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प्रतिभा और सामर्थ्य के विविध आयाम

साहित्य से दूरी हमें कहाँ ले जा रही ?
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बीता कुछ समय हम सबके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा और आज भी मन यही चाहता है कि यह बुरा सपना हमारी आंख खुलने के साथ झूठ साबित हो और हम फिर अपनी पुरानी ज़िंदगी में आ सकें लेकिन नहीं, यह बुरा सपना नहीं बल्कि जागती आंखों का सच है, जो हमें कई घाव लगा गया।
हमारे ‘चुभन’ परिवार से जुड़े बहुत ही सम्मानित व्यक्तित्व भी कोरोना (Corona)की चपेट में आए और अपने मनोबल से कोरोना योद्धा (Corona Warrior) बनकर निकले।ऐसे लोगों से ही प्रेरणा मिलती है कि हमें रुक नहीं जाना है, बल्कि जीवन सतत चलने का नाम है और हमें बस अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ऐसे ही चलते रहना होगा।
इसीलिए आज मैंने सोचा कि कुछ हट कर चर्चा करते हैं।एक ऐसे विषय पर बात करते हैं, जिसे शायद आपने भी महसूस किया होगा लेकिन कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया होगा।बहुत से ऐसे बहुमुखी प्रतिभा और सामर्थ्य के धनी व्यक्तित्व हमारे सामने आते हैं, जिन्होंने किसी एक क्षेत्र में तो महारत हासिल की, ऊंचे से ऊंचे मुक़ाम को हासिल किया लेकिन साहित्य-सृजन में भी उनका स्थान कम महत्वपूर्ण नहीं रहा।उनका कवि/साहित्यकार रूप भी दुनिया के सामने जब आया, तो लोगों ने उसका जी भरकर स्वागत किया।

इस बात को जब भी हम सोचते हैं तो सबसे पहला नाम जो दिमाग में आता है, वह है देश के पूर्व प्रधानमंत्री, हम सबके प्रिय नेता, भारत रत्न से सम्मानित स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का।राजनीतिक जीवन में उनके योगदान को हम कभी भी भुला नहीं सकते, लेकिन जब उनकी कविताओं को पढ़ते और सुनते हैं तो उनका यह रूप हमें मोह लेता है और हर रचना को बार बार पढ़ने का मन होता है।आइए उनकी एक कविता, जिसमें नचिकेता की उलझन समाहित है, पढ़ते हैं –

“होना न होना एक ही सत्य
के दो आयाम हैं
शेष सब समझ का फेर
बुद्धि के आयाम हैं
किंतु होने न होने के बाद
क्या होता है ?
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता
इस प्रश्न की खोज में लगा है
सभी साधकों को इस प्रश्न ने
ठगा है
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही
रहेगा
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहे
तो इसमें बुराई क्या है?
हां, खोज का सिलसिला न
रुके
धर्म की अनुभूति
विज्ञान का अनुसंधान
एक दिन, अवश्य ही
सद्यः द्वार खोलेगा
प्रश्न पूछने की बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।”

अब जिस दूसरी शख्सियत के बारे में हम बात करेंगे, वे भी राजनीति से ही हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राजस्थान के राज्यपाल आदि विभिन्न पदों को आपने सुशोभित किया और अपने कार्यों से देश को आगे ही लेकर गए, वे हैं अनुशासन और सहृदयता की छवि वाले कल्याण सिंह जी।एक बार अपनी कविताओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि कई कविताएं तो खो गई हैं।आइए उनकी कुछ रचनाओं पर एक नज़र डालते हैं-

“बिना शक्ति के शिव भी
शव से अधिक नहीं कुछ,
कृति के बिना बड़े शब्दों
का अर्थ नही कुछ ।”

उनकी एक और रचना-

” करूं कहां से शुरू कथा अपने जीवन की,
पर कितनी कहूं कथा साथी अपने मन की,
आदि, अंत, अज्ञात कि कुछ स्वच्छंद नहीं है,
जीवन की कविता का कोई छंद नहीं है।”

चलिए दोस्तों, राजनीतिक क्षेत्र से थोड़ा अलग चलते हैं, बॉलीवुड अभिनेता-अभिनेत्रियों की बात करते हैं।यहां तो निस्संदेह पहला नाम अभिनेत्री मीना कुमारी का ही याद आता है।अदाकारा मीना कुमारी का एक रूप और था जो उन्होंने शायरा नाज़ के रूप में पेश किया।उनके कुछ शेरों पर ग़ौर करते हैं-

“कुछ तो दुनिया की इनायत ने, रोने न दिया
और कुछ तलखिए-हालात ने रोने न दिया
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
आयी बरसात तो बरसात ने रोने न दिया।”

“ज़िंदगी आंख से टपका हुआ बेढंग कतरा,
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसू होता।”

अपनी ज़िंदगी से शिकायत करते हुए उनके अल्फ़ाज़ कुछ सख़्त हो जाते हैं-

“मैं ज़िंदगी को देती रही अपना ख़ूने दिल
ख़ुद मेरी ज़िंदगी ने मगर क्या दिया मुझे?
मेरे ही ख़्वाब मेरे लिए ज़हर बन गए
मेरे तसव्वुरात ने ही डस लिया मुझे।
मसर्रत पे रिवाज़ों का सख़्त पहरा है
न जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है
तेरी आंख में झलकते हुए इस ग़म की कसम
ऐ दोस्त! दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है।”

यहां एक ऐसे अभिनेता का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है, जिन्होंने अभिनय और अपने लुक्स से सबका मन जीता।वर्षो तक वे रुपहले पर्दे के ही-मैन के रूप में देखे जाते रहे, पर आजकल उनका शायर का रूप भी हमें देखने को मिलता है।हम बात करेंगे अभिनेता धर्मेंद्र की।उनका कहना है कि “मैं पढ़ा तो ज़्यादा नही, लेकिन चखा सब है।”

वे कहते है कि अपनी शायरी में वे अपनी नहीं, दूसरों की बात करते हैं, तभी दिल को छूती हैं।वे इंसानियत को बहुत महत्व देते हैं और कहते हैं कि “आप अच्छे इंसान हैं तो सब कुछ है, नहीं तो कुछ भी नहीं।”

“दिल का बोझ न बन जाए, उन पर बोझ
हल्का करने से डरता हूँ
आह न सुन ले कोई
शिद्दत ए दर्द फकत जब से बयां करता हूं।”

धर्मेंद्र बहुत ही भावुक शख्स हैं, इसलिए उनका कहना है कि “शायरी मेरे लिए एक अच्छा ज़रिया है”-

“जब कुछ कहा न जाए,
जब कुछ सुना न जाए,
तब मेरी तन्हाई मेरी खामोशी से
और मेरी खामोशी –
मेरी तन्हाई से बातें कर लेती हैं।”

बीते वक़्त पर बोलते हुए वे भावुक हो जाते हैं-

“काश बीते हुए लम्हे, फिर लौट आएं
या हम उन लम्हों को लौट जाएं
ऐसा अगर हो जाए
तो सोचो दोस्तों क्या से क्या हो जाए?”

मशहूर फिल्म अभिनेत्री दीप्ति नवल का नाम भी हम अगर नहीं लेंगे तो हमारी बात पूरी नहीं होगी।उनकी पहली फ़िल्म 1979 में रिलीज हुई और 1983 में उनका कविता संग्रह ‘लम्हा-लम्हा’ प्रकाशित हुआ।आइए उनकी कविता ‘अजनबी रास्तों पर पैदल चलें’ को पढ़ते हैं –

” अजनबी रास्तों पर
पैदल चलें
कुछ न कहें

अपनी-अपनी तन्हाइयां लिए
सवालों के दायरों से निकलकर
रिवाज़ो की सरहदों के परे
हम यूं ही साथ चलते रहें
कुछ न कहें
चलो दूर तक

तुम अपने माज़ी का
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराऊं
तुम कौन हो
मैं क्या हूं
इन सब बातों को
बस, रहने दें

चलो दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें।”

दीप्ति की नज़्में पढ़ने के बाद एक ही बात दिमाग में आती है कि वे बहुत अच्छी शायरा हैं।लफ़्ज़ों का चुनाव और उनका प्रयोग दीप्ति की शायरी की सबसे बड़ी ख़ासियत है।देखिए –

“जब बहुत कुछ कहने को जी चाहता है न
तब कुछ भी कहने को जी नहीं चाहता।”

गुलज़ार साहब ने दीप्ति नवल की शख़्सियत को इन शब्दों में बयां किया है-

“दीप्ति सेहतमंद हैं, खुशमिज़ाज हैं, ज़िंदगी से बहुत लगाव है और कभी उदास हों तो उसका उतना ही मज़ा लेती हैं, जितना हंसने-खेलने का।”

दोस्तों हमने राजनीति और बॉलीवुड से संबंधित हस्तियों के बारे में बात की, जिनका साहित्यिक व्यक्तित्व भी उतना ही प्रसिद्ध, गौरवशाली और गरिमापूर्ण रहा।उनकी प्रतिभा और सामर्थ्य के विविध आयाम हमें देखने को मिले।

अब चलते चलते एक और व्यक्तित्व की बात हम ज़रूर करना चाहेंगे, क्योंकि इनको जितनी प्रसिद्धि अपने लेखन से मिली, उतनी ही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी वे जानी जाती हैं।हम बात करेंगे भारत की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ (1977), ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1979), ‘पद्मश्री’ (1986) ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ (1996), ‘पद्म विभूषण’ (2006) आदि सम्मानों से सम्मानित महाश्वेता देवी जी की।आपने बेहद संवेदनशील तथा वैचारिक लेखन के माध्यम से उपन्यास तथा कहानियों से साहित्य को समृद्धशाली बनाया।आपकी मुख्य रचनाएं ‘अग्निगर्भ’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘हज़ार चौरासी की मां’, ‘माहेश्वर’, ‘झांसी की रानी’, और ‘जकड़न’ आदि हैं।
आपकी कृतियों पर कई फिल्मों का निर्माण भी हुआ, जैसे 1968 में ‘संघर्ष’, 1993 में ‘रुदाली’, 1998 में ‘हज़ार चौरासी की मां’ और 2006 में ‘माटी माई’आदि।

अपने लेखन कार्य के साथ-साथ महाश्वेता देवी जी ने समाज सेवा में भी सदैव सक्रियता से भाग लिया और इसमें पूरे मनोयोग से लगी रहीं।स्त्री अधिकारों, दलितों तथा आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने जूझते हुए व्यवस्था से संघर्ष किया तथा इन लोगों के लिए सुविधा तथा न्याय का रास्ता बनाती रहीं।उनका लेखिका और समाजसेविका दोनों रूपों में ही योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।ऐसे लोग युग की विभूतियां होते हैं।

दोस्तों ऐसी अद्भुत प्रतिभा की धनी न जाने और कितनी शख्सियत हैं, जिनके बारे में यहां बात की जा सकती है।हमारा वादा है कि अगर आपको आज का यह लेख पसंद आएगा तो हम ऐसे ही और भी व्यक्तित्व और उनके कृतित्व आपके सामने लाएंगे।हां, ‘चुभन’ का आपसे निवेदन है कि आप भी हमें कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताएं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में तो शोहरत हासिल की लेकिन उनका साहित्य-सृजन भी कमाल का रहा।खिलाड़ी, उद्योगपति, वैज्ञानिक, चिकित्सक और किसी भी अन्य कला से संबंधित कलाकारों के बारे में हमें भी बताएं, फिर हम उनके कृतित्व के बारे में और भी जानकारी जुटाकर आपके लिए ऐसे ही पेश करते रहेंगे।

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