“समस्या एक
मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में
सभी मानव
सुखी,सुंदर व शोषण मुक्त कब होंगे?”
सुशासन की आस लगाए सुप्रसिद्ध कवि मुक्तिबोध की यह पंक्तियां कितनी सटीक हैं।सवाल यह उठता है कि जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति ही जहां बाधित है, वहां के लोगों के लिए कैसा मानवाधिकार और कैसा सुशासन?
सुशासन की अवधारणा समतामूलक समाज पर टिकी है।जब देश के संसाधनों पर सभी का अधिकार होगा,सुख के साधनों पर सभी का अधिकार होगा तभी सुशासन की प्राप्ति संभव है।राष्ट्रवादी कवि दिनकर जी ने सुशासन की परिभाषा कैसे की ? देखिए-
“शांति नहीं तब तक,जब तक सुख भाग, न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।”
सुशासन की संकल्पना समय समय पर अपने अपने हिसाब से की गई।विभिन्न कवियों और साहित्यकारों ने भी इस विषय पर खूब लिखा क्योंकि साहित्य समाज का आईना है और साहित्यकार भी समाज मे जो देखते हैं,उसपर अपनी लेखनी उठाने से स्वयं को रोक नहीं पाते लेकिन हमारे देश में आमजन की कल्पना में जिस सुशासन का चित्र उभरता है उसमें सबसे अधिक रामराज्य को मान्यता मिली या सरल शब्दों में कहें तो हर नागरिक अपनी और अपने देश की तुलना रामराज्य से करता अवश्य है चाहे इसे पाने के प्रयास में वह असफल ही होता हो।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब ‘रामचरित मानस’ की रचना की तो उस समय देश में मुगलों का शासन था,जिसमें प्रजा खुश तो नहीं थी और उन पर धार्मिक,सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक लगभग हर तरह के प्रतिबंध थे और अत्याचार भी होते थे।ऐसे में तुलसीदास जी ने समाज के दुखों को दूर करने के लिए जिस सुशासन की कल्पना की वह रामराज्य ही था और उन्होंने मानस में कितना सटीक लिखा-
“दैहिक,दैविक,भौतिक तापा।
रामराज नहि कहुंहि व्यापा।”
अर्थात रामराज्य में दैहिक,दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते।
आज के इस दौर में ऐसे रामराज्य की संकल्पना भी एक सुखद अनुभूति कराती है क्योंकि हमारा जीवन कष्टों से भरपूर है।
ऐसी सोच,जिसमें सुशासन की बात हो बिल्कुल रामराज्य की तरह,इस पर चर्चा करने के लिए आज हमारे साथ जो शख़्सियत हैं, उनका परिचय देने में ही मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है क्योंकि वे हैं मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी।
“इससे बड़ा कोई कर्म नहीं है, देश की हिफाज़त से बड़ा कोई धर्म नहीं है।” देश की सुरक्षा में अपने जीवन के इतने वर्ष देने वाले जनरल साहब देश के शासन और व्यवस्था पर नए नए तथ्यों से हमें अवगत कराएंगे।
मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी 1982 बैच के भारतीय डाक सेवा के अधिकारी के तौर पर नियुक्त हुए।आपने सेना डाक सेवा कोर में 21 वर्षों तक देश की सेवा की और मुख्य पदों पर कार्य करते हुए 10 अक्टूबर 2011 में Addl.DG APS का पदभार संभाला।
मार्च 2015 में मुख्य महाडाकपाल (Chief postmaster General) हिमांचल प्रदेश डाक परिमंडल के रूप में भार ग्रहण करने से पूर्व सेना डाक सेवा कोर के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे थे।जुलाई 2016 में आप सदस्य (डाक बोर्ड) के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।वे लेखक भी हैं और उनकी चार पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।जिनके शीर्षक हैं-1-‘An Alphabetical Compilation of Idioms and Phrases’
2- ‘Why We are Like this’ ,
3-Seven Shades of Rama’ और
4- “Invisible Shades of Ramayana”,जो कि ‘वाल्मीकि रामायण ‘ पर आधारित है।
हिमाचल प्रदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र में आपके कॉलम भी नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं।उनकी प्रतिभा, उनके जज़्बे को सलाम करना चाहिए कि वे यही नहीं रुकते वरन देश के भविष्य आज की युवा पीढ़ी और विद्यार्थियों को प्रोत्साहन और प्रेरणा देने के लिए विभिन्न संस्थानों में Motivational talks देते रहते हैं।
संप्रति वे GGDSD कॉलेज,kheri Gurna (Banur) की प्रबंध समिति के अध्यक्ष हैं, जो कि GGDSD कॉलेज, सेक्टर 32,चंडीगढ़ की ही शाखा है।
जनरल साहब ने हमारे देश के उस इतिहास से हमारा परिचय करवाया,जिसके कारण आज हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत का इतना ह्रास हुआ है कि सोचो तो दिल दुखता है।हम सब समझते तो हैं लेकिन उस तरीके से सोच नहीं पाते जैसे कि आज आपने हमें समझाया। अमिल कुमार शोरी जी का कहना है कि अगर हम सुशासन की बात करते हैं, रामराज्य की बात करते हैं तो हमें जानना चाहिए कि राजा दशरथ का मंत्रिमंडल कैसा था?शासक अपनी प्रजा को संतुष्ट नहीं करेगा तो प्रजा क्यों कुछ विकासात्मक करेगी?आपके अनुसार इन सब प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण में है।माता-पिता,गुरु के उत्तरदायित्व भी आपने बताए।
मैं कहना चाहूंगी कि इतनी व्यावहारिक बातों से आपने हमारा परिचय करवाया कि जैसे लगा कि हां इन बातों को मानने से सुशासन की प्राप्ति सम्भव है।फिर वही बात आ जाती है कि हम सभी बातें तो बहुत बड़ी बड़ी कर लेते हैं लेकिन जब अपने ऊपर उन्हें अपनाने की बात आती है तो हम बहाने बनाने लगते हैं लेकिन जनरल साहब ने इसी बात को उठाया कि इन बातों का व्यावहारिक पक्ष कैसा हो?
मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी से हुई पूरी चर्चा सुनने के लिए आप मेरे पॉडकास्ट पर जाएं।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि इन सब बातों से हम सभी कहीं न कहीं परिचित होते हैं परंतु हमारे पास दृष्टि नहीं है पर आपने आज हमें एक दृष्टि, एक विज़न दिया है, इन सब बातों को एक नए ढंग से सोचने का।
6 Comments
Kamendra Devra
जनरल साहब जैसे कर्मवीरों के कारण ही हमारा देश आज भी विश्व गुरु है। 🇨🇮
Kiran singh
देश की सरहदों की रक्षा करने वालों की सोच देश के अंदरूनी मामलों में भी इतनी पैनी है।सर हैरान हूं।आपको सुनकर बेहद सुखानूभुति हुयी ।काश हर भारतीय के मन में सुशासन की भावना जागृत हो ।
किरन सिंह
अपरशासकीय अधिवता
Brajpal Singh
जय हिंद🇨🇮🇨🇮
Shivam Tyagi
रामायण का अद्भुत ज्ञान है जनरल साहब को।
Manoj Kumar
बहुत सुन्दर
Dr Alaka Roy
भावना जी आपने एक सही मायने में भारतीय नागरिक से हमें रूबरू कराया आपका धन्यवाद । जनरल शौरी जी ने सटीक शब्दों में राजा प्रजा राजधर्म, कर्त्तव्य सभी का उल्लेख किया सही मायने में अगर हम श्रीराम को गुन ले तो देश के सच्चे नागरिक बन जाए।