नारी स्वतंत्रता-प्रश्नचिन्ह
👆कुछ ‘चुभते’प्रश्नों के लिए इस लेख को पढ़ें।
अजय “आवारा” जी
एक और महिला दिवस (Women’s Day) का समापन हो गया। प्रश्न यह है कि, क्या इस बार भी, यह दिवस मात्र एक रस्म अदायगी बनकर रह जाएगा? पिछले दिनों, अहमदाबाद की एक प्रताड़ित महिला आयशा द्वारा की गई आत्महत्या ने महिला दिवस की सार्थकता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। इस अवसर पर ‘चुभन’ द्वारा विशेष कार्यक्रमों में इस पर गहन विमर्श किया गया। रंजना जी ने नारी से संबंधित विषयों को समाज में एवं अनेक मंचों पर बड़ी प्रखरता से उठाया है। उनका यही गुण ‘चुभन’ के कार्यक्रम में भी प्रमुखता से दिखाई दिया, परंतु क्या सिर्फ आवाज उठाने भर से समाधान हो जाएगा ? इस पर शशि जी के विश्लेषण ने हमारे विचारों को गति प्रदान की है। आवश्यकता इस बात की है, कि इस गति को हम सही दिशा दे पाएं। यह बिल्कुल सही है कि जब तक जमीनी स्तर पर कोई कार्य ना हो, तब तक यह सब कोरी बातों से ज्यादा कुछ नहीं।अगर हमें जमीनी स्तर पर बदलाव करना है, तो हमें हर दर जा कर नारी बदलाव की अलख जगानी होगी। बड़े शहरों में तो यही ज्वाला धधक उठी हैं, परंतु, छोटे शहरों एवं गांवों में तो यह अभी तक सुलगनी भी शुरू नहीं हुई है । ममता जी के अवलोकन ने, हमें इस पर सोचने पर मजबूर कर दिया है। सवाल यह उठता है कि इतने प्रचार-प्रसार के बाद भी, यह आंदोलन छोटे कस्बों और गांवों में सुप्त अवस्था में क्यों है? यहां तक कि, बड़े शहरों में भी निम्न वर्ग में इस आंदोलन का प्रभाव न्यूनतम ही है। महिला दिवस या महिला जागृति को सिर्फ नारा भर बना देने से कोई प्रयोजन सफल नहीं होगा। शोरी जी ने हमारे ग्रंथों में वर्णित नारी सम्मान का जिक्र किया। सवाल यह उठता है कि, ग्रंथों में वर्णित चरित्र एवं सम्मान को हम आज की नारी में कितना जागृत कर पाए हैं। ‘चुभन’ के विशेष कार्यक्रमों की श्रंखला को मैं कुछ सवालों के साथ विराम दूंगा। क्या यह नारी दिवस (Women’s Day)
भी मात्र औपचारिकता बन जाएगा? क्या हम महिलाओं के अधिकारों के प्रति और अधिक संवेदनशील हो पाएंगे? क्या हम संतुलित समाज का राजमार्ग तैयार कर चुके हैं? या फिर आयशा जैसी घटनाओं की पुनरावृति की प्रतीक्षा कर एक बार फिर आलोचनाओं की रस्म निभा कर शांत हो जाएंगे। आइए, अपनी कोशिश को थोड़ी और गहराई दें।
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Kiran Singh AGA ,Lko High court
निसंदेह औपचारिकता से परे हटकर सोचने का विषय नारी हित में …….