कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो झकझोर देती हैं,कुछ हिला देती हैं,कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं,कुछ शर्मिंदा करती हैं,कुछ प्रश्न खड़े करती हैं,कुछ जीवन ही बदल देती हैं और भी न जाने क्या-क्या हो जाता है किसी एक घटना के हो जाने से परन्तु कोई एक घटना अगर इन सारी परिस्थितियों को तो जाने दें इसके अलावा भी न जाने क्या-क्या मानसिक हालात उत्पन्न कर दे तो उसे क्या कहेंगे?मेरे पास तो कोई जवाब नहीं है और शायद आज किसी के भी पास कोई जवाब नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए क्योंकि सवाल-जवाब तो बहुत हो चुके अब क्या होगा बस सिर्फ इस बात का जवाब मिलना चाहिए।
आप समझ ही गये होंगे कि मैं अभी पांच दिन पहले तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में घटित दर्दनाक,शर्मनाक और वीभत्स घटना डॉ.प्रियंका रेड्डी हत्याकांड की बात कर रही हूँ।इस घटना के होने के बाद से सच पूछें तो कुछ भी करने का मन ही नहीं हो रहा।आज जब मैं लिखने बैठी हूँ तो कोई भाव मन में आ ही नहीं रहा सिवाय उस मासूम निर्दोष प्रियंका के साथ हुए हादसे के अलावा।अब मैं वही सब कुछ लिखना नहीं चाहती जो आप सभी इन पांच दिनों से प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा देख-सुन ही रहे हैं।हाँ कुछ बातें बहुत ही अटपटी और दिल को दुखाने वाली लग रहीं हैं और कई सारे प्रश्न भी खड़े कर रही हैं।हमारे देश के कानून व मानवीय सद्भावना के अनुसार ऐसे मामले में पीड़िता की पहचान को उजागर नहीं किया जाता।इसीलिए निर्भया पीडिता को समाज व मीडिया द्वारा यह नाम दे दिया गया जबकि हम सभी जानते ही हैं कि उसका असली नाम निर्भया या दामिनी नहीं था बल्कि कुछ और था।अब इसी तरह प्रियंका को ‘दिशा’ नाम दे दिया गया है।क्या ऐसा कर देने से हालात बदल जाएँगे?या आगे से ऐसा नहीं होगा इसकी कोई गारंटी मिल जाएगी।शायद नहीं।लेकिन हम कितने चालाक और बनावटी हैं।बलात्कार पीड़िताओं का नाम बदलने या छुपाने के अलावा हमें कुछ आता ही नहीं।ऐसा मैं नहीं लिख रही यह हालात लिखा रहे हैं क्योंकि ऐसा न होता तो 16 दिसम्बर 2012 जिस दिन भारत की राजधानी दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना घटी थी उस वर्ष के बाद प्रत्येक वर्ष एक दिन तो हम ज़रूर बढ़-चढ़कर निर्भया या दामिनी को याद कर लेते हैं और उसके असली नाम की जगह दामिनी निर्भया जैसे अच्छे-अच्छे नाम देकर उसे अपनी श्रद्धांजलि देते हैं लेकिन वास्तव में उस घटना को भुला चुके हैं क्योंकि अगर याद रखा होता तो उसके बाद इतनी बर्बर और जघन्य घटनाएँ न घटतीं।जितनी तेजी हम निर्भया,दामिनी और अब प्रियंका को दिशा बनाने में दिखा रहे हैं उतनी ही तेजी अगर अपराध से लड़ने में और अपराधी को सजा देने में लगा देते तो आज स्थितियां कुछ और होतीं।
इस बर्बर घटना से इस पूरे देश की हर बेटी आज डरी-सहमी हुई है।हर बेटी के दर्द और डर को बयां करती एक छोटी-सी कविता दे रही हूँ जो हम सबके दिल की आवाज़ है –
कहीं जाने में डर लगता है
कहीं जाने में डर लगता है
जाकर लौट न आ पाने का डर लगता है
मुझे सिखाया जाता है कि लाल मिर्च की पुड़िया रखूं
जिसे दरिन्दे की आंख में झोंक कर बच सकूँ
चाकू रखूं या 100 न.डायल करने को तत्पर रहूँ
पर क्यों मैं ऐसा भय लेकर घर से निकलूं?
विनती है कि मेरा दोष बताया जाए।
स्कूल-कॉलेज,घर सड़क,मोहल्ला गली अस्पताल
और बाज़ार सब जगह जब खतरा है
फिर चैन मरकर ही मिलेगा ऐसा लगता है
लेकिन अब तो मर जाने से डर लगता है
लाश बनकर भी मैं सुरक्षित नहीं हूँ
ऐसा सोचकर लाश न बन जाने का डर लगता है।
कहीं जाने में डर लगता है
जाकर लौट न आ पाने का डर लगता है।।
मुझे जलने से कितना डर लगता है माँ
तू तो जानती ही है इस बात को लेकिन-
जलने के बाद मेरी फोटो पर सब मालाएँ चढ़ाएँगे
कैंडल मार्च डिबेट होंगे,संसद में भाषण भी होंगे
सब तुझसे और पापा से मिलने आएँगे
मेरे बहादुरी से मुकाबला करने के किस्से गाएंगे
लेकिन उसके बाद मैं भी भुला दी जाऊँगी
फिर जब मेरी किसी और बहन का ऐसा हाल होगा
तो सभी को मैं भी फिर याद आ जाऊँगी
माँ मुझे निर्भया-दामिनी और प्रियंका
बन जाने का डर लगता है
कहीं जाने में डर लगता है
जाकर लौट न आ पाने का डर लगता है।।
4 Comments
Babita pandey
हृदय विदारक घटना विकृति मानसिकता का परिणाम
Kiransingh
Speechless
पूनम घई
स्तब्ध ! निःशब्द ! झकझोरने वाली कविता !
डॉ भारती मिश्रा
हृदय को झझकोरने करने वाली घटना को बयान करती हुई सटीक कविता