डॉ. भावप्रकाश गांधी “सहृदय”
सहायक प्राध्यापक-संस्कृत,
सरकारी विनयन कॉलेज
गांधीनगर, गुजरात।
संस्कृत केवल भाषा नहीं है परंतु सत्य सनातन भारतीय संस्कृति की संवाहिका भी है । यह भाषा किसी न किसी रूप में विश्व के कोने कोने में व्याप्त है । संस्कृत साहित्य विश्व का सबसे समृद्ध साहित्य माना जाता है । यह साहित्य निर्माण की परंपरा वेद काल से लेकर अद्यावधि अनवरत रूप से इस धरा पर प्रवर्तित होती रही है उसमें भी गद्यकाव्य, महाकाव्य और नाट्यों की अधिकता संस्कृत की जीवंतता को द्योतित करता है । इस साहित्य निर्माण की परंपरा में कुछ काल में हमें एक वेग दिखाई देता है तो किसी काल में यह परंपरा विच्छिन्न सी दिखाई देती है । इस तरह कहा जाए कि 11वीं शताब्दी के आसपास के समय से लेकर 18 वीं शताब्दी तक संस्कृत ग्रंथों की रचना में हम थोड़ा सा ह्रास देख सकते हैं इसका मुख्य कारण रहा है भारतवर्ष का पराधीन होना । लेकिन 19वीं शताब्दी से लेकर आज तक पुनः संस्कृत साहित्य निर्माण की परंपरा में अत्यंत वेग दिखाई दे रहा है । आज हमें साहित्य की नई विधाओं में भी संस्कृत की अनेक रचनाएं दिखाई देती हैं । संस्कृत के गवेषक स्पष्टरूप से कहते हैं कि 19वीं शताब्दी से लेकर अब तक मात्र महाकाव्यों की ही बात करें तो 350 से ज्यादा महाकाव्यों की रचना हुई है । फिर नाटकों के बाद उपन्यास, गजलकाव्य, लघुकथा, यात्राकाव्य, नवगीत, आत्मकथा संगीतिका, नवीन छंदकाव्य, अछान्दस काव्य, स्पश कथा, लोकगीतिकाव्य, मुक्त छंदकाव्य, रेडियो-रूपक, समस्यापूर्तिकाव्य, पत्रसाहित्य, लघुकथा और सुभाषित काव्य इस प्रकार इन सभी नवीन प्रचलित विधाओं में संस्कृत साहित्य में अनवरत रचना होती रही है । संस्कृत साहित्य में सुभाषितों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है ।
सुभाषितों में कम शब्दों में सरलता और सहजता के साथ अगाध ज्ञान प्राप्त होता है । उस में निहित उदात्त विचार मानवमात्र के लिए पथप्रदर्शन का काम करते रहे हैं ।
जिस तरह शहद के साथ कडवी औषधि भी दी जा सकती है, उसी तरह इन सुभाषितों के माध्यम से समस्त मानवजाति को जीवनोपदेश, प्रशंसा, व्यावहारिक ज्ञान, उपालंभ, नीतिमत्ता, आचार, विचार और प्रामाणिकता आदि मूल्यविषयक बोधपाठ भी दिया जा सकता है । वास्तव में सुभाषित ऊपर से दृश्यमान एक ऐसा शिखर है जिसके नीचे विशाल विचारों का पर्वत समाहित रहता है । सुभाषित मंदिर के ऊपर दिखाई देने वाला वह ध्वज है जिसके तले सत्याचरण का विशाल महालय स्थित रहता है । सुभाषित आकाश में स्थित वह सूर्य है जिससे सम्पूर्ण जगत् प्रकाशित होता है । इस प्रकार सुभाषित का एक छोटा सा पद भी विचार की दृष्टि से दिशा देने वाला, जीवन को सही मार्ग दिखलाने वाला और समाज को सुव्यवस्थित बनाने में अत्यन्त उपादेय सिद्ध होता है । सुभाषितों की पहली विशेषता यह है कि ये सुभाषित अनुभवसिद्ध होते हैं अर्थात् हजार लाखों मनुष्यों की पीढी दर पीढी के अनुभव से प्रकट होता है और दूसरी विशेषता यह है कि ये सुभाषित आउट ओफ डेट नहीं होते , चाहे समय बदल जाए, नीति-रीति बदल जाए,देश-काल-परिस्थिति बदल जाए पर उनका महत्त्व यथावत् रहता है, जैसा आज सुभाषितों का महत्त्व है वह महत्त्व प्राचीन काल में उतना ही था और भविष्य में भी उतना ही महत्त्व रहेगा । इस प्रकार सुभाषित सदा सर्वत्र, सभी के लिए उपयोगी होते हैं ।ऐसे ही सुभाषितों के महत्व को बाल्यकाल से जानते हुए और जीवन के अनेक क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता को देखते हुए मन में विचार आया कि ऐसे ही सुभाषितो की रचना करते हुए हम लोगों को एक अच्छी प्रेरणा सुंदर विचार और जीवन के लिए कुछ उपयोगी पाथेय प्रदान कर सकते हैं । इसी उद्देश्य को मन में रखते हुए करीब 500 सुभाषितो का निर्माण हमने लगभग 2 वर्ष की अवधि में संपन्न किया है । दूसरा इन सुभाषितो को लोगभोग्य बनाने हेतु हमने सुभाषित के साथ उसके अनुरूप चित्र का भी संयोजन का कार्य किया । जिससे लोगों को इन सुभाषितों के प्रति स्वाभाविक आकर्षण उत्पन्न हुआ । लगभग प्रतिदिन 2000 लोगों तक ये सुभाषित पहुंचने लगे और सोशल मीडिया के माध्यम से भी हजारों की संख्या में उन सुभाषितों को पढने वाले सहृदय मिले । हमारे सुभाषितों की एक विशेषता यह भी रही है कि हमारे सुभाषित प्रत्येक मानव को उनके जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं या जीवन में घटने वाली घटनाओं को ध्यान में रखकर उनके साथ एक सुंदर सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करते हैं । इस प्रकार प्रतिदिन सुभाषितों के माध्यम से संस्कृत भाषा के प्रचार- प्रसार और उसमें निहित उदात्त विचारों के संप्रेषण का एक सुंदर उपक्रम हमारे सुभाषितों के माध्यम से हुआ है । उनमें से कुछ सुभाषित आप के रसास्वाद हेतु प्रस्तुत किए जा रहे हैं ।
भव्यभास्करभाभूता भासादिभिर्हि भासिता ।
भागीरथी तु भाषाणां भारते भातु भारती ।।
भव्य सूर्य के प्रकाश की तरह देदीप्यमान, भास आदि कवियों के द्वारा काव्यरूप में प्रकटित, सभी भाषाओं की भागीरथी जननी संस्कृत इस भारत में प्रकाशित होवे ।।
आत्मीया: खलु सेव्यास्ते सम्मान्याश्च सदा भुवि ।
असम्मानाद्गतास्तर्हि नायान्ति जीवने पुनः ।।
इस संसार में जो आत्मीय होते हैं उनका आश्रय लेना और सम्मान देना चाहिए क्योंकि एक बार सम्मान न देने से वे चले गए तो जीवन में कभी वापिस नहीं आते ।।
प्रणय: परमात्मा च साकारेण यदा भुवि ।
एकं रूपं तयोर्प्रोक्तं माता जाता तदा भुवि ।।
जब पृथ्वी पर प्रेम और परमात्मा को साकार रूप में आना हुआ तब वे दोनों माता के रूप में इस धरा पर उतर आये ।।
सन्मित्रं विपदि ज्ञेयं न सुखे न च सम्पदि ।
लोके प्रकाशित: काचो दिवसे सूर्यसन्निधौ ।।
सच्चा मित्र जीवन में विपत्ति आए तभी जाना जाता है सुख या संपत्ति में नहीं , क्योंकि जगत् में सूर्य के सान्निध्य से तो दिन में कांच भी चमकता है ।।
कस्तेन भोजनकृतेन जनस्य लाभो
येनायुषः क्षयकराः प्रभवन्ति रोगाः।
किं भेषजस्य विहितेन ततो नितान्तं
दुर्गन्धवारणविधौ हि यथास्ति धूपः।।४।।
इस लोक में मनुष्य को उस भोजन के करने से क्या लाभ ? जिससे आयु को हानि पहुंचाने रोग हो जाए और उसके बाद औषधि लेनी पड़ जाए । यह दुर्गंध को दूर करने के लिए अगरबत्ती जलाने जैसा है ।।
अर्थो हि मातुर्यदि काम्यते चेत्
लोके तु कोषाः बहवो भवन्ति ।
भावार्थबोधाय तु वर्ततेऽयं
कोषोऽद्वितीयो हृदयस्य साक्षात्।।१३।।
माता शब्द के अर्थ जानने की इच्छा हो तो उसके लिए संसार में कई शब्दकोश हैं, किन्तु माता शब्द का भावार्थ तो केवल अद्वितीय हॄदय के कोष में से ही मिलता है ।।
आरोग्यमाद्यं परमं सुखं नो
विद्याधनं तच्च सुखं द्वितीयम्।
नीत्या धनोपार्जनमस्ति शर्म
जोषं च शान्त्या मरणं तुरीयम्।।१८।।
जीवन में सर्वप्रथम सुख आरोग्य है, दूसरा सुख विद्याधन की प्राप्ति है, तीसरा सुख नीति से धन कमाना है और चौथा सुख शांत चित्त से मृत्यु पाना है ।।
दुःखातपे सुखजलेन समा हि वृष्टि-
रज्ञानघोरतिमिरे द्युतिभावदृष्टि:।
चन्द्राच्च वै मलयजादपि यत्र शैत्यं
लोके बुधा: सुमनस: किल सख्यमाहु:।।
इस लोक में जो दुःखरूपी धूप में सुख के जल के समान बरसता है, घोर अज्ञानरूपी अंधकार में जो प्रकाश के समान दिखाई देता है और जिसमें चंद्रमा और चंदन से भी ज्यादा शीतलता है; उसे विद्वान सज्जन मित्रता कहते हैं ।
Very useful and informative.Tq for the worthy podcast Bhavana ji
Thank you so much Radhika ji
सहृदय को सहृदय नमन 🙏
सुभाषित होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भावना जी जो सराहनीय काम कर रही हैं उसके लिए उनका हृदय से धन्यवाद।