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तू जी, ऐ दिल ज़माने के लिए

“अमृत कलश तो देवता
लेकर चले गए
विष ज़िंदगी का जो बचा
सारा मिला हमें।
ये आग, ये धुंआ, ये
धुंधलका है सामने
इस हाल में तो हर कोई
हारा मिला मुझे।”

– हनुमंत नायडू

बात बिल्कुल सही है, जीवन दुखालय है और इसमें वही इंसान आंतरिक सुख और संतुष्टि का अनुभव कर सकता है, जिसके अंदर आत्मसंतुष्टि और परमार्थ का भाव होगा, क्योंकि अपने लिए और अपनों के लिए तो सभी करते हैं लेकिन दूसरों के दर्द को अपनाना, उनका सहारा बनने की कोशिश भी करना बहुत बड़ा सुख और परमानंद देता है।अब यह अलग बात है कि हमारी सोच और नज़रिया क्या है ? इस प्रकार के कार्य करने के लिए एक अलग जज़्बा, एक जुनून होना चाहिए।इसके बिना कुछ हो नहीं सकता क्योंकि जब हम समाज के लिए, देश के लिए कुछ करने की सोचते हैं तो वहां स्वार्थ नहीं होता, बस एक जज़्बा होता है, यह कार्य किसी भी प्रकार का हो सकता है।इस कोरोना काल में कुछ लोग निःस्वार्थ भाव से अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के लिए कुछ कर रहे हैं तो कुछ अपनी वाकपटुता के द्वारा तो कुछ तन, मन और धन से ज़रूरतमंदों को खाद्य सामग्री, मास्क और आवश्यकता की अन्य वस्तुएं उपलब्ध कराके अपने समाज और देश के प्रति दायित्व को पूर्ण करने में लगे हुए हैं।
ऐसे लोगों के चेहरे आप गौर से देखिए, इनसे बात करके देखिए, इनकी सादगी और इनके अंदर जो आत्मसंतुष्टि है वह सामने वाले व्यक्ति के जीवन को भी संतुष्टि और खुशहाली से भर देती है और ज़िंदगी का सारा विष इस परमार्थ सेवा से अमृत में बदल जाता है।कहते हैं न “अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए।”

हमारे आज के मेहमान लखनऊ हाई कोर्ट में अपर शासकीय अधिवक्ता, राम उग्रह शुक्ला जी से बात करके, उनसे मिलकर यही लगता है कि वे कितनी सरलता से एक महान उद्देश्य को लेकर चलते जा रहे हैं।’चुभन’ के कार्यक्रम में आप पहले भी आ चुके हैं, उनकी लगन और मेहनत को देखकर शब्द भी कम पड़ जाते हैं।जिस तन्मयता से आपने कोरोना की पहली लहर में लोगों की मदद को हाथ आगे बढ़ाए, उसी तरह इस बार दूसरी लहर में भी आपने लोगों के बीच जाकर मदद की।इस बार जब दूसरी लहर आई तो उसका रूप इतना भयंकर था कि लोग घर से निकलने में भी डरने लगे लेकिन शुक्ला जी ने ऐसे समय में भी अपनी जान की परवाह न करते हुए, ज़रूरतमंदों की मदद को ही अपना परम कर्तव्य समझा।
चीन से चले कोरोना वायरस ने जब भारत में अपने पैर पसारने शुरू किए और वायरस संक्रमण फैलने लगा तो देश में लॉकडाउन के माध्यम से संक्रमण को रोकने की व्यवस्था बनी थी, जिसके कारण बहुत से लोग घरों तक पहुंचने के लिए भूखे प्यासे पैदल आने लगे।शुक्ला जी ने लगातार 125 दिनों तक भूखे, असहाय संकटग्रस्त लोगों, कोरोना रक्षक पुलिसकर्मियों सहित कोरोना समाजसेवियों, यहां तक कि रिक्शा वालों, सफाई कर्मियों, प्रेस मीडिया से संबंधित लोगों सहित सभी लोगों के बीच जाकर आवश्यक खाद्य सामग्री एवं मास्क, सेनीटाइजर, दवा आदि का वितरण किया।वे कहते हैं कि “मेरा कर्तव्य है कि समाज में कोई भी अगर परेशानी में है तो उसकी मदद की जाए। मेरी कोई राजनैतिक इच्छा नहीं है, न ही मैंने कोई कार्य किसी प्रयोजन से किया है। मेरा उद्देश्य केवल लोगों के बीच में सेवा भाव से उपस्थित रहना है और जरूरतमंदों की मदद होती रहे यही मेरा परम उद्देश्य है।”

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के साथ

उनका कहना है कि वे बहुत ही साधारण व्यक्ति हैं और अपने सीमित संसाधनों से गरीब, असहाय और असमर्थ लोगों की जो भी मदद कर पा रहे हैं उसको अपना सौभाग्य समझ कर करते हैं क्योंकि इस संकट काल में उन्हें सहायता करने का अवसर मिला।वे गांव और जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं और उनको जो अंतरात्मा की आवाज पर सही दिखाई देता है, वह करने का प्रयास करते हैं। उन्होंने 26 मार्च 2020 से मदद करने के लिए अपने मन में प्रण लेकर एक शुरुआत कर दी और समाज में सभी लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित भी करते रहे, क्योंकि उनके पास बहुत बड़े संसाधन नहीं थे कि हर आदमी की मदद के लिए खड़े हो सकें, परंतु यह हीरो बनने का नहीं सेवा करने का वक्त था, डर के आगे जीतने का वक्त था,सरकार भी व्यक्तियों पर आधारित है, हर व्यक्ति तक सरकार नहीं पहुंच सकती है, इसलिए हर व्यक्ति को निकल कर ऐसे लोगों की मदद करनी थी जो परेशान थे और जिनकी समस्या कोई सुनने वाला नहीं था, इसीलिए शुक्ला जी ने ऐसे स्थानों का चयन किया, जहां आसानी से लोग नहीं पहुंच सकते हैं या तो जिन लोगों की ओर किसी का ध्यान आसानी से नहीं जाता है।

पहले लॉकडाउन के एक साल बाद लॉकडाउन का दूसरा फेज कोरोना-2 के साथ शुरू हुआ और इसी के साथ शुरू हुआ राम उग्रह शुक्ला जी का अभियान -2, लगातार भूखे, असहाय, संकटग्रस्त लोगों तक एक बार पुनः जाकर आवश्यक खाद्य सामग्री एवं मास्क,सेनीटाइजर और दवा आदि का वितरण किया। कोरोना की दूसरी लहर शुरू होते ही संकटग्रस्त लोगों की सेवा के लिए अपने निजी बचत से पुनः सहायता में जुट चुके हैं। सभी लोगों से असहायों की मदद के लिए जुट जाने की अपील भी कर रहे हैं।उनका कहना है कि इस आपदा में बिना भेदभाव के लोगों की मदद में सभी को आगे आना चाहिये, देश बहुत गंभीर संकट से गुजर रहा है और देशवासियो को एकजुटता से इसका जबाब देना होगा।

अपनी मां के साथ खुशी के पल

लखनऊ हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रामउग्रह शुक्ला जी द्वारा लॉकडाउन में लोगों के लिए की जा रही मदद रुकने का नाम नहीं ले रही है।सफल कोरोना योद्धा की तरह जहां भी जरूरत होती है वहां आप दिखाई देते हैं। कोरोना की पहली लहर की तरह दूसरी लहर के शुरू होते ही सबसे पहला नाम राम उग्रह शुक्ला का ही उभर कर आया है।अपने रूटीन वर्क की तरह लोगों की मदद करना इनकी दिनचर्या हो गई है, जहां भी देखते हैं कि उनकी मदद की जरूरत है, वहां बिना कुछ सोचे समझे पहुंच जाते हैं, इनकी सोच है कि किसी भी प्रकार से ज़रूरतमंदों की मदद होनी चाहिए।आप लखनऊ के सोनू सूद बन कर उभरे हैं, इनको देखकर ही जरूरतमंद तुरंत सामने आ जाते हैं।

उनका कहना है, “मुझको न नाम कमाने की चिंता है न किसी प्रकार का वोट बैंक ही बनाना है, बस मदद ही मेरा उद्देश्य था, हैं और रहेगा। अब यह हमेशा करता रहूँगा, समाज की सेवा से बढ़ कर और कोई सेवा नहीं है।”
ऐसे सरल और भावुक हृदय व्यक्ति से आज हम ‘चुभन’ के पॉडकास्ट पर बातचीत करेंगे।पूरा कार्यक्रम आप वहां सुन सकते हैं।

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