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शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ

शिक्षा के बिना सभ्य और शिक्षित समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती और शिक्षा का यह मार्ग गुरु के दर से होकर ही जाता है।वह गुरु ही है जो अपने ज्ञान और अनुभव से मामूली इंसान को आम से खास बना देता है।आज का दिन यानि 5 सितम्बर देश में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।देश के प्रथम उपराष्ट्रपति,द्वितीय राष्ट्रपति और प्रसिद्ध शिक्षाविद सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म दिवस (5 सितम्बर) शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में असिस्टेंट लेक्चरर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले डॉ.राधाकृष्णन ने देश व प्रदेश के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया।इस बीच उनकी कई किताबें व शोध भी प्रकाशित हुए,जिसमें भारतीय दर्शन पर लिखी उनकी किताब ‘इंडियन फिलोसफी’,जिसे इस विषय पर मास्टर पीस का स्थान प्राप्त है,सर्वप्रमुख है।शंकराचार्य,माधवाचार्य तथा रामानुज आदि के दर्शनों पर उनकी लिखी टीकाएँ आज भी अध्ययन का विषय हैं।एक शिक्षाविद,दार्शनिक व प्रशासक के रूप में उनकी क्षमताओं को सम्मान देते हुए सरकार ने उन्हें 1954 में ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा।

वास्तविक शिक्षक के गुण बताते हुए राधाकृष्णन जी ने कितनी सटीक बात कही, “शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे,बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे।” आज शिक्षा जीवन की अनिवार्य शर्त बन गई है।इसके बिना विकसित मानव की कल्पना नहीं की जा सकती है।जीवन की आधारभूत ज़रुरतों-रोटी,कपड़ा के बाद मानव को मानव कहलाने के लिए जिस चीज़ की ज़रूरत शायद सबसे ज़्यादा होती है वह है-शिक्षा।यह शिक्षा ही है जिसकी सहायता से हम किताबी आदर्शों का तारतम्य जीवन की सच्चाइयों से स्थापित कर पाते हैं,हमें सही गलत का अंतर भी शिक्षा ही सिखाती है और इन सबसे भी ज़्यादा जो बात हमारे शिक्षित होने से होती है वह है राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हमारा योगदान।सरकार भी शिक्षा को देश के विकास की प्रमुख शर्त व राष्ट्रीय चरित्र की गारंटी मानती है।यही कारण है कि देश में हर स्तर पर शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु यह सारे प्रयास उस शिक्षक के बिना पूरे नहीं हो सकते जो इस पूरी प्रक्रिया की रीढ़ है।वह शिक्षक ही होता है जो अपने ज्ञान से ऐसे इंसानों को तैयार करता है जो देश के भविष्य का निर्माण करते हैं।इसी कारण हम इन शिक्षकों को सम्मान देने के लिए प्रति वर्ष 5 सितम्बर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाते हैं।राधाकृष्णन जी के नये युग को लेकर कितने सुन्दर और सकारात्मक विचार हैं, “नये युग का आह्वान हो चुका है।यह व्यक्ति का नहीं,समुदाय का युग होगा।इस युग का सुख सारे मानव-समाज का सुख होगा।इस युग का क्रंदन व्यक्ति विशेष का क्रंदन नहीं,सारी मानव-जाति का क्रंदन होगा और उस क्रंदन से हमारे भीतर दया-भाव नहीं जागेगा,बल्कि जागेगी हमारी सदियों से सोई न्याय-बुद्धि।आइये हम सब इस युग का स्वागत करें-सर्वसाधारण के भाग्य-प्रवाह में अपने को समर्पित करते हुए इस नई मानवता का जयगान करें।”

वाह क्या नये युग के आरम्भ की कल्पना और उसे साकार करने की भी जिजीविषा स्पष्ट दिख रही है।गुरु या शिक्षक की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण होने के कारण ही कबीरदास जैसे संत कवि ने गुरु को गोविन्द से भी अधिक उच्च स्थान दिया- “गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाये,बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविन्द दियो बताए।” तो वहीँ भूदान आन्दोलन के प्रणेता विनोबा भावे ने शिक्षक के महत्व को इस तरह शब्द दिए, “किसी भी देश का आने वाला कल इसी बात पर निर्भर करता है कि उस कल को दिशा देने वाले कौन हैं।”

आज शिक्षकों का रोल कई लिहाज से पहले की अपेक्षा बदल चुका है।बदलते सामाजिक,आर्थिक समीकरण और व्यापक होती सोच के बीच अध्यापकों की भूमिका भी व्यापक हुई है।आज का समय ऐसा आ गया है कि केवल कोर्स की किताबें पढ़ लेने भर से काम नहीं चलने वाला इसलिए शिक्षक की ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई है और आज के करियर सेंट्रिक दौर में परीक्षा के तनावग्रस्त माहौल से लेकर छात्रों की काउन्सलिंग और उन्हें फ्यूचर प्रॉस्पेक्टस तक से परिचित कराना भी इन्हीं शिक्षकों के काम में शुमार है।ऐसे में यदि वे अपने काम को अच्छी तरह से पूरा करने में सफल होते हैं तो देश के भविष्य को एक खूबसूरत आकार मिलना तय है।यही कारण है कि हमारी सरकार आधुनिक तरीके से शिक्षा देने के लिए प्रयत्नशील रहती है और शिक्षकों की महत्ता बनी रहती है।

यदि हम भारतीय पृष्ठभूमि में गुरु-शिष्य परम्परा की बात करें तो कई महान उदाहरण हमारे सामने हैं।कबीर का उदाहरण तो हमने अभी देखा कि उन्होंने गुरु को कितना महत्वपूर्ण स्थान दिया।इसी तरह महान सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने भी “गुरु सुआ जेई पंथ दिखावा,बिन गुरु जगत को निर्गुन पावा” कहकर गुरु के महत्व को प्रतिपादित किया है।हम सभी को सोचना चाहिए कि यदि समर्थ गुरु रामदास जैसा समर्थ गुरु न मिलता तो क्या शिवाजी वास्तव में छत्रपति शिवाजी होते?क्या हम रामकृष्ण परमहंस जी के योगदान को भुला सकते हैं,जिन्होंने भारतीय संस्कृति का वैश्विक महानाद करने वाले विवेकानंद को दिशा दी।क्या अर्जुन जैसा महान धनुर्धर गुरु द्रोणाचार्य के आशीर्वाद के बिना इस स्थान को प्राप्त करता?यह सब गुरुओं का ही प्रताप था जिसके कारण इन लोगों ने असाधारण प्रसिद्धि प्राप्त की।

आज हम जिस युग में जी रहे हैं,वहां हर क्षेत्र में बदलाव आया है।शिक्षा इसमें कोई अपवाद नहीं है।आजकल डिस्टेंस लर्निंग,ऑनलाइन एजुकेशन,मॉडर्न एजुकेशन गजेट्स,वर्चुअल क्लासेज जैसी टेक्नोलॉजी ने शिक्षक के वर्क प्रोफाइल को रीडिफाइन किया है।परिवर्तनों की गति यही रही तो आने वाले सालों में इस क्षेत्र का चेहरा ही बदल जाएगा।आज शिक्षक का टेक्नोसेवी होना भी आवश्यक हो गया है।

आज के दिन मैं कोई नकारात्मक बात नहीं करना चाहती लेकिन कुछ बातें हैं जो चुभन देती हैं क्योंकि शिक्षा एक ऐसी बुनियादी ज़रूरत और शिक्षक धर्म एक इतना पवित्र कार्य है कि उसमें कोई कमी या बेईमानी स्वीकार नहीं की जा सकती।परन्तु आज शिक्षा के मंदिर क्या होते जा रहे हैं और शिक्षक कितनी अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं यह समाज में एक बड़ा मुद्दा बन गया है।माना जाता है कि शिक्षा एक अनवरत प्रक्रिया है जो जन्म के ठीक बाद से ही शुरू हो जाती है।जीवन के अलग-अलग चरणों पर बारीक अनुभवों के सहारे आरम्भ होने वाली शिक्षा कब महामानव का निर्माण कर देती है हमें पता ही नहीं लग पाता।उम्र के इन्हीं मोड़ों में बदलावों के धुंधलके से छात्र को राह दिखाना शिक्षक का ही काम है।जीवन के शुरुआती दौर में शिशु के लिए उसका परिवार ही उसकी प्रथम पाठशाला होती है और माँ पहली शिक्षक।बाल मनोविज्ञान को समझने की शक्ति होनी चाहिए।

आज का समय ऐसा है कि 18 वर्ष का होते होते बच्चे अपने करियर व भविष्य के बारे में काफी कुछ तय कर लेते हैं।ऐसे में आवश्यकता होती है तो बस निर्णयों को कामयाबी की शक्ल देने की,जिसमें कोचिंग संस्थान,स्कूल के अध्यापक और परिवार के लोग अहम रोल निभाते हैं।इस समय ऐसे शिक्षकों की ज़रूरत पड़ती है जो इंडस्ट्री और मांगों के अनुरूप विद्यार्थियों को शिक्षा दे सकें और बेहतर प्रोफेशनल्स तैयार कर सकें परन्तु आजकल व्यावसायिकता और पैसे का मोह इतना हावी हो चुका है कि कोचिंग संस्थान और अध्यापक अपनी ज़िम्मेदारियाँ ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं।ऐसे में कुछ अपवाद भी दिख जाते हैं जिनके कार्यों को देखकर सर श्रद्धा से झुक जाता है और पूरी व्यवस्था के प्रति जो रोष उत्पन्न होता है उसमें भी कमी आती है।जी हाँ मैं बात कर रही हूँ आनंद कुमार जी की जो पटना बिहार के हैं और उन्होंने ‘सुपर 30’ कार्यक्रम की शुरुआत करके आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को आई.आई.टी.संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाने की ज़िम्मेदारी उठाई।2018 के आंकड़ों के अनुसार आनंद कुमार जी के द्वारा प्रशिक्षित 480 में से 422 छात्र आई.आई.टी.के लिए चयनित हो चुके हैं।ऐसे लोग वास्तव में श्रद्धा के पात्र हैं।

अंत में मैं एक ही बात कहना चाहूंगी कि इस सृष्टि का हर प्राणी किसी न किसी रूप में शिक्षक ही है क्योंकि शिक्षक वह होता है जो शिक्षा दे और अगर हम ध्यान दें तो हर मिलने वाले प्राणी से हम कुछ न कुछ सीखते ही हैं जो जीवन में कहीं न कहीं हमारे काम आता है।इसलिए आज के दिन मैं सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ देना चाहूंगी।इसी के साथ मेरा एक सुझाव भी है कि हम सभी चाहे उम्र के किसी दौर में भी हों एक ईमानदार और अच्छे विद्यार्थी बने रहें तो हमें अच्छे शिक्षक भी मिलते रहेंगे।इस तरह से शिक्षा का यह अनवरत क्रम चलता रहेगा।न तो विद्यार्थी जीवन कभी ख़त्म होता है और न ही शिक्षक की भूमिका कभी हमारे जीवन से जाती है इसलिए यदि जीवन का यह सूत्र पकड़ लिया तो जीवन में हार या असफलता नामुमकिन है।    

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