– अजय ‘आवारा’
इतना तो सब कहते हैं कि हमें अपनी परंपराओं पर अभिमान करना चाहिए। यह भी सब मानते हैं कि हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि हमें अन्य संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं का सम्मान भी करना चाहिए, परंतु यह रीत कहां से आ गई कि अन्य सभी संस्कृति एवं परंपराओं का सम्मान करते हुए हम स्वयं की पहचान का अपमान करने लग जाएं। लगता है, अपने देश ,अपनी संस्कृति अपने धर्म ,एवं अपनी परंपराओं का अपमान करना आज शान का विषय बन चुका है। आप अपनी पहचान का जितना अपमान कर सकते हैं, उतना ही आधुनिक आप कहलाएं जाएंगे। यह हमारी मानसिकता की संकीर्णता है, या हीनता का बोध। या फिर हम स्वयं की महानता के गौरव को सम्हाल ही नहीं पा रहें हैं। क्या हमने आत्म मंथन एवं चिंतन को तज दिया है? या हमारी सोच इतनी बौनी हो गई है कि हमें अपनी महानता की ऊंचाई दिखाई देना ही बंद हो गई है। आइए विचार करते हैं, इस विषय पर, आवारा जी के साथ।