स्वर कोकिला,भारत रत्न लता मंगेशकर सिर्फ हमारी फिल्म इंडस्ट्री की एक महान गायिका ही नहीं अपितु सुरों की देवी हैं और कई दिग्गज कलाकार जो हमसे कही ज़्यादा अनुभवी हैं,उन्होंने भी लता जी को माँ सरस्वती की तरह माना है।लता जी जैसी गायिका इस देश में ही नहीं,धरती पर भी कोई और नहीं है।
आज 28 सितंबर को उनका जन्म दिवस है।आज ही के दिन सन 1929 को इंदौर में इस सुर साम्राज्ञी का जन्म हुआ था।हम सबकी आज यही शुभकामनाएं हैं कि लताजी स्वस्थ और दीर्घायु हों।
जिस समय महान गायक के.एल.सहगल के स्टारडम का पहला दशक चल रहा था उस समय एक बच्ची जो उनकी दीवानी थी उसका नाम लता मंगेशकर था।आज जिस लता की गायकी विशुद्धता और मौलिकता का पैमाना है वही लता अपने करियर के शुरुआती दौर में सहगल की तरह गाने की कोशिश करती थीं।इसके अलावा लता ने स्वयं कई बार यह बात स्वीकार की है कि उनकी गायन शैली पर नूरजहाँ का प्रभाव था।जिस समय लता मंगेशकर ने फिल्म संगीत की दुनिया में कदम रखा तब शमशाद बेग़म,खुर्शीद,नूरजहाँ,सुरैया और राजकुमारी जैसी गायिकाओं का बोलबाला था।नूरजहाँ तो तब ‘मल्लिका ए तरन्नुम’ कहलाती थीं।शायद इसीलिए शुरू में लता जी की गायकी की तुलना नूरजहाँ से सबसे ज़्यादा हुई।उस समय के संगीतकार भी उन्हें नूरजहाँ जैसा गाने के लिए कहते थे।इसलिए लता जी के कुछ शुरुआती गीत जैसे, ’आएगा आने वाला’ और ‘उठाए जा उनके सितम’ आदि में नूरजहाँ की छाप स्पष्ट दिखती है लेकिन मैंने स्वयं लता मंगेशकर के एक इंटरव्यू में यह बात उनके द्वारा ही सुनी कि जब उन्होंने देखा कि उनके ऊपर नूरजहाँ जी को कॉपी करने के इलज़ाम लग रहे हैं तो तुरंत ही उन्होंने अपनी शैली बदल ली और नूरजहाँ की छाया से निकल कर विशुद्ध अपना अंदाज़ लता मंगेशकर वाला अपना लिया जिसमे उन्हें इतनी कामयाबी मिली और सभी से वे इतना आगे निकल गईं कि आज तक कोई उनके पास नहीं पहुँच पाया है।कुछ वर्षों से चाहे फिल्मों के लिए वे पार्श्व गायन नहीं भी कर रहीं लेकिन आज भी वे पूरी तरह सक्रिय हैं।उन्हें 2001 में भारत रत्न और 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिल चुका है।यह हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी कि हम उस समय में जी रहे हैं जब भारतीय फिल्म संगीत में सात दशक के अभूतपूर्व योगदान के लिए स्वर कोकिला लता जी को ‘डॉटर ऑफ़ द नेशन’ का ख़िताब दिया गया।केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष 28 सितम्बर को उनके 90वें जन्मदिवस पर यह सम्मान दिया।मुझे तो लगता है कि शायद अब कोई सम्मान ही नहीं बचा है जो उन्हें दिया जा सके क्योंकि वास्तव में वे ‘सम्मान की सम्मान हैं’।कोई गायिका इतनी उम्र में जिसमें लोग बोलने में भी दिक्कत महसूस करें, ऐसा गा सकती है इसकी लताजी ने शानदार मिसाल पेश की है।उन्होंने जो मान-सम्मान अपने जीवन में एक पार्श्व गायिका के रूप में प्राप्त किया है उतना फिल्म-संगीत क्षेत्र की किसी हस्ती को नहीं मिला।
‘सात दशक का अभूतपूर्व योगदान’ यह शब्द लिखते हुए भी मन में एक झुरझुरी सी दौड़ जाती है,क्योंकि हम देखते हैं कि सात दशक तो दूर एक या दो दशक बीतते ही कलाकारों की कला कहीं लुप्त सी होने लगती है और गुमनामी के अंधेरों में वे खो जाते हैं लेकिन वही बात फिर आ जाती है कि यदि मौलिकता है तो फिर आपको चमकने से कोई भी रोक नहीं सकता और इसकी मिसाल लता जी हैं।सही कहा गया है कि “Style is man himself।” जो लोग इस बात का अनुसरण करते हैं चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो,वे ही सफलता प्राप्त कर पाते हैं।
लता मंगेशकर जी का जैसा आभामंडल सत्तर वर्ष पूर्व था,वैसा ही आज भी है और लगता है सदियों तक रहेगा।
उनका ही गाया फ़िल्म ‘ममता’ का यह गीत उनपर ही सटीक बैठता है-
“रहें न रहें हम, महका करेंगे,बनके कली, बनके सबा बागे वफ़ा में……..”
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