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हिन्दी-दिवस – “चुभन पॉडकास्ट”

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज हिंदी राजभाषा, संपर्क भाषा और जन भाषा के सोपानों को पार कर विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हिन्दी-दिवस भी एक आयोजन और प्रतीक की तरह ही हर साल आता जाता न रहे, बल्कि ठोस कार्य करने होंगे और आजकल मैं देखती हूं कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर ही हिंदी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। ऐसी ही एक संस्था “कलम” है जो अहिंदी भाषी क्षेत्रों और विदेशों में भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में संलग्न है।कलम संस्था ने ही राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें प्रतियोगियों ने हिंदी-दिवस पर काव्य-पाठ प्रस्तुत किया है,उन्हीं में से प्रथम पांच प्रतियोगियों की रचनाएं आज हिंदी दिवस के अवसर पर आपके लिए “चुभन” प्रस्तुत करता है-

1 – हिन्दी के ख़ातिर जीता हूं !

तुमको अंग्रेजी प्यारी हो,
तेरा मत है,तेरा कहना,
पर मैं कहता बड़े गर्व से,
हिन्दी भाषा मेरा गहना।

माँ ने गोद सुलाकर मुझको,
हिन्दी में ही लोरी गायी,
और पिता जी ने ‘तुलसी’ की,
मुझे सुनायी थी चौपाई।

‘मीरा’ के पद ने गिरधर से,
मुझको पहली बार मिलाया,
और कवि’ रसखान’कवित्त ने,
विधर्मी संग प्रेम सिखाया,

मुझे याद है ‘केशव’कवि की,
रामचंद्रिका मधुर कहानी,
वीर कवि ‘भूषण’ कविता संग,
बुढ़ी हड्डी आयी जवानी।

पंचमेल के साथ कबीरी,
मानवता का राग सुनाया,
और’ बिहारी’ ने दोहों में,
नृप को राजधर्म सिखलाया

अरे! भूल मैं कैसे आया?
‘खुसरों’ ने जो मान बढ़ाया,
हिन्दी को दे नाम हिन्दवी,
पहली बार उसी ने गाया।

‘हरिचंद्र, महावीर, हजारी’
नये शब्द गढ़ बतलाते थे,
आधुनिक मीरा ‘महादेवी,’
पीड़ा गीत हमे भाते थे।

‘शुक्ल’ लिखा इतिहास आज तक,
हिन्दी की पहचान बना है।
‘प्रेमचंद्र’ ‘हरिऔध’ ‘निराला,’
हिन्दी का सम्मान गढ़ा है।

‘जयशंकर’ के नाटक सारे,
राजवंश की याद दिलाते।
हाला के मतवाले ‘बच्चन,’
बन साकी प्याले छलकाते।

‘धूमिल कवि’ की सड़क आज भी,
संसद तक दौड़ी जाती है,
‘माखन’जी की अभिलाषा भी,
देशभक्ति सिखला जाती है।

छीन लिया था अल्पकाल में,
बता गये’ दुष्यंत’गजल पर,
‘दिनकर’ ने हुंकार भरी थी,
कुरुक्षेत्र की समर भूमि पर।

‘गुप्त’ कवि की भारतभारती,
गोरो की आँखे खटकी थी,
और’ सुभद्रा’ की रानी ने,
गोरो की लाशें पटकी थी।

बने चितेरे ‘पंत’ शब्द में,
कितने अगनित रंग भरे थे।
‘नगार्जुन’ के साथ ‘सहाय’ के
देहाती खलियान हरे थे।

कितने नाम गिनाऊँ तुमको,
हिन्दी को गल हार बनाया,
मगर,आज अंग्रेजी कीड़े,
गाली देते,इसे रुलाया।

हिन्दी मेरी आन -बान है,
हिन्दी की गाथा कहता हूँ
हिन्दी मेरी माँ,भगनी है।
हिन्दी के खातिर जीता हूँ।

  – हेमराज सिंह ‘हेम’
2 – हिन्दी दिवस –

हिन्दी दिवस पर
देखकर हर दुकान
हर प्रतिष्ठान
मैं था हैरान
जिन पर था लिखा
अंग्रेजी में नाम
जबकि मैं था
हिन्दी का चाहवान
घूमा शहर तमाम
अंत में देखी
एक दुकान
लिखा था जिस पर
हिन्दी में नाम
दुकान का था नाम
ठेका शराब देशी

देखूं हिन्दी की दुर्दशा
या करते देखूं नशा
कुछ समझ नहीं आया
यूं हिन्दी दिवस मनाया

   – विनोद सिल्ला
3 – सुनो हिन्दोस्तां वालों…..

सुनो हिन्दोस्तां वालों ये हिंदी माँ हमारी है..
सगी बहने हैं दोनों,उर्दू भी तो माँ सी प्यारी है..

बड़ा मुश्किल अलग रखना यहाँ,दोनों को,दोनों से,,
हैं दोनों रानियाँ,इनकी अदा दुनियाँ से न्यारी है..

हज़ारों रंग हैं इनके,महक कायम है दुनियाँ मे,
किसी का नाम गुलशन है,कोई फ़ूलों की क्यारी है..

हैं रहती साथ में दोनों,जुदा अंदाज़ है इनका,,
कोई कविता सी सुन्दर है,कोई ग़ज़लों सी प्यारी है..

दुलारे और फटकारे अलग अंदाज में हमको,,
कहीं सरिता सी मीठी है,कहीं सागर सी खारी है..

मैं उर्दू में नहीं लिखूँ, तो हिन्दी रूठ जाती है,,
वो कहती है,मेरी बहना में,बसती जाँ हमारी है..

दुआ माँसी की,और आशीष माँ का,सर पे हो पैहम,,
कलम सच लिखती जाए, बस रज़ा, बिनती हमारी है..

  -संतोष रज़ा
4 – प्यारी हिन्दी –

आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।
साल भर अंग्रेजी में खूब बतियाएं।। आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।

बच्चो को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाइए।
हिंदी में बतियाये, खूब फटकार लगाइए।।
आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।

किताबो में पढ़ा था हिंदी मातृभाषा है।
किताबो के साथ हिंदी को आलमारी में दबाइए ।।
आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।

जब बाहर जाइए उनकी भाषा में बतिआइए।।
जब कोई अपने देश आए , उनकी भाषा को अपनाइए।
आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।।

मंच पर सबको खूब हिंदी तहजीब सिखाइए।
उतरकर मंच से ” हाय” “हैलो” “थैंक्यू” के गुण गाइए।।
आज सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।

दिखावे की जिंदगी से मन को मत भरमाइए।।
हिंदी दिवस मनाना है तो पहले घर में ही वृक्ष लगाइए।
उसके बाद सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।।

नए जमाने की तकनीक को बेखौफ अपनाइए।
पर अपनी संस्कार और मातृभाषा को यू मिट्टी में न मिलाइए।।
इसके बाद आइए और सब मिलकर हिंदी दिवस मनाईए।
हमारी मातृभाषा की जय गाइए हिंदी दिवस मनाईए।।

  – सीमा गुप्ता
5 – हिन्दी दिवस पर –

हिंदी दिवस पर मैंने हिंदी से पूछा —
क्यों तुम मुझको इतनी प्रिय लगती ?
हरदम मेरे लबों पर
क्यों हिंदी तुम ही थिरकती ?
तुमसे मेरे भाव निखरते ,
वाणी भी होती है पावन ।
तुम मुझको प्रिय हो ऐसी ,
जैसे शिव को होता है सावन ।
यूं तो हर भाषा है उत्तम ,
पर तुम तो भाषाओं का अलंकार हो ।
बचपन में बड़ों से सीखे ,
ना भूलने वाले संस्कार हो ।
भारत के हर गांव – गांव में ,
सब तुम को पहचानते हैं ।
हो तुम हमारी राजभाषा ,
पर राष्ट्रभाषा मानते हैं ।
हिंदी से है हिंदुस्तान ,
तुम हिंदुस्तान की जान हो ।
देश का स्वाभिमान हो ,
आन – बान और शान हो ।

आज खुशी के दिन पर तुम क्यों इतनी मुरझाई दिखती हो ?
ऐसी क्या बात हो गई जो खोई – खोई रहती हो ?
दुखी स्वर में बोली हिंदी –
क्यों लोग मुझसे कतराने लगे हैं ?
दौड़ – दौड़ कर अंग्रेजी के ,
समीप क्यों जाने लगे हैं ?
ऐसी मुझसे क्या भूल हुई जो ,
दूसरी भाषा अपनाने लगे हैं ?
लिखते – पढ़ते अंग्रेजी में ,
मुझसे आंखें चुराने लगे हैं ।
मैंने उत्तम साहित्य दिया जग को ,
दिए प्रबुद्ध साहित्यकार ।
जिनके नामों की सूची बनाने ,
कागजों का लग जाए अंबार ।
मिश्री – सी मीठी मेरी बोली ,
दुख – दर्द की मैं हमजोली ।
मन के भावों की करती अभिव्यक्ति ,
जोड़ती व्यक्ति से व्यक्ति ।
ज्ञान का अथाह भंडार हूं ,
पोथी – ग्रंथों का संसार हूं ।
भावों की करुण पुकार हूं ,
प्रेम रस से भरा इकरार हूं ।
अनेक रस छंदों की मैं धरोहर , खान हूं ,
हिंदुस्तान की तो मैं एक प्रबल पहचान हूं ।
अनेकता में एकता की मैं एक मिसाल हूं ,
काश ! मनुष्य ये समझे , भाषा मैं बेमिसाल हूं ।
भाषा मैं कमाल हूं , भाषा बेमिसाल हूं ।

– नेहा चितलांगिया

1 Comment

  • Kiran
    Posted September 14, 2021 at 11:19 am

    बहुत सही कहा

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