विभिन्न काल के रूप में समय का बदलना अनिवार्य एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे हमारी मजबूरी समझिए या नियति। जो समय की चाल से पिछड़ गया वह समाज द्वारा भुला दिया गया है। ऐसी स्थिति में यह अनिवार्य हो जाता है कि हम समय की चाल के साथ चलते जाएं।
आदिकाल से ही संचार के माध्यम बदलते आए हैं। संचार में कबूतरों की भूमिका को कौन भुला सकता है? परंतु, जैसे बदलाव एक नियम है, तो यह नियम हर व्यवस्था,हर काल एवं हर विषय पर समान रूप से लागू होता है। समय के साथ-साथ संचार के माध्यम भी बदले, उनके तौर-तरीके भी बदले। पत्राचार की विधा ने तो सैकड़ों वर्षों तक अपने मोहपाश में बांधे रखा। इस श्रृंखला में नवीनतम कड़ी ब्लॉग के रुप में हमारे सामने आई। ब्लॉग मूल रूप से एक पत्रिका है, जो वेब पर उपलब्ध है।विज्ञान के इस चमत्कार का ही परिणाम है कि हम किसी के विचारों से सहजता से, कुछ ही क्षणों में , रूबरू हैं।
जब भी हम ब्लॉग की बात करते हैं, तो ‘चुभन’ का नाम स्वतः ही अगली पंक्ति में आकर खड़ा हो जाता है, एवं हमारे विचारों को उद्वेलित करने लगता है।
करण सभी को विदित है। ‘चुभन’ ने अपने 2 साल के अल्पकाल में ही, विभिन्न कार्य क्षेत्रों से मणिक चुनकर, हमारी ज्ञान क्षुधा को शांत किया है। विभिन्न विचार- धाराओं की लहरों से पटे पड़े सागर को हमारे सामने ला कर रख दिया है। फिर चाहे वह साहित्य का क्षेत्र रहा हो, या कला का,दर्शन की गूढ बातें हो़,या सामाजिक ताने बाने से बुना मंथन।
जब विचारधारा की बात आती है, तब यह भी ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है कि ‘चुभन’ का राष्ट्रीयता से कितना गहरा नाता है। 26 जनवरी का दिन ‘चुभन’ की गौरवपूर्ण उत्पत्ति का दिन तो है ही, साथ ही हम भारत वासियों के लिए राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत पर्व भी। ऐसी स्थिति में ‘चुभन’ के साथ-साथ अगर हम राष्ट्रीयता के विषय पर बात न करें तो यह ‘चुभन’ एवं राष्ट्रीयता दोनों की आत्मा को दो अलग-अलग धागों से बांध देने जैसा होगा।
हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते, कि भारतवर्ष में राष्ट्रवाद एक परंपरा है, ना कि सिर्फ एक विचार। यह हमारी धमनियों में दौड़ते लहू की गति जैसा है।
आप किसी भी भारतीय भाषा का उदाहरण ले लीजिए, राष्ट्रवाद से हमारा साहित्य पटा पड़ा है। जिससे यह तो साबित हो जाता है कि राष्ट्रवाद हम भारतीयों की रीत बनकर हमारे अंतर्मन में समाहित है। क्योंकि भारत अनेक भाषाओं का गुलदस्ता है, तो यह भी स्वाभाविक है कि, अनेक भाषाओं ने इसे विभिन्न रंगों एवं विभिन्न खुशबू से संवारा है। वर्तमान में, ‘चुभन’ पर, दक्षिण भारतीय भाषाओं पर मंथन की एक श्रृंखला चल रही है। मेरे विचार से, दक्षिण भारतीय भाषाओं में राष्ट्रवाद पर मंथन, समयानुकूल विषय होगा।
अगर हम कन्नड़ साहित्य का अध्ययन करें, तो पाएंगे कि यहां के साहित्य में राष्ट्रवाद एक अविभाज्य अंग रहा है।समय बदला ,काल बदले परंतु राष्ट्रवाद की भावना जस की तस बनी रही। राघवांक के, कन्नड़ साहित्य में राष्ट्रवाद का सटीक एवं उचित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। राष्ट्रवाद पर, महान कवि आ़ड्या की लेखनी मार्गदर्शक रही। वहीं कनकदास ने अपनी पुस्तक तरंगिणी में, राष्ट्रवाद की उत्तम समीक्षा प्रस्तुत की। कर्नाटक में राष्ट्रवाद इतना प्रबल रहा है कि यहां के शिलालेखों पर भी राष्ट्रवाद की छाप देखी जा सकती हैं।
मलयालम साहित्य में तो,राष्ट्रवाद की भावना को भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता में भी वर्णित किया गया है। राष्ट्रवाद के विषय पर मलयालम के महाकवि उल्लूर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में, पनिकर परिवार की कृतियां राष्ट्रवाद की भावना से भरी पड़ी है। 16वीं शताब्दी में, अच्युतम के साहित्य ने, बंटे हुए रजवाड़ों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
आधुनिक भारत के राष्ट्रवाद में, उत्तर के साथ-साथ, दक्षिण भारतीय भाषाओं के योगदान को हम नकार नहीं सकते। उत्तर की भांति दक्षिण में भी राजा रजवाड़ों के दरबार में राष्ट्रीयता से भरा पूरा साहित्य लिखा एवं पढ़ा जाता रहा है। हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते, कि हमारी संस्कृति से अलग होकर राष्ट्रवाद की बात करना, एक छलावे से अधिक कुछ नहीं। यहां यह बात अति महत्वपूर्ण हो जाती है कि, दक्षिण भारत ने भारतीय संस्कृति एवं आधुनिकता के सामंजस्य को भली भांति निभाया है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि दक्षिण भारत आज भी अपनी संस्कृति से उन्हीं गहराइयों से जुड़ा हुआ है। सही मायनों में दक्षिण भारतीय परंपराओं ने आज के युग में भी, आधुनिक राष्ट्रवाद एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया है।
हैरान हूं सोचकर कि 2 वर्ष व्यतीत हो गए,आपके ब्लॉग के लेखों को पढ़ते हुए।
आपके ब्लॉग के लेख 100 के लगभग हो चुके हैं और नए लेख जो आप पब्लिश करती हैं, उसके अलावा मैं आपके 26 जनवरी 2019 से पोस्ट किए लेखों से पढ़ना शुरू करते हुए अभी बीच मे पहुंचा हूं।अगर किसी की विचारधारा को समझना है तो उसे शुरू से अंत तक पढूंगा ही तो समझूंगा।
चुभन के जन्मदिन की हार्दिक बधाई।💐💐
भावना जी आपको और आपको पढ़ने वाले सभी साथियों को चुभन के 2 वर्ष पूरे होने की हार्दिक बधाई।
सच में आपके लेख दिल को सुकून देते हैं और साहित्य से आपका गहरा लगाव भी प्रदर्शित करते हैं।आपके शुरुआती लेखों में जो एक लेख ‘साहित्य से दूरी हमें कहाँ ले जा रही?’ जब से मैंने इसे पढ़ा,तब से आपके लेखों से एक तरह का प्रेम हो गया है और हमेशा आपके नए लेखों का इंतजार करता हूँ।ऐसे ही आप लिखती रहें और हम पढ़ते रहें।
आपको चुभन के जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।
आपके लेख हमारे दिल को छू जाते हैं और हम हमेशा ही इन लेखों को पढ़ते हैं और आपको सुनना तो बहुत ही अच्छा लगता है।खासकर जब आप शुरू में बोलती हैं तो हम बार बार उसे सुनना चाहते हैं।मैं तो यही चाहूंगी कि आप ऐसे ही मीठा मीठा बोलती रहें और हम सब सुनते रहें।
चुभन को वर्ष गांठ कि बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। आपके ब्लॉग की सबसे बड़ी विशषता है प्रत्येक विषय पर आपने लिखा है। समाज के कल्याण से सम्बन्धित और सामाजिक एकता पर आपके लेख विशेष रूप से सराहनीय हैं।
भावना जी आपको चुभन की दूसरी सालगिरह की बहुत बहुत बधाई। आज की आपकी पोस्ट पढ़कर अकस्मात ये विचार आया कि इस प्रकार के ज्वलंत विषयों को अपने ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत करके आप भी राष्ट्र वाद का ही परिचय दे रहीं हैं।
आपको चुभन के दो वर्ष पूरे होने पर हृदय से बधाई। भावना जी हर पॉडकास्ट में प्रारम्भ में आपके द्वारा विषय को बेहद प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। आपकी वाणी में मधुरता, स्पष्टता और आकर्षण है। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है__
आपकी वाणी में
नित्य नवीन गुण ही आएं
सफल हो जीवन सुरभि सा
यही है शुभकामनायें!!
चुभन के दो वर्ष पूरे होने पर आपको बहुत बहुत बधाई। हर विषय को आपने अपने ब्लाग में उठाया और निरंतर समाजिक मुद्दे आप हम सब के समक्ष निष्पक्ष भाव से रखती जा रही हैं। साहित्य के प्रति आपकी रुचि प्रसंशनीय है।पाॅडकास्ट की प्रस्तुति बेहद खूबसूरत है। आपको पढने और सुनने के बाद अगले कार्य क्रम का हमेशा इंतज़ार रहता है। चुभन उच्च कोटी की सफलता प्राप्त करे इन्ही शुभ कामनाओं के साथ एक बार फिर से आपको हार्दिक बधाई।