About Us

किसी भी कार्य के पीछे कोई न कोई उद्देश्य या प्रयोजन अवश्य होता है।अपने ब्लॉग के द्वारा मैं हिंदी भाषा और साहित्य के लिए अपना किंचित योगदान भी दे सकूँ तो स्वयं को धन्य समझूंगी।मेरा प्रथम प्रयास यह होगा कि ऐसे कवि और साहित्यकार जिनकी रचनाएँ अनमोल और अद्वितीय हैं परन्तु कुछ कारणों से जिन पर अधिक प्रकाश नहीं डाला जा सका,ऐसे साहित्यकारों को आगे लाना और हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों को उनपर अधिक से अधिक अध्ययन और शोध कार्य आदि के लिए प्रेरित करना।परन्तु एक महत्वपूर्ण बात मेरे ब्लॉग की यह है कि जैसा कि हम हमेशा से ही सुनते आए हैं कि ‘साहित्य समाज का दर्पण’ है तो इस बात का तात्पर्य यही है कि साहित्य समाज का न केवल कुशल चित्र है अपितु समाज के प्रति उसका कुछ उत्तरदायित्व भी है।समाज में फैली अनैतिकता,अराजकता,भ्रष्टाचार जैसे अवांछनीय और असामाजिक तत्वों के दुष्परिणाम को भी सामने लाना एक अच्छे साहित्यकार का कर्तव्य है।इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैं अपने ब्लॉग में हिंदी साहित्यकारों के जीवन,उनकी रचनाओं और बाकी के सभी पहलुओं पर तो आपके साथ अपने विचार साझा करुँगी ही परन्तु इसके साथ ही समाज की उन सभी समस्याओं और कुरीतियों को भी अपने लेखों में शामिल करुँगी जिनका प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव हमारे साहित्य पर पड़ता है।हर युग की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक सभी दशाओं ने हमेशा ही साहित्य को प्रभावित किया है इसलिए मैं इन पहलुओं पर तो आपके साथ चर्चा करुँगी ही परन्तु एक बात अवश्य कहना चाहती हूँ कि हम सभी के साथ जीवन में कोई न कोई ऐसी बात अवश्य होती है कि वह हमें भीतर तक चुभ जाती है लेकिन उस चुभन को महसूस करने के बावजूद भी हम कुछ कर नही पाते और इसी प्रकार कुछ ऐसी बातें भी होती हैं कि हम दूसरों को कुछ चुभन देना चाहते हैं लेकिन कोई जरिया न होने से दिल की बात दिल में ही रह जाती है।कई वर्षों से यह चुभन जो मेरे दिल में भी थी,उसे निकालने का एक सार्थक प्रयास मुझे ब्लॉगिंग द्वारा लगा लेकिन मैं कोई ऐसी चुभन किसी को भी नही देना चाहती जिससे किसी की भी भावनाएं आहत होती हों। मैं चाहती हूँ कि मेरे लेखन से एक ऐसी चुभन मेरे पाठकों को लगे कि वे सिर्फ़ यह सोचें कि ‘अरे यह तो हम भी महसूस करते थे या सोचते थे पर कभी कह नही सके।’ मेरी चुभन मेरे सभी पाठकों के दिल की चुभन हो जो वे कभी न कभी महसूस करते ही हैं और अपने लेखों के द्वारा मैं इन कुरीतियों या बुराइयों के ख़िलाफ़ जो कुछ चुभन भरे शब्द कहूँ तो वह उन बुराइयों या कुरीतियों को ऐसे चुभें कि वे अपनी जड़ों सहित ही हमारे देश से विदा हो जाएँ।शायद मेरे पाठक मेरे ब्लॉग के नाम को रखने का मेरा प्रयोजन समझ ही गये होंगे।दो पंक्तियाँ ऐसे ही लिख डालीं ……

‘कुछ’शब्दों की चुभन दिल में लगी तीर जैसी,

‘कुछ’शब्दों को ही कमान पर चढ़ाया मैंने।

 डॉ भावना घई

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