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‘संस्कृत दिन’ है लेकिन दीन नहीं

“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” अर्थात् संस्कृति का मूल संस्कृतभाषा है। संस्कृत भाषा ही भारतीय संस्कृति का आदिस्रोत है। संस्कृत भाषा में ही भारत के सांस्कृतिक विचार, उच्चादर्श और नैतिक मूल्य समाहित हैं।

आज ‘संस्कृत दिवस’ है।इस अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।आज हम मिलेंगे डॉ. अमृतलाल गौरीशंकर भोगायता जी से, जो ब्रह्मर्षि संस्कृत महाविद्यालय नडियाड गुजरात में प्रधानाचार्य हैं।आपके द्वारा किये गए कार्य ही आपकी विद्वता प्रदर्शित करते हैं।आपने 7 काव्यग्रंथो की रचना की है।अन्योक्ति काव्य में आपकी बहुत रुचि है। 2 विवेचन ग्रंथ और 5 ग्रंथ प्रकाशनाधीन हैं।पुरस्कार और सम्मानों की बात की जाए तो आप राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत हैं।भोगायता जी तत्कालीन विदेशमंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जी की गरिमामय उपस्थिति में वर्ष 2015 में थाईलैंड में हुए विश्वकवि सम्मेलन में काव्य-पाठ प्रस्तुत कर चुके हैं।आपने आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के वरद हस्तों से श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार प्राप्त किया।एकलव्य पुरस्कार, श्रेष्ठ आचार्य पुरस्कार आदि अन्य कई सम्मानों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं।आप विश्व संस्कृत मंच के गुजरात के अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।

 

 

संस्कृतदिवसः-

      -डॉ.अमृतलाल गौरीशंकर भोगायता

आजकल लोकजागृति के लिए एक अभिमान के रूप में, प्रतीक के रूप में, स्मृति के रूप में पूरी दुनिया में विशिष्ट दिनों का अनुभावन होता है। हम उन दिनों को मनाते हैं, क्योंकि वे लोककल्याण शाश्वत करते रहें, हमसे रूठ न जाएं। विशेषतः भारत तो त्यौहारों का, उत्सवों का देश है, यहां के हमारे महाकवि कुलगुरु कालिदास तो “उत्सवप्रियाः खलु मानवाः” लिखकर इस बात पर प्रमाण की एक मुद्रा सी लगा देते हैं। महाकविकालिदास का नाम लेते ही हमें संस्कृत भाषा का सहज स्मरण हो जाता है, क्योंकि इन दोनो में अद्वैतभाव है। हाँ तो हम संस्कृत की बात करें तो जिस भारत में संस्कृत भाषा संपूर्ण जीवन को चरितार्थ करती थी, उस देश में आज संस्कृत भाषा के संरक्षण के उपाय के रूप में सरकारश्री द्वारा श्रावणमास पूर्णिमा को संस्कृतदिवस घोषित किया गया है। ततः संस्कृतप्रेमी समाज ने संस्कृतसप्ताह मनाना सुनिश्चित किया। आज कल वे संस्कृतमय दिन मनाये जा रहे हैं। अतः इन दिनों संस्कृत दिवस की कुछ मीमांसा करनी प्रासंगिक मानी जाएगी । श्रावणमास में श्रवण का ज्यादा महत्त्व है और भाषा श्रवण का विषय है, अच्छा बोलने के लिए, अच्छी तरह सुनना बहुत अनिवार्य है, हमारे यहां पण्डितों में उत्तम पण्डित हो तो उसे बहुश्रुत पण्डित कहते हैं। भगवान ने जुबान एक दी है और कान दो दिये हैं अतः श्रवण का महत्त्व ज्यादा है। पूर्णिमा में चन्द्रपूर्ण होता और हम जानते हैं कि “पूर्णता गौरवाय” अतः श्रावणपूर्णिमा को संस्कृतदिन मनाया जाता है। इसी दिन रक्षाबन्धन त्यौहार भी होता है। हम संस्कृत की रक्षा के लिए बद्धपरिकर हो जाएँ तो फिर से ऋषिसंस्कृति व कृषिसंस्कृति आ जाएगी। इस दिन लोग यज्ञोपवित बदलते हैं। यहाँ भी संस्कृति के संरक्षण की बात है। देखा जाय तो इस दिन 1). संस्कृत दिवस, 2). रक्षाबंधन और 3). यज्ञोपवितविधि इन तीनों का त्रिवेणी संगम होता है। भाषा कभी भी अकेली नहीं आती उसके साथ संस्कृति भी आती है, जो देश के भविष्य की नीव मानी जाती है। संस्कृत भाषा भाषाओं में उत्तम हैं, भाषाओं की जननी है और हमारे देश की अनूठी पहचान है अतः एक भारतीय होने के नाते मैं संस्कृत दिवस मनाते हुए अपने आपको गोरवान्वित अनभूत कर रहा हूं।
कृतं देवभाषा परं नो मनश्चेत्
ततो जीवनं निष्फलं नैव शङ्का।

जयतु संस्कृतं जयतु भारतम्

2 Comments

  • Dr.rajendra pandya
    Posted August 22, 2021 at 1:02 pm

    संस्कृतं राष्ट्रभाषा भवतु
    संस्कृतं वैश्र्विकभाषा भवतु
    संस्कृतं वेदभाषास्ति, संस्कृतं देवभाषास्ति यतोहि तस्याः सर्वत्रैव स्थितिर्भवतु।

  • Kamendra Devra
    Posted August 22, 2021 at 6:31 pm

    बहुत सुंदर उल्लेख किया मैम… 🙏
    संस्‍कृत भाषा विश्‍वस्‍य सर्वासु भाषासु प्राचीनतम भाषा अस्ति।

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