस्र भी गए।सन 1957 में दिनकर जी ने चीन के लेखक संघ के निमंत्रण पर चीन का भ्रमण किया।वहां अनेक नगरों में गए।अनेक कवियों, उपन्यासकारों और नाटककारों से भेंट की।इसी दौरान आपने बर्मा और थाईलैंड के साहित्यकारों से भेंट की।सन 1961 में दिनकर जी ने विविध भारतीय भाषाओं के साहित्यिक प्रतिनिधि-मंडल के साथ रूस का भ्रमण किया।आपकी अनेक कविताओं का अनुवाद रूसी भाषा में भी हो चुका है।आपकी कृतियां विदेशों में भी सम्मानित हुई।जापान के अंग्रेजी पत्र ‘Orent West’ में आपकी ‘कलिंग विजय’ का अनुवाद प्रकाशित हुआ।’United Asia’ में उनकी आठ कविताओं का अनुवाद छपा।रूस के ‘विदेशी साहित्य ग्रंथ माला ‘ के अंतर्गत उनकी कविताओं के संकलन का रूसी अनुवाद सन 1963 से प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ।’कुरूक्षेत्र’ का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में हो चुका है।
ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार को उनके जन्मदिवस पर हम शत-शत नमन करते हैं।ऐसे रचनाकार के बारे में तो कितना भी लिखा,पढ़ा या कहा जाए,कम ही होगा।उनके बारे में मैं जल्द ही एक लेख पुनः प्रकाशित करूँगी जिसमें उनकी कालजयी रचना ‘उर्वशी’ का भी उल्लेख होगा क्योंकि प्रेम और काम का जो ओजस्वी एवं सृष्टि का रचनात्मक रूप ‘उर्वशी’ काव्य में अंकित हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
अंत में मैं दिनकर जी की ही पंक्तियां जो उनके ऊपर एकदम सटीक बैठती हैं,देना चाहूंगी–
“तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।”

3 thoughts on “‘राष्ट्रकवि’ दिनकर जी को जन्मदिवस पर कोटिशः नमन

    1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हम सब के लिऐ प्रेरणा का स्रोत है , हिन्दी के प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार के साथ- साथ आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि भी हुए है । ऐसे महान कवि को शत – शत नमन!!

      1. कोटी कोटी प्रणाम
        दिनकर दा को सलाम ।
        हाहाकार मचा हुआ है
        करोना महामारी फैल गया है
        नेता चिपके है कुर्सी से
        सन्नाटा पसरा हुआ है ।
        पता नही इस देश का क्या होगा
        सत्तासीनो को फिक्र नही है
        रोज़ी रोटी छीन ग ई है ।

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