Skip to content Skip to footer

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

‘कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन’ इस गाने को सुनते ही हम सब अपने पुराने दिनों में खो ही जाते हैं।अतीत कैसा भी हो उसकी स्मृतियाँ स्याह-सफ़ेद जैसी भी हों लेकिन याद हमेशा दिल में रहती ही है।कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हमारे अतीत का एक हिस्सा ही होती हैं।जैसे टेलीविज़न पर जब डेली सोप का शुरुआती दौर शुरू हुआ तो ‘हमलोग’,’बुनियाद’ और ‘यह जो है ज़िन्दगी’ जैसे सीरियलों के पात्र हमारे परिवारों का ही एक हिस्सा हो गये।रामानंद सागर की ‘रामायण’ और बी.आर.चोपड़ा की ‘महाभारत’ को आज भी हम भूले नहीं हैं।जो भी लोग उस दौर में थे चाहे अधेड़,चाहे जवान या किशोरवय सभी मैं देखती हूँ कि आज भी उसी दौर को मिस करते हैं।चाहे आज सेटलाइट चैनलों के द्वारा चौबीस घंटे टी.वी.पर धारावाहिक आते रहते हैं और सारा दिन फिल्मों का दौर भी जारी रहता है और पूरा दिन नए पुराने हर दौर के गाने दिखाने वाले म्यूजिक चैनल भी हो गये हैं लेकिन जो मज़ा उस आधे घंटे के ‘चित्रहार’ में और ‘रंगोली’ में आता था या हफ्ते में एक या दो दिन आधी अधूरी काट-पीट कर दिखाई गई दूरदर्शन की पिक्चर में आता था वह आज के पूरे दिन के कार्यक्रमों में नहीं है।कह सकते हैं कि वे कार्यक्रम हमारी रूह,हमारी आत्मा पर असर करते थे लेकिन आज सिर्फ शरीर ही रह गया है आत्मा तो कहीं खो-सी गई है।आज के बच्चे शायद मेरे इस लेख के आशय को न समझ सकें लेकिन उस दौर में जो लोग 14-15 वर्ष के भी थे उन्होंने भी मेरी इस भावना को ज़रूर महसूस किया होगा।

इसी तरह आजकल हर तरफ नव वर्ष की रौनक छाई हुई है।हम भी बचपन और अपनी जवानी के आरंभिक दौर को याद करें तो इसी तरह उल्लास और उमंग हमारे अन्दर भी होती थी।एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामना देने की भी होड़ रहती थी लेकिन उस दौर में आज की तरह सोशल मीडिया तो था नहीं कि फेसबुक या व्हाट्सएप पर कोई सन्देश भेज दिया और हो गई फुर्सत।उस दौर में अपने से बड़े बुजुर्गों के पास जाकर हम नव वर्ष की शुभकामना देने और उनका आशीर्वाद लेने में अपने को भाग्यशाली समझते थे।लगता था कि आज के दिन कुछ बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद मिल गया तो मतलब पूरा साल हमारा अच्छा और ख़ुशी से बीतेगा।परन्तु आज यह सब कम नहीं बल्कि ख़त्म ही हो चुका है।आज तो सोशल मीडिया ही हम सब पर भारी बैठ गया है।उसी पर बधाइयों का दौर शुरू होकर कब ख़त्म हो जाता है पता ही नहीं चलता।समूह (बल्क) में सन्देश भेज दिए जाते हैं।सच बताइयेगा कि कभी भी आप ऐसे संदेशों के आदान-प्रदान से कोई जुड़ाव महसूस कर पाते हैं?मुझे पता है ज़्यादातर लोगों का जवाब ‘नहीं’ ही होगा।

इन सब बातों को तो हम सभी कभी न कभी महसूस करते ही हैं लेकिन मुझे इधर बीते एक-दो हफ़्तों में इसका एहसास ज्यादा हुआ जब देश और प्रदेश के हालातों के मद्देनज़र प्रशासन ने इन्टरनेट को पूरी तरह बंद कर दिया।चले गये थे न हम सब भूतकाल में।आज से पंद्रह-बीस वर्ष पूर्व जब हमने इन्टरनेट की मायावी दुनिया में कदम नहीं रखा था।लैंडलाइन होती थीं या फिर काफी समय बाद बटन वाले मोबाइल आये तो इन्हें रखना एक स्टेटस सिम्बल माना गया और हम सब अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से बात करके जो ख़ुशी हासिल करते थे वह आज अनलिमिटेड कॉल के दौर में भी घंटों बात करके नहीं महसूस होती।इंटरनेट के जीबी,एमबी और केबी के जाल से कुछ ही दिन के लिए ही जब हम निकले तो हमें बीते हुए दौर के वापस आ जाने का एहसास हुआ हालाँकि आज हम इस इन्टरनेट पर इतना ज्यादा निर्भर कर गये हैं कि बहुत सारी दिक्कतें भी आईं लेकिन बीता सुनहरा दौर भी कुछ दिन के लिए आया।कोई भी अवसर हो फेसबुक पर इतने लोग बधाई देते हैं कि बहुत सारे लोग जो इस प्लेटफार्म पर ज्यादा एक्टिव रहते हैं उनके लिए सबकी बधाई लेना और जवाब देना भी असंभव हो जाता है लेकिन इन कुछ दिनों में हमने फोन पर उन्हीं लोगों से दिल खोल कर बात की जो हमारे दिलों में बसते हैं न कि फेसबुक फ्रेंड्स की लिस्ट में।कुछ दिनों के लिए ही सही फेसबुक,व्हाट्सएप,ट्विटर इन्स्ताग्राम और टिकटॉक जैसे हथियारों के चंगुल से हमने मुक्ति प्राप्त की।व्हाट्सएप और फेसबुक पर दोस्तों और रिश्तेदारों को गुडमॉर्निंग,गुडनाईट और अच्छे अच्छे सन्देश और चुटकुले भेजने का दौर जब रुका तो एहसास हुआ कि बहुत से हमारे अपने ऐसे हैं जिनकी आवाज़ सुने भी कई दिन हो गये ऐसे में फोन पर जी भर कर बातों का सिलसिला भी चला लेकिन मज़ेदार बात यह रही कि फोन पर या मिलने पर भी बातों का सिलसिला इन्टरनेट के बंद होने से ही शुरू हुआ और वही पर ख़त्म भी हुआ।इन्टरनेट के बिना कितनी तकलीफ है या जिंदगी कितनी रुक सी गई है इसी बात का डिस्कशन इन आठ-दस दिनों में सबसे ज्यादा रहा।लेकिन एक बात जो सबसे ज्यादा महसूस की गई कि इन्टरनेट के इस दौर में जब बच्चे सारा दिन मोबाइल में ही घुसे रहते हैं और उसी में गेम खेलते हैं उनको बाहर निकलने का अवसर मिला।बहुत से माता-पिता को मैंने इन दिनों कहते सुना कि सरकार ने इन्टरनेट बंद करके अच्छा किया।कम से कम बच्चे मैदानों में तो दिखे।कुछ बुजुर्गों को भी मैंने ऐसा कहते हुए पाया कि ऐसा करके सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से समाज को जोड़ने का काम किया है।जो लोग सिर्फ सोशल मीडिया के द्वारा संदेशों से ही काम चलाते थे उन्होंने फोन करके या मिलकर हालचाल लिया तो उन्हें अच्छा लगा।बस एक बात कही जा सकती है कि कुछ दिन के लिए ही सही एक सुकून का अनुभव हुआ और ऐसा भी अनुभव हुआ कि इन्टरनेट के बिना भी जिंदगी चल सकती है जो कि हममें से ज़्यादातर लोग भूल चुके हैं परन्तु हर दौर का अपना मज़ा होता है इसलिए ठीक है आज टेक्नोलॉजी का युग है तो इन चीज़ों का भी मज़ा लें लेकिन ज़रा संभलकर।बस यह ध्यान रखें कि आपकी अपनी पहचान,अपनी रूह कहीं खो न जाए।

चलिए बस अब नव वर्ष आने को ही है।इस अवसर पर मैं अपने सभी पाठकों को ह्रदय से धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने मेरे लेखों को पढ़कर और समय-समय पर अपने सुझाव देकर मुझे प्रेरणा दी कि मैं और अच्छा लिख सकूँ।साथ ही आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।आप सब स्वस्थ रहें,प्रसन्न रहें और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करें।साथ ही मेरे उन अपनों को भी ईश्वर शांति और सब्र दे जिन्होंने किसी बहुत ही अपने को इस बीते वर्ष में खोया है।जो भी हमारे बीच की दुनिया छोड़कर ईश्वर के पास चले गये हैं उनकी आत्मा को सुकून मिले और उनके अपने भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए इस लौकिक दुनिया में अपने कर्तव्यों को निभाते हुए समय गुजारें।    

3 Comments

  • कामेंद्र देवरा
    Posted January 2, 2020 at 8:39 pm

    सपरिवार आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।।

  • Kiran Verma
    Posted January 13, 2020 at 3:28 pm

    लोहरी की बहुत बहुत बधाई आप सभी को

  • Kiransingh
    Posted January 17, 2020 at 8:53 pm

    Agreed

Leave a comment

0.0/5