इधर चार-पांच दिन से टेलीविजन या सोशल मीडिया में एक ही किस्सा छाया हुआ है,बरेली से भाजपा विधायक राजेश मिश्र उर्फ़ पप्पू भरतौल की बेटी साक्षी मिश्रा की शादी का।जिसने अजितेश नामक युवक से बिना अपने घरवालों की रजामंदी के शादी कर ली।अब यह कोई नई बात तो नहीं है।न जाने कितने युवा जोड़े बिना अपने घर वालों की रजामंदी के बिना उन्हें बताए शादियाँ करते हैं लेकिन इस घटना में नई बात यह है कि लड़की साक्षी ने अपने पिता राजेश मिश्र को ही अपराधी बना दिया है और सोशल मीडिया तथा टेलीविज़न में विडियो वायरल करके यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि अपने पिता तथा भाई से ही उसे और उसके पति अजितेश को जान का खतरा है।इस घटना के बारे में मुझे बहुत विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आजकल हर जगह यह घटना छाई हुई है और मुझे पता है कि मेरे पाठक भी इस पूरी घटना से वाकिफ होंगे।
यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि इसी से मिलता जुलता एक और विडियो अमरोहा से सामने आ रहा है।इस विडियो में एक लड़की अपने परिजनों से स्वयं और अपने पति की जान को खतरा बता रही है।बी.एससी.की छात्रा जिसने अपना नाम अनामिका बताया है,आर्य समाज मंदिर में अपने प्रेमी के साथ भागकर शादी कर ली।यह युवक भी गैर बिरादरी का है।इस लड़की ने भी कहा है कि वह अपने पति जिसका नाम मदन है,उसके साथ ही रहना चाहती है।अनामिका ने भी साक्षी की तरह ही कहा है कि वह बालिग है और उसे,उसके पति और ससुराल पक्ष के लोगों के साथ कुछ अनहोनी होती है तो पिता व उसके परिवार के अन्य सदस्य ही ज़िम्मेदार होंगे।अब उसके पिता का भी विडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने ससुराल पक्ष पर अपनी बेटी के अपहरण और लूट जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं।
इन घटनाओं को देखने सुनने के बाद बस एक बात ही समझ आती है कि यह हमारे समाज में क्या हो रहा है?जिन रिश्तों पर आँख मूंदकर विश्वास किया जा सकता है उन्हें ही तार-तार किया जा रहा है।यह कैसा प्रेम है?प्रेम में सबसे ज़्यादा त्याग की ज़रूरत होती है चाहे कैसा भी प्रेम हो?प्रेम माता-पिता से भी होता है,भाई-बहनों से,दोस्तों से,देश से या फिर प्रेमी-प्रेमिका के बीच का प्रेम।लेकिन मैंने कई बार देखा है कि इस प्रेम (प्रेमी-प्रेमिका) के वशीभूत होकर जैसे लोग अपना होश ही खो देते हैं और बस यही प्रेम उनके लिए सब कुछ हो जाता है बाकी के सारे रिश्तों के प्रति प्रेम भाव गौण हो जाता है।फिर ऐसे प्रेमी युगल यह कहेंगे कि हमने तो प्रेम के लिए सब कुछ त्याग दिया।इसी का दूसरा पहलू यह भी है कि हमारे समाज में ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर न जाने कितने प्रेमी युगलों की जान ली जा रही है।ऐसे भी माता-पिता हैं जिनकी बेटी या बेटे अगर उनकी इच्छा के ख़िलाफ़ किसी गैर जाति या बिरादरी में शादी करते हैं तो उनके माता-पिता और घर वाले इसे अपनी बेईज्ज़ती समझ कर अपने बच्चों की जान लेने से भी पीछे नहीं हटते।ऐसे में रिश्तों की मर्यादा तो तार-तार होगी ही।किसी भी रिश्ते में प्रेम तभी तक रह सकता है जब तक कि विश्वास हो और जहाँ विश्वास ख़त्म होने लगता है वहीँ प्रेम भी तिरोहित हो जाता है।
हम कैसे हो गये हैं?हमारी सारी समझ,भावनाएं सब कहाँ चली जा रही हैं?ऐसी घटनाएँ मैं यह नही कहूँगी कि पहले होती ही नहीं थीं लेकिन इधर बीच इनका प्रतिशत बहुत बढ़ गया है।पहले कभी-कभार ऐसा कुछ देखने सुनने को मिलता था तो हम सभी चकित खड़े यह देखते थे लेकिन अब ऐसी घटनाएँ अक्सर हो जाती हैं और हम क्षणिक चकित होते हैं फिर इन्ही चीज़ों के आदी से हो जाते हैं।आज इन सब घटनाओं के लिए हमारा एक तकिया कलाम बन गया है कि अरे यह सब तो रोज़ हो रहा है, क्या करें?हम तो ‘यूज़ टू’ हो गये हैं और बस इतना कहकर हम अपने बुद्धिजीवी नागरिक होने का कर्तव्य पूरा कर लेते हैं।प्रशासन को कोसा जाता है कि कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नही है या अपराध बढ़ गए हैं आदि-आदि पर यहाँ चुभता प्रश्न यह है कि जिस समाज में कोई बेटी अपने पिता से ही अपनी जान को खतरा बताकर हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग करेगी और प्रशासन उसे पुलिस की सुरक्षा देगा और इसी तरह पिता और भाई भी बेटी और दामाद से स्वयं को असुरक्षित महसूस करेंगे तो क्या होगा?
अभी 15-20 वर्ष पहले तक के भी कुछ किस्से मेरे बहुत ही आस-पास के जान-पहचान के हैं जहाँ लड़कियों ने अपनी इच्छा से शादी करनी चाही लेकिन घर वाले बिलकुल भी नही चाहते थे ऐसे में जिसने ठोस क़दम उठाकर घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी कर भी ली वह बेचारी अभी तक अपने घर वालों को मना लेने को तरस रही है और आज तक मैंने उसके मुंह से अपने घर वालों के लिए एक भी बेईज्ज़ती का शब्द नहीं सुना और न ही उनपर कोई इलज़ाम ही लगाते देखा उल्टा मैं जब भी उसे देखती हूँ मुझे ऐसा लगता है जैसे वह मन ही मन अपने माता-पिता के लिए तरस रही हो जबकि सच्चाई यह है कि जिससे उसने शादी की वह बहुत ही अच्छा और आदर्श पति है लेकिन माता-पिता सिर्फ अपने प्रतिष्ठा के प्रश्न को लेकर बैठे हुए हैं।इतना कट्टरपन भी किस काम का?इसी तरह जिसने अपने माता-पिता की इज्ज़त या आगे बैठी छोटी बहनों का भविष्य सोचकर मन की शादी नहीं की वे भी ज़बरदस्ती अपने घर वालों द्वारा थोपे गए रिश्तों में बंधकर जीवन काट रहीं हैं।ऐसा नहीं है कि हमेशा माता-पिता द्वारा किये गए रिश्ते ख़राब ही होते हों बल्कि कई बार तो माता-पिता किसी गलत रिश्ते में फंसने से बेटी को बचाकर अच्छे रिश्ते में बांधते हैं लेकिन यहाँ बात यह हो रही है कि जहाँ लड़कियां अपने मन की शादी करना चाहती हैं और नहीं कर पाती तो क्या होता है?अब जहाँ माता-पिता द्वारा जोड़ा गया रिश्ता ठीक निकल गया वहां तो बेटी का जीवन संवर जाता है लेकिन जहाँ माता-पिता भी चूक जाते हैं उचित रिश्ता जोड़ने में, वहां ऐसी बेमेल शादियों से पूरा जीवन मैंने लड़कियों को तड़पते देखा है और ऐसे में शायद पूरा जीवन उन्हें यही कसक रह जाती है कि इससे तो हम जिसे अपना जीवन साथी बनाना चाहते थे उसे ही बना लेते।ठीक है कुछ दिन बवाल मचता लेकिन बाद में ऐसी नरक जिंदगी काटने से तो बचा जा सकता था।विडंबना यह भी है कि ऐसे माता-पिता को इस बात का एहसास ही नहीं हो पाता कि उन्होंने बेटी की गलत शादी करके उसे स्वयं ही नरक भोगने को छोड़ा हुआ है।उल्टा वे उसे यह नसीहत देते दिखेंगे कि यही तुम्हारी किस्मत थी तो हम क्या करें?अब कोई इन जैसे माता-पिता से यह पूछे कि किस्मत भी उन्हीं के द्वारा दी गई है।अगर ऐसे माँ-बाप अपनी गलती का एहसास कर लेते तो आज समाज में यह नौबत ही न आती।क्या माता-पिता कभी गलत हो ही नहीं सकते?अगर वे अपनी गलती का एहसास कर लें तो आगे पीढ़ियाँ सुधर जातीं और इन बेटियों के दिलों में भी यह सुकून रहता कि चलो हमारे त्याग को जो हमने परिवार के लिए किया, कम से कम हमारे माँ-बाप तो समझ रहे हैं।लेकिन यह तो कुछ वर्षों पहले की घटनाएँ हैं जहाँ बेटियों के भी इतने त्याग दिख जाते थे।इधर की घटनाओं को अगर लें तो इतना सब्र किसी में है ही नहीं।आज लड़कियां अपने घर वालों की इज्ज़त दाँव पर लगा कर भी सिर्फ अपनी ख़ुशी ही देख रहीं हैं।हो सकता है सब तरफ ऐसा न भी हो रहा हो पर इस तरह की कुछ घटनाएँ सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि समाज में यह कैसी व्यवस्था विकसित हो रही है?जहाँ सबको सिर्फ अपना स्वार्थ ही दिख रहा है और इस सबमें विश्वास नाम की चीज़ समाप्त हो गई है फिर वह चाहे माता-पिता का बच्चों के प्रति हो या बच्चों का माता-पिता के प्रति।
आज हम जितना भी 21वीं सदी में होने का दम भर लें लेकिन अभी भी उतना ही पिछड़े हुए हैं जितना सदियों पहले थे।कभी-कभी तो मुझे लगता है कि हम अभी भी 19वीं और 20वीं सदियों में ही जिए जा रहे हैं।ऐसे लेख जब हम लिख रहे होते हैं तो हमारे दिमाग में बहुत सारे उदाहरण होते हैं।सीता,सावित्री, गार्गी से लेकर रानी लक्ष्मीबाई और कल्पना चावला,सुनीता विलियम्स जैसे अनगिनत उदाहरण होते हैं हमारे पास वर्णन करने को और इन सबके बारे में हम सभी अनगिनत बार पढ़ते भी होंगे।बस आवश्यकता यह होती है कि हम अमल में कितना ला पाते हैं इन उदाहरणों को।आखिर तो इन बेटियों पर इनके घर वालों को विश्वास रहा ही होगा और इन बेटियों ने भी अपने थोड़े से स्वार्थ के पीछे अपने घर वालों के प्रेम और विश्वास को दाँव पर नहीं लगाया होगा।
इन घटनाओं को देखकर मेरे दिमाग में एक ऐसी बेटी और उसके पिता का उदाहरण सामने आ रहा है जिसे मैंने अभी कुछ ही दिन पहले पढ़ा है और वह मैं आपसे भी बताना चाहूंगी-
सन 1857 में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजी सेना के विरुद्ध भारतीयों की क्रांति असफल हो गई।बिखरी हुई सेना को संगठित कर फिर से लड़ने की तैयारी के लिए नाना साहब को बिठूर छोड़कर जाना आवश्यक हो गया।अपनी पुत्री मैना को छोड़ते हुए नाना साहब का दिल भर आया।वे मैना से बोले, “बेटी तुम्हे इस महल में अकेली छोड़ने के लिए मेरी आत्मा नहीं मान रही है।मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ चलो।” क्योंकि अंग्रेजों की क्रूरता नाना साहब जानते थे ऐसे में उनके मन में एक स्वाभाविक सा डर था कि अकेली लड़की यहाँ सुरक्षित कैसे रह सकेगी?पर उस छोटी सी बहादुर लड़की का साहस तो देखिये।उसने पिता की इस समस्या का समाधान करते हुए कहा, “पिताजी यदि मैं अपने प्राणों की रक्षा नहीं कर सकी तो कोई बात नहीं पर अपने सम्मान की रक्षा करना मैं भली-भांति जानती हूँ।मैं भी एक क्रांतिकारी की बेटी हूँ।”
बेटी के आश्वासन से निश्चिन्त होकर और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नाना साहब चले गये।मैना बिठूर के राजमहल में अकेली रह गई।एक दिन गुप्तचरों की सूचना पर अँगरेज़ सेनापति ‘हे’ ने बिठूर के राजमहल पर छापा मारकर सेवकों को कैद कर लिया परन्तु मैना उनके हाथ न लग सकी।सेनापति ने आदेश दिया कि राजमहल को गोलों के प्रहार से गिरा दिया जाए।जैसे ही उसने अपने तोपचियों को तोपें चलाने का आदेश दिया,उसी समय मैना महल के एक झरोखे से प्रकट हुई और कड़कती आवाज़ में बोल उठी, “ठहरो! यह दुष्टता बंद करो।” मैना को प्रकट हुआ देख सेनापति ‘हे’ आश्चर्यचकित होकर बोला, “हमने महल का कोना-कोना छान मारा था तब तो हमें कोई मिला नहीं।” इतने में एक सैनिक ने अपना मत प्रकट किया कि मेरा तो यह ख्याल है कि यह लड़की धरती फाड़कर बाहर निकली है।इस पर मैना का उत्तर देखिये, “हाँ मैं धरती की बेटी हूँ।”
अब मैना का वार्तालाप सेनापति ‘हे’ के साथ होने लगा और बातों-बातों में सेनापति को पता चला कि मैना उसकी बेटी ‘मेरी’ की घनिष्ठ मित्र रही है।सेनापति हे और मैना की बातें चल ही रहीं थीं कि प्रधान सेनापति जनरल आउटरम ने जनरल हे से पूछा, “अभी तक नाना साहब का महल क्यों नहीं गिराया गया?आप इस लड़की पर दयावान क्यों हो रहे हैं?”इस पर ‘हे’ बोला कि यह मेरी पुत्री ‘मेरी’ की सहेली है।इस पर आउटरम ने कहा कि उसे इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है और वह महल को गिरा हुआ देखना चाहता है।उसने आज्ञा दी कि तोपें दागी जाएँ और लड़की को गिरफ्तार किया जाए।कई गोरे सैनिक महल की तरफ झपटे परन्तु मैना महल में गायब हो गई।उन्होंने महल का कोना-कोना छान मारा पर मैना का कहीं पता नहीं चला।आउटरम के आदेश से तोपें दागी गईं और देखते ही देखते वह राजमहल ध्वस्त हो गया।आउटरम ने समझा कि लड़की मकान के नीचे दबकर मर गई होगी और वह चला गया।रात में बहादुर मैना तलघर से प्रकट होकर गिरे हुए महल को निहार रही थी कि तभी महल के दो प्रहरियों ने उसे देख लिया।उन्होंने मैना को गिरफ्तार कर लिया और आउटरम के सामने पेश किया गया।आउटरम बोल उठा, “आखिर तुम हमारे जाल में फंस ही गई।अब तुम्हारे हित में यही है कि तुम अपने पिता नाना साहब और क्रांतिकारियों के पते-ठिकाने बता दो,वरना हम तुम्हें अभी जिंदा जला देंगे।” परन्तु मृत्यु का भय भी साहसी मैना को डिगा नहीं सका और वह बोल उठी, “तुम मेरे शरीर को जला सकते हो,मेरी आत्मा को नहीं।भयंकर आग भी मुझसे कुछ भेद नहीं निकलवा सकेगी।”
आउटरम तिलमिला उठा।उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि वे मैना को वृक्ष से बांधकर और लकड़ियाँ लगाकर आग लगा दें।सैनिकों ने अपने जनरल की आज्ञा का पालन किया।आग की लपटें मैना की ओर बढ़ने लगीं तो आउटरम बोला, “अभी भी समय है यदि तुम अपने पिता का पता बता दो तो हम तुम्हें बचा सकते हैं।” इस का उत्तर मैना ने किस बहादुरी से दिया पढ़कर बदन सिहर उठता है और ऐसी बेटियों की बहादुरी पर सलाम करने को ही जी चाहता है। “एक जन्म तो क्या,कई जन्मों तक भी तुम मुझे इसी प्रकार जलाते रहो तो भी मैं अपने पिता और अन्य क्रांतिकारियों का पता नहीं बताउंगी।इतना याद रखना कि अब तुम्हारे दिन आ गये।तुम्हारे अत्याचार ही तुम्हें ले डूबेंगे।” ज्वाला तेजी से बढ़ती चली गई।मैना स्वयं भी ज्वाला थी।ज्वाला ज्वाला में समा गई।यह भी प्रेम था-देश के प्रति,पिता के प्रति और अपने लोगों के प्रति।लेकिन आज का प्रेम बड़ा संकुचित हो गया है।मैं कोई कोरा आदर्शवाद या उपदेश देने की हैसियत न तो रखती हूँ और न ही ऐसा मेरे लेखन का उद्देश्य है।बस मैं तो जो बात चुभती है उसे उठाने की कोशिश भर करती हूँ जिसे सब मिलकर सोचें।अब कोई न कोई कमी तो कहीं न कहीं है जो आज समाज की यह दशा होती जा रही है।कहाँ बेटियां आज इतना कुछ कर रहीं हैं कि सर गर्व से ऊँचा होता है तो वही कुछ ऐसा भी हो जाता है कि सर शर्म से नीचे झुक जाता है (हालाँकि बहुतों को शायद शर्म भी नहीं आती है)।बस एक छोटी सी घटना के साथ मैं अपने चुभते हुए सवालों को विराम दूंगी और निवेदन करुँगी कि एक बार सभी सोचें और खुलकर बात करें कि ऐसा क्यों हो रहा है?
वह घटना कल रविवार की है।टेलीविजन पर संगीत का रिएल्टी शो आ रहा था जिसमें छोटे बच्चे अपनी गायन प्रतिभा दिखा रहे थे।उसी शो में एक 12 वर्ष का प्रतिभागी अपने माता-पिता के साथ आया और उसने जब अपना नाम बताया तो सामने बैठे जज भी चौंक गये क्योंकि वह एक लड़की थी जो कि बिलकुल लड़कों की वेशभूषा में थी।अब इसमें कोई बहुत आश्चर्यचकित होने वाली बात नहीं थी क्योंकि कई बच्चों को अपने ढंग से ही पहनने-ओढ़ने का शौक होता है लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब उस लड़की के पिता ने जज साहिबा के पूछने पर ऐसा जवाब दिया कि उनकी बेटी लड़कों की तरह इसलिए रहती है ताकि बची रहे।उनका मानना था कि आजकल समाज में क्या कुछ नहीं लड़कियों के साथ हो रहा ऐसे में उनकी बेटी जब तक इस तरह रह सकती है वे उसे रखना चाहते हैं ताकि वह बची रहे………..किससे और क्यों बची रहे?
सोच कर देखिये 21वीं सदी के पिता की अपनी इतनी गुणी मासूम सी बेटी के लिए ऐसी सोच हमें कुछ सोचने पर मजबूर नहीं करती क्या???
3 Comments
Amit
Nice valuable thoughts
Kiransingh
बेहद सटीक और तथ्यपरक सत्य 👌👌
vijay
aisi batein dekhne ko mil jati h jo apne bilkul thik likha sochne ko mazbur karti h.