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महिला दिवस मनाने की सार्थकता

चार दिन दूर हैं हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से।जैसा कि सभी जानते हैं कि 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस होता है लेकिन इस तरह के दिन मनाने की सार्थकता तो तब है जब वास्तव में जिनके लिए इस दिन को मनाया जाता है उनके लिए दिल में प्यार और सम्मान हो।मुझे कहने की ज़रूरत ही नहीं है कि हमारे देश में हाल के वर्षों में तो बहुत ही ज्यादा महिलाओं के साथ घटित होने वाले हादसे बढ़ गये हैं।उन सब बातों को दोहराने का तो कोई औचित्य नहीं है लेकिन फिर इस दिवस को मनाने का क्या औचित्य है यह मैं पूछना चाहती हूँ।

कल से जब से समाचारपत्रों और टेलीविज़न में यह खबर पढ़ने और देखने को मिली कि निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में चारों दोषियों के खिलाफ जारी डेथ वारंट अदालत ने अगले आदेश तक टाल दिया है।जिसके कारण मंगलवार (3 मार्च) को फांसी नहीं दी जा सकेगी,तब से मन यह सोचने को मजबूर हो गया है कि आखिर इस समाज में हो क्या रहा है?क्योंकि निर्भया के साथ जो कुछ हुआ वह सामान्य घटना नहीं थी।उसका इलाज करने वाले डाक्टर भी इस वीभत्स घटना को देखकर हैरान थे।फिर अदालत ने स्वयं ही उन आरोपियों की सजा मुक़र्रर की तो फिर कल निर्भया की माँ को जब रोते हुए टेलीविज़न पर देखा और यह कहते सुना कि अदालत अपने ही फैसले को क्यों टालती जा रही है तो मेरे मन में भी इसी तरह के प्रश्न उठने लगे।निर्भया की माँ का चेहरा देखकर इतना ज्यादा मन व्यथित हो जाता है कि मेरे पास शब्द ही नहीं रहे ऐसी माँ को सांत्वना देने के लिए।स्वयं पर शर्म आती है कि हम एक सभ्य समाज में रहते है और ऐसे दुराचारियों के खिलाफ कुछ कर भी नहीं पाते।

खैर उन आरोपियों को सजा देना या कब देनी है यह सोचना निश्चित रूप से अदालत का कार्य है और हम सब उस अदालत का सम्मान करते हैं।इसलिए अभी उस मामले में हम में से किसी को भी कुछ भी नहीं बोलना चाहिए।बस इस महिला दिवस को मनाने से पहले आज मैं अपनी यह पोस्ट इसीलिए डाल रही हूँ कि एक बार सोचिये कि ऐसी घटना किसी के भी साथ हो सकती है।क्या ऐसे दुराचरण करने वालों को माफ़ किया जा सकता है?मेरा तो यह विचार है कि इस तरह की वीभत्स,घृणित और कुत्सित घटनाओं को अंजाम देने वालों को मनुष्य की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता।ऐसे लोग तो जंगली जानवर से भी गये गुजरे हैं क्योंकि शायद जंगली जानवर भी इस तरह का आचरण नहीं कर सकेंगे।

मैं जब भी ऐसे हादसों के बारे में सुनती हूँ तो मुझे बहुत पहले पढ़ी हुई महान विचारक और दार्शनिक अरस्तू की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं,जो इस तरह के लोगों के लिए इतनी सटीक हैं कि मुझे तो अब इतनी ऐसी घटनाएँ देख-देखकर यह पंक्तियाँ ही याद हो गई हैं।आइये इन पंक्तियों को देखते हैं-

“He who is unable to live in society or who has no need because he is sufficient to himself,must be either a beast or God.”

(वह जो समाज में नहीं रह सकता अथवा जिसे समाज की कोई ज़रूरत ही नहीं क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है,ऐसा व्यक्ति या तो कोई जंगली जानवर हो सकता है या भगवान।)”

मुझे लगता है इतने भयंकर हादसों को परिणाम देने वाले इस तरह के बलात्कारी भी स्वयं को ऐसा मानते हैं कि उन्हें समाज की कोई आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि अगर वे समाज में रहने की मजबूरी को भी सोचें और थोड़ी सी अपनी हरकतों पर विचार करें तो इस तरह के हादसों को करने से पहले उनके अन्दर का जानवर शायद थोड़ा मर जाए और इंसानियत जिंदा हो जाए।लेकिन नहीं उनके अन्दर मनुष्यत्व का लेशमात्र भी नहीं है और वे सिर्फ जंगली जानवर ही हो सकते हैं क्योंकि जैसा कि अरस्तू के कथन से भी स्पष्ट हो जाता है कि जिसे इस समाज की आवश्यकता नहीं है वह जंगली जानवर या भगवान ही हो सकता है तो ऐसे लोगों को भगवान कहना तो पाप की श्रेणी में ही आएगा इसलिए मेरे विचार से इन लोगों को जंगली जानवर ही कहना उचित है और इनको माफ़ तो नहीं ही किया जा सकता।आप क्या सोचते हैं?अपने विचार ज़रूर रखिये।

1 Comment

  • KAMENDRA DEVRA
    Posted March 4, 2020 at 5:22 pm

    ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
    अगर एक आदमी को शिक्षित किया जाता है तो एक आदमी ही शिक्षित होता है ! लेकिन जब एक औरत को शिक्षित किया जाता है तब एक पीढ़ी शिक्षित होती है।
    !! नारी है तो कल है !!

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