आप सभी डॉ. सत्या सिंह जी से भली भांति परिचित हैं। आपने जिन विषयों या जिन मुद्दों पर अपनी लेखनी उठाई, उनके बारे में यही कहना पड़ेगा कि आपके चिंतन को, आपके लेखन को नमन है। गहन-गंभीर विषयों पर उनके विचारों से हम आपको अवगत करवाते ही रहते हैं।
आज उनका संवेदनशील कवयित्री वाला रूप आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का मन कर रहा है क्योंकि वहां भी आपको कुछ नया, कुछ सृजनात्मक देखने को मिलेगा।
डॉ. सत्या सिंह जी ने “हाइकू” कविताएं लिखीं हैं और वह भी पूरे भाव के साथ….. कुछ शब्दों में ही पूरा अर्थ आपके समक्ष रखने की ताकत है उनकी लेखनी में।
उनसे हमने “हाइकू” के बारे में जाना। “हाइकू” जापानी विधा है। भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि को यह कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर का जापानी तोहफा है। हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में नई विधा है “हाइकु” । यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके जापानी यात्रा में प्रसिद्ध जापानी हाइकुकार मासाओका की कविताओं के बांग्ला भाषा में अनुवाद के रूप में उन्होंने सर्वप्रथम हिंदुस्तान की धरती पर इसे प्रस्तुत किया, परंतु इससे पहले लंबे समय तक यह साहित्यिक विधा हिंदुस्तानी साहित्य जगत में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना पायी थी।
हाइकू –
“हाइकू” 17 वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है, इनमें 3 पंक्तियां होती हैं । प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं । संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है जैसे
( सुगन्ध )शब्द में तीन वर्ण हैं – ( सु-1, ग-1,न्ध-१ ) । तीनों वाक्य अलग अलग होने चाहिए अर्थात एक ही वाक्य को 5, 7 , 5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है, बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियां होनी चाहिये। “हाइकू” विधा में यदि हम लिख रहे हैं तो 5, 7, 5 का अनुशासन तो रखना आवश्यक है। तीन पंक्तियों के लघु गीत में 17 मात्राओं के साथ अपनी बात स्पष्टता से कह देने का हुनर भी सबमें नही होता।
👆 उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जी के साथ डॉ. सत्या सिंह जी।
मुझे लगता है कि अधिक शब्दों में अपनी सारी बात कहने की स्वतंत्रता जब हमारे पास होती है, तब काम आसान होता है, लेकिन कम शब्द, वह भी मात्राओं के बंधन और फिर उसमें अपने शब्दों से एक ऐसा भाव-चित्र बना देना कि पढ़ने वाले के समक्ष सारा भाव स्पष्ट हो जाए, कोई आसान काम नही है।
और मैंने तो डॉ. सत्या सिंह दीदी से बात करते हुए उनसे कहा कि आज जब लोग हर तरह के बंधन त्याग रहे हैं, लेखन में भी कोई बंधन मानने को तैयार नही, तब आपके जैसी शख्सियत, छंद के बंधन को स्वीकार कर तीन पंक्तियों में मात्र 17 मात्राओं के साथ अपने मन के भाव हम पाठकों, श्रोताओं तक पहुंचा रही है, आपको सलाम है, इसपर अपनी चिर परिचित मुस्कुराहट के साथ आप कुछ पल रुकती है, फिर आगे अपनी बात करने लगती हैं।
उन्होंने “हाइकू” पर एक बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक लेख हम सबके लिए तैयार किया है, जिसे पढ़कर हमलोग “हाइकू” के बारे में अत्यंत ही सरल शब्दों में जान पाएंगे। उस लेख को मैं अगले भाग में आपके लिए प्रकाशित करूंगी और उनके कुछ हाइकू गीत भी आप सबके लिए दूंगी।
परंतु आज मैं उनके द्वारा रचित “हाइगा” आपके लिए लाई हूं। मुझे जब उन्होंने अपने “हाइगा” दिखाए तो मुझे इतने अच्छे लगे, वह पढ़ने में भी और देखने में भी कि मैंने जल्दी से आज आपके लिए वह प्रकाशित कर दिये।
हाइगा –
आप सब जानते ही होंगे कि “हाइगा” क्या है ? हाइगा जापानी चित्रकला की एक शैली है। अधिकतर “हाइगा” को हाइकू कवियों द्वारा चित्रित किया जाता है, हाइकू कविता के साथ। कहने का तात्पर्य यह है कि हाइकू कविता को ही जब उसी भाव के चित्र के साथ प्रकाशित कर दिया जाता है तो वह “हाइगा” विधा हो जाती है। हाइकू वाले ही सारे छंद बंधन होते हैं।
3 पंक्तियां, 17 मात्राओं के साथ, बस उन्हें उसी भाव के चित्र के साथ प्रकाशित करते ही वह “हाइगा” के रूप में हम सबके समक्ष आ जाती है।
मैंने डॉ. सत्या जी से उनके कुछ “हाइगा” के भाव-चित्र लेकर आपके लिए प्रस्तुत किये हैं।
देखिए उनके “हाइगा” के भाव-चित्रों की एक अनुपम झांकी –
👆प्रकृति का आलंबन लेकर दिल की बात कह दी।
मेरा निवेदन है कि एक एक चित्र को ध्यान से देखें। चित्रों की खूबसूरती तो है ही, लेकिन देखिए कितने सुंदर शब्द चित्र हैं, हर चित्र कोई न कोई संदेश दे रहा है। तकनीकी रूप से “हाइकू” के सारे नियमों को अपनाते हुए चित्रों में खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत किया है। इन सारे चित्रों के साथ “हाइगा” पर सत्या जी की पुस्तक प्रकाशनाधीन है और बहुत जल्द उनकी पुस्तक हम सबके हाथों में होगी।