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उल्लास और सामाजिक समरसता का महापर्व:दीपावली

उल्लास और समृद्धि के महापर्व दीपावली की मेरे सभी पाठकों को हार्दिक बधाई।ईश्वर हम सबको अज्ञान से ज्ञान की ओर,अशुभ से शुभ की ओर तथा अँधेरे से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग दिखाएँ।

दीवाली ही एकमात्र ऐसा पर्व है,जो भारत में सर्वत्र मनाया जाता है।हिमालय से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक सैकड़ों छोटे-बड़े त्यौहार मनाए जाते हैं,परन्तु उनमें से अधिकांश एक सीमित क्षेत्र में ही मना लिए जाते हैं।दीपावली ही एक ऐसा पर्व है जो क्षेत्र और प्रान्त की सीमाएं तोड़कर पूरे भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है।इस की एक विशेषता यह भी है कि यह केवल एकाध दिन में ही संपन्न नहीं हो जाता।इस की तैयारियां तो हफ़्तों पहले से ही होने लगतीं हैं जब हर घर को साफ-सुथरा करके अपने अपने हिसाब से सजाया संवारा जाता है।इसलिए इसे हफ़्तों तक चलने वाला त्यौहार भी कह सकते हैं।अगर तैयारियों को पर्व में शामिल न भी किया जाए तो भी यह त्यौहार पांच दिन तक चलता है।इन विशेषताओं के कारण ही दीवाली महापर्व का मुकुट धारण कर लेता है।

पर्व का अर्थ ही उल्लास की अभिव्यक्ति है।वर्षा समाप्त होने,नई फसल आने और अगली फसल की तैयारी शुरू करने जैसी कई महत्वाकांक्षी स्थितियां इस महापर्व के साथ मूलरूप से जुड़ी हुई हैं और उन स्थितियों में उल्लास उमगना स्वाभाविक ही है।

संस्कृत साहित्य में दीवाली के कई ऐसे सन्दर्भ मिलते हैं,जिनसे प्रतीत होता है कि इस पर्व का सम्बन्ध उल्लास और आनंद से ही रहा है।‘सुख रात्रि’ और ‘यक्ष रात्रि’ जैसे नाम दीवाली के उल्लसित रूप को और अधिक स्पष्ट करते हैं।हम सभी जानते हैं कि दीपावली के दिन वैश्य और व्यापारी अपने बहीखाते की पूजा करते हैं तथा अपने मित्रों,ग्राहकों और अन्य व्यापारियों का अभिवादन करते हैं।पुराने खाते प्रायः बंद कर दिए जाते हैं और नये खाते शुरू किये जाते हैं परन्तु दीवाली केवल वैश्यों या व्यापारियों का ही पर्व नहीं है।श्रम से मिली सफलता पर उल्लास अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए दीपावली समृद्धि की प्रेरणा और प्रकाश बाँटती है।दीपावली को सुखरात्रि बताते हुए प्रत्येक व्यक्ति द्वारा यह आनंदोत्सव मनाने का उल्लेख संस्कृत साहित्य में आता है।

दीवाली जन-जन का पर्व है तथा इसकी मूल प्रेरणा समृद्धि रही है।इस पर्व में प्रतीकात्मक रूप से समृद्धि की कई प्रेरणाएँ प्राप्त की जा सकती हैं।अमावस्या की घनीभूत रात्रि जैसा ही है दारिद्र्य,जिस में लिपट कर सब कुछ खोया और आँखों से ओझल हुआ रहता है।सम्पन्नता का प्रकाश उत्पन्न किया जाए तो अपने निकट का प्रत्येक आनंद प्राप्त किया जा सकता है।सम्पन्नता के लिए कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है परन्तु कोई भी परिश्रम इतना कठोर नहीं है कि किया ही न जा सके।पूरी पृथ्वी को ढँक लेने वाला अंधकार प्रथम दृष्टि में हताशा तो करता है कि इस से कैसे जूझा जाए?उसे परास्त करने का कोई उपाय नही सूझता।प्रकाश की इतनी विपुल मात्रा कहाँ से लाई जाए कि पूरे अंधकार को भगाया जा सके।हताश करने वाली यह चिंताएं उस समय व्यर्थ और अकारण सिद्ध हो जाती हैं,जब एक दीप जला लिया जाता है और काम चलने योग्य प्रकाश अपने आस-पास उत्पन्न कर लिया जाता है।पुरुषार्थ और श्रम का एक छोटा-सा दीपक दरिद्रता के अंधकार को अपने आस-पास से भगाने के लिए पर्याप्त सिद्ध होता है।समृद्धि श्रम का ही पुरस्कार है।स्वच्छता,सुरुचिपूर्ण सज्जा,सजगता और श्रम की प्रेरणा इस उल्लास आयोजन में बिखरी पड़ी है।इस प्रेरणा को जितना ग्रहण किया जा सके उतना ही समृद्धि का द्वार खुल जाता है।

One thought on “उल्लास और सामाजिक समरसता का महापर्व:दीपावली

  1. *🙏🏻शुभ दीपावली 🙏🏻*
    *सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा ।*
    *अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम् ॥*
    अर्थात्
    घना अंधकार फैल रहा हो, आँधी सिर पर बह रही हो, तो हम जो दिया जलाएं, उसकी दीवट सत्य की हो, उसमें तेल तप का हो, उसकी बत्ती दया की हो और लौ क्षमा की हो। आज समाज में फैले अंधकार को नष्ट करने के लिए ऐसा ही दीप प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है।
    *आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं* ।
    *🙏🏻शुभ दीपावली🙏🏻*

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