सुम्बल, मेरे गांव!
कैसे हो
मैं तुम्हें सांस सांस करता हूं याद
तुम्हारे बीचो बीच से होकर बहती वितस्ता
मेरी शिराओं में बहती है
मैं हर रोज़ तुम्हारे पुल से छलांग मारकर
दूर तक तैरता रहता हूं तुम्हारे आंसुओं में।
तुम्हारे उदास चिनारों पर हर शाम
उतरती हैं ,मेरी नींद की चिड़ियां
जो सपनों में आती हैं, पहाड़ उतरकर
यहां, जम्मू के शरणार्थी कैंपों में
और अपनी पीठ पर ले जाना चाहती हैं
हमें अपने छूटे हुए घरों को।
सुम्बल, मेरे गांव!
आज मेरे बेटे ने तुम पर लिखी
एक कविता
जैसे जेल से एक क्रांतिकारी ने लिखा हो
डायरी का एक पन्ना
जानते हो उस काली रात में जब
भागे थे हम
चार साल का बच्चा था
वो रात कटती नहीं आज तक
आज भी खेतों खेतों भाग रही
अपनी मां का हाथ पकड़े
वो, पहुंच नहीं पा रहा
उस खौफनाक तारीख से बाहर
सुम्बल, मेरे गांव!
तुम पढ़ो मेरे बेटे की कविता।
( अग्निशेखर जी के कविता-संग्रह ‘जलता हुआ
पुल’ में प्रकाशित कविता ‘मेरे बेटे की कविता’ से )
समकालीन हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर, डॉ. अग्निशेखर जी, हिंदी साहित्य जगत का एक प्रतिष्ठित नाम हैं।वे वरिष्ठ कवि, लेखक, विचारक व एक्टिविस्ट के रूप में हमारे सामने आते हैं।आपकी पर्वतारोहण,संगीत,लोक-साहित्य और लोकसेवा में गहन रुचि रही है।
आपके सात चर्चित कविता-संग्रह हैं-
● ‘किसी भी समय'(1992)
●’मुझसे छीन ली गयी मेरी
नदी’ (1996),
●’कालवृक्ष की छाया
में'(2002),
● ‘जवाहर टनल’ (2002),
● ‘मेरी प्रिय कविताएँ’
(2014 ),
●’जलता हुआ पुल'(2019),
●’ नील गाथा ‘ महाकाव्य
(2021)
अनेक संपादित पुस्तकें भी चर्चित हुईं-
● ‘पहल’ तथा ‘ प्रगतिशील
वसुधा ‘ के कश्मीर अंकों का
अतिथि सम्पादन।
●अंग्रेज़ी के अलावा गुजराती,
कन्नड,पंजाबी,बांग्ला,तेलगु,असमिया,ओडिया,मराठी सहित अनेक भारतीय भाषाओं,
में कविताएं अनूदित।
● समकालीन निर्वासित कश्मीरी कवियों की कश्मीरी कविताओं के अनुवाद ‘कौवे का पंख’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य।
पुरस्कार और सम्मान :
●’हिन्दीतर भाषी हिंदी लेखक
पुरस्कार'(केंद्रीय हिन्दी
निदेशालय,(वर्ष 1994),
● ‘गिरिजा कुमार माथुर स्मृति
पुरस्कार’,(वर्ष 2003),
● ‘सूत्र सम्मान’,(वर्ष 2006),
● ‘सर्वश्रेष्ठ पुस्तक सम्मान’
(जम्मू-कश्मीर राज्य
अकादमी,वर्ष 2010),
●’मीरा स्मृति सम्मान’, (वर्ष
2016),
● ‘आचार्य अभिनवगुप्त
सम्मान’ ( सा मा पा,2018),
●’साहित्य शताब्दी सम्मान’
(बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,
2019)।
आपका कविता-संग्रह ‘जवाहर टनल’ काफी प्रसिद्ध हुआ।इस पुस्तक को वर्ष 2012 में जम्मू सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के रूप में चुना गया था, परंतु अग्निशेखर जी ने बाद में यह पुरस्कार स्वीकार करने से मना कर दिया।राष्ट्रीय स्तर के कई हिंदी लेखकों ने उनके इस फैसले का समर्थन किया।उन्होंने यह फैसला कश्मीरी पंडित समुदाय को कट्टरपंथियों के द्वारा कश्मीर से निकाले जाने और सरकार द्वारा विस्थापितों की उपेक्षा के विरोध में लिया।
अग्निशेखर जी की एक कहानी पर ‘शीन ‘ शीर्षक से एक बॉलीवुड फिल्म भी बनी है।
अग्निशेखर जी कश्मीर के एक विस्थापित कवि के रूप में जाने जाते हैं, तभी उनकी रचनाओं में विस्थापन का दर्द बहुत ही कारुणिक एवं हृदयस्पर्शी तरीके से चित्रित हुआ है।भोगे हुए दर्द को उन्होंने शब्द दे दिए हैं, इसीलिए बात दिल की गहराइयों तक उतर जाती है।कश्मीरी पंडितों के लिए यह अनुभव विभाजन के समय पाकिस्तान से आये शरणार्थियों या तालिबान द्वारा अफगानिस्तान से भगाए गए हिंदुओं से कम नहीं था, परन्तु देखा जाए तो इनका दर्द शायद सबसे अलग था क्योंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं को शरणार्थी मानकर मुआवजा दिया गया या अन्य सुविधाएं भी दी गईं, लेकिन कश्मीरी पंडित तो अपने देश में ही शरणार्थी बने, क्योंकि कश्मीर तो भारत का अटूट हिस्सा है ही, ऐसे में यह विस्थापन पूरी ज़िंदगी की वेदना बन कर रह गया है।अग्निशेखर जी के परिवार ने भी जम्मू में आकर यह दर्द झेला परंतु विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी वे चुपचाप नहीं बैठे बल्कि अपने अधिकारों के लिए लड़ने का उन्होंने निश्चय किया।अपने कुछ मित्रों के साथ आप ‘पनुन कश्मीर’ के संयोजक के रूप में सामने आए।
साहित्यकार अग्निशेखर जी सन् 1990 से, कश्मीर से निर्वासित लाखों कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकारों और उनकी ‘पनुन कश्मीर’ में वापसी के संघर्ष में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
6 Comments
Kiran singh
चुभन के माध्यम से एक से बढकर एक बहुआयामी व्यक्तितवों पढना और सुनना बेहद ही सुखद है ।हम सब को इन महान विभूतियों से रूबरू कराते हुये चुभन उँचे पायदान पर जाय यही मंगलकामना हैं 🌹🌹
kamendra Devra
अग्निशेखर जी के हम आभारी हैं, उन्होंने हमें सच्चाई से रूबरू करवाया।तीस वर्षों से हमें अंधेरे में ही रखा गया।
Sulendra Kumar
सुंदर प्रस्तुतिकरण के साथ रोचक साक्षात्कार। भावना जी ने जिस अंदाज में कविता को पढ़ा, सच में दृश्य सजीव हो उठा
Vipin Sharma
Bahut sundar 🙏
Satendra Chauhan jaipur
हम नीलगाथा को अवश्य पढ़ना चाहेंगे।कश्मीर की सभ्यता एवं संस्कृति से हम उतना परिचित नहीं हो पाए जितना होना चाहिए था।
Vinay Kumar Singh (Modi Nagar)
भावना जी आप अलग अलग प्रदेशों और इतने गुणीजनों से हमारा परिचय करवाती हैं, उसके लिए साधुवाद।
अग्निशेखर जी को सुनना हमारे लिए गर्व की बात है