प्रकृति से हमें अनंत कल्पनाएं और असीम प्रेरणाएं मिलती हैं, परंतु आज के रोबोटिक युग में शायद हमारी संवेदनाएं कहीं गुम होती जा रही हैं, तभी प्रकृति भी जैसे हमसे रूठती जा रही है। हम तो उस देश के वासी हैं जहां प्रकृति के कण-कण में हम एक चेतना, एक प्रवाह का अनुभव करते हैं लेकिन सच कहूं तो इस भाग-दौड़ भरी दुनिया में इतना संवेदनशीलता से सोचना भी जैसे भारी होता जा रहा है, फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इस प्रकृति के हर कण में अपने आप को महसूस करते हैं।
आपने अभी हमारे “चुभन पॉडकास्ट” में कुछ कार्यक्रम ऐसे देखे, जिन्हें हमने उत्तराखंड की टिहरी विधानसभा के विधायक किशोर उपाध्याय जी के मार्गदर्शन में ही बनाया, उन्होंने ही हमें जल-संरक्षण और हिमालय के बारे में, उसके अस्तित्व के बारे में बहुत सी बातों से परिचित करवाया।
प्रधानमंत्री जी की कतर के अमीर से वार्ता –
18 फरवरी को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का एक ट्वीट आया, जिसमें उन्होंने कतर देश के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के साथ वार्ता की, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर समझौते तो हुए ही, लेकिन उसमें “ग्रीन हायड्रोजन” को लेकर भी आपस मे साथ मिलकर कार्य करने की बात की गई।
ग्रीन हायड्रोजन को लेकर विधायक किशोर उपाध्याय जी की चिंता –
इस ट्वीट के बाद ही विधायक किशोर उपाध्याय जी थोड़ा सोच में पड़ गए, उन्होंने हमलोगों से भी बात की और हमें कहा कि हमलोग इस ओर कुछ जानकारी एकत्र करें कि क्या ग्रीन हायड्रोजन के उत्पादन से पानी की कमी का और खतरा नही बढ़ जाएगा ?
हमने कुछ विषय विशेषज्ञों से बात की तो उनका जो कहना था, उससे निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि किशोर उपाध्याय जी की चिंता गलत नही है।
ग्रीन हायड्रोजन क्या है ? –
ग्रीन हाइड्रोजन एक प्रकार की हाइड्रोजन ऊर्जा है जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करके प्राप्त की जाती है। यह एक स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा स्रोत है जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कतर के अमीर के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग पर चर्चा की है। इस चर्चा में दोनों देशों ने ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में सहयोग करने की संभावनाओं पर बात की।
ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में पानी लगता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन आमतौर पर पानी के इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से किया जाता है, जिसमें पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है।
इस प्रक्रिया में, पानी को एक इलेक्ट्रोलिसिस सेल में रखा जाता है, जहां एक इलेक्ट्रिक करंट का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है। इस प्रक्रिया में, हाइड्रोजन गैस का उत्पादन होता है, जो ग्रीन हाइड्रोजन के रूप में जाना जाता है।पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होता है। अतःअनुमान है कि हर किलोग्राम ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए नौ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। अब प्रश्न यह कि पानी इतना है ??
ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी की आवश्यकता को कम करने के लिए, वैज्ञानिक नए तरीकों का विकास कर रहे हैं, जैसे कि
समुद्री जल का उपयोग –
समुद्री जल का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी की आवश्यकता को कम किया जा सकता है, परंतु फिर वही किशोर जी वाली चिंता कि समुद्र भी तो सिसक रहे हैं। अभी हमने पिछला कार्यक्रम जो किया “रूठती नदियां और तड़पता सागर” https://chubhan.today/ruthti-nadiyan-aur-tadapta-sagar/ उसमें आप किशोर उपाध्याय जी से सुन ही चुके हैं गंगासागर की स्थिति के बारे में…… भारत में पानी की कमी की समस्या पहले से ही मौजूद है। इसीलिए किशोर जी की चिंता वाजिब है।
हालांकि, भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए पानी की आवश्यकता को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
इसके अलावा, भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए कई नई प्रौद्योगिकियों का विकास करने के लिए कुछ परियोजनाएं शुरू की हैं, जो पानी की आवश्यकता को कम कर सकती हैं।
परंतु पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वालों के साथ जब हमने बात की तो उन सबने यह कहा कि जैसा टिहरी के विधायक किशोर उपाध्याय जी भी कहते हैं कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए पानी की आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए, भारत सरकार को पानी की कमी की समस्या को हल करने के लिए और अधिक कदम उठाने होंगे।
ग्रीन हाइड्रोजन एक वरदान हो सकता है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं। यहाँ कुछ बिंदु दिए गए हैं जो इसके वरदान और अभिशाप दोनों पक्षों को दर्शाते हैं –
अगर हम यह कहें कि ग्रीन हायड्रोजन वरदान है तो निःसंदेह ऐसा है, क्योंकि यह
एक शुद्ध ऊर्जा स्रोत है जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकता है।
इसके साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा से किया जा सकता है।
ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है क्योंकि यह एक स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा स्रोत है और इन सबके साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन और उपयोग आर्थिक लाभ प्रदान कर सकता है, जैसे कि रोजगार के अवसर पैदा करना और ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम करना।
जब हमने किशोर जी से ग्रीन हायड्रोजन के इन सब लाभों का ज़िक्र किया तो उन्होंने इसके दूसरे पहलू या कह सकते हैं कि ग्रीन हायड्रोजन का उपयोग एक अभिशाप न हो जाए, ऐसा भी हमें बताया।
उनका कहना था कि ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में पानी की आवश्यकता होती है, जो पानी की कमी वाले क्षेत्रों में एक चुनौती हो सकती है।
दूसरी सबसे प्रमुख समस्या यह है कि ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन अभी भी एक महंगी प्रक्रिया है, जो इसके व्यापक उपयोग को सीमित कर सकती है और इसके साथ ही
ग्रीन हाइड्रोजन का भंडारण और परिवहन एक चुनौती हो सकता है क्योंकि यह एक ज्वलनशील और विस्फोटक गैस है।
ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन और उपयोग अभी भी एक विकासशील प्रौद्योगिकी है, जिसमें कई सीमाएं और चुनौतियाँ हैं।
इसलिए, ग्रीन हाइड्रोजन को एक वरदान या अभिशाप के रूप में देखना इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसके उत्पादन और उपयोग को कैसे संभालते हैं और इसकी चुनौतियों का समाधान कैसे करते हैं और निसंदेह सबसे बड़ी चुनौती पानी की है। अभी भी हमारे देश ही क्या पूरे विश्व की सबसे बड़ी समस्या जल को लेकर है। हमारे प्रधानमंत्री जी, जो स्वयं एक संवेदनशील व्यक्तित्व हैं और स्वयं को वे “गंगापुत्र” भी कहते हैं, इसलिए जैसा कि किशोर उपाध्याय जी ने भी उनके बारे में हमारे पिछले कार्यक्रम में बताया था कि अब से नही, बल्कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री भी नही बने थे, तब से केदारनाथ या बद्रीनाथ या हिमालय के अन्य स्थानों पर इतनी श्रद्धा, इतनी निष्ठा और विश्वास से आते थे कि हम सब उस बारे में सोचकर भी नतमस्तक हो जाते हैं, इसलिए हमारे देश का शीर्ष नेतृत्व हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब इतने प्रकृति प्रेमी या कह लें कि प्रकृति के उपासक हैं तो शायद हमें किसी चिंता की ज़रूरत ही नही, लेकिन पुनः हम किशोर उपाध्याय जी के शब्दों को ही दोहराना चाहेंगे कि अगर अभी भी हम हिमालय, गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों और समुद्र आदि के https://chubhan.today/ganga-himalaya-environmental-significance/ अस्तित्व को बचाने के लिए सचेत न हुए तो आने वाले एक या अधिक से अधिक 2 दशक बाद हमें पानी की उस कमी से जूझना होगा, जिसके बारे में कल्पना भी आज करना मुश्किल है और किशोर जी के ही शब्दों में अगर हम इस समस्या के समाधान पर कुछ सोचें और दुनिया के अन्य देशों को साथ लेकर चलें, उन्हें भी आगाह करें तो निसंदेह भारत “विश्वगुरु” बन सकता है और यह पुनीत कार्य हमारे प्रधानमंत्री जी ही कर सकते हैं और वे इतने चिंतनशील व्यक्तित्व हैं कि ऐसा न सोचते हों, यह असंभव है। फिर भी हमलोग अपने मन की बात अपने प्रधानमंत्री जी को कहकर बस आश्वस्त होना चाहते हैं।
विश्व चिंतन दिवस -World Thinking Day
अभी मैंने चिंतनशील व्यक्तित्व लिखा तो अचानक ही मुझे याद आ गया कि आज “विश्व चिंतन दिवस” (World Thinking Day) भी है, और जैसा कि हमारे विधायक किशोर जी हमेशा ही यह शब्द दोहराते है कि हमें चिंतन मंथन करके ही कोई समाधान निकालना होगा, तो आज के दिन से ही हम सब यह प्रण करें कि जल, जंगल और जमीन के संवर्धन के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहेंगे। किशोर जी ने वर्षों तक प्रख्यात और वरिष्ठ पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जी के साथ भी कार्य किया और अब वे उन्हीं परंपराओं को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
किशोर उपाध्याय जी के शब्दों से ही मैं इस आलेख का अंत करना चाहूंगी –
“जैसे ही मैंने प्रधानमंत्री जी का ट्वीट देखा, जिसमें उन्होंने कतर के अमीर, शेख तमीम बिन हमद के साथ अन्य विषयों के अलावा ग्रीन हायड्रोजन पर भी बात की तो मेरा मन बस इसलिए तड़प गया कि इसी ग्रीन हायड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए ही विभिन्न देशों के साथ मिलकर हमारा देश, हमारे प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में क्यों नही जल संरक्षण और हिमालय आदि के अस्तित्व को बचाने के लिए भी कुछ और प्रयास करता ? निसंदेह प्रधानमंत्री मोदी जी इन सब विषयों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर कोई ठोस योजना तो ज़रूर बनाते ही होंगे, परंतु हिमालय का पुत्र होने के नाते और टिहरी विधानसभा सीट का विधायक होकर इस भूमि की सेवा करने का जो अवसर मुझे मिला और अपने जीवन के चार दशक सिर्फ जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई लड़ते लड़ते मैं अपना इतना हक तो समझता हूं कि प्रधानमंत्री जी को अपने भावों से अवगत करवा सकूँ।”