International Women’s Day Special:part 2
मेजर जनरल ए.के. शोरी जी की पुस्तक Invisible Shades of Ramayana पर एक संवाद भाग 3
इस सप्ताह हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) पर कुछ विशेष कार्यक्रम आपके सामने ला रहे हैं, क्योंकि हमारा उद्देश्य भी यही है कि महिलाओं से संबंधित मुद्दों या बातों को किसी एक दिवस में बांधकर न रख दें बल्कि आपस में बातचीत या स्वस्थ बहस के ज़रिए हम एक अच्छा समाज,एक अच्छा राष्ट्र निर्मित करने में अपना छोटा सा ही सही, योगदान तो दे ही सकते हैं।इसी सोच के मद्देनज़र हमारी कोशिश है कि हम अलग-अलग विषयों और मुद्दों पर बातचीत करें और अपने विशेषज्ञों के सुझाव लें।
आप सभी यह भी जानते हैं कि आजकल हमलोग, मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी की वाल्मीकि रामायण पर आधारित पुस्तक Invisible Shades of Ramayana पर उनके विचार जान रहे हैं और रामायण के बहुत से अदृश्य दृश्यों को अब तक उनसे जान भी चुके हैं लेकिन इस सप्ताह महिला दिवस (Women’s Day) के अवसर पर मेजर जनरल साहब किन खास चरित्रों को लेकर हमारे सामने आएंगे और उनके विषय में हमें बताएंगे, यही जानते हैं, चलिए उनके शब्दों को ही पढ़ते हैं।
अमिल कुमार शोरी जी की लेखनी से-
कैकेयी – नियति का खिलौना
कैकेयी की पहचान एक ऐसी बुरी औरत के रूप में है, जिसने ऐसे मौके पर अपनी कुटिल चाल चली कि जहाँ चारों और खुशियों और उत्सव का माहौल था, पूर्णतः शोकग्रस्त हो गया।कैकेयी का नाम ‘काम बिगाड़ने वाली’ का पर्यावाची बन गया है।आज तक किसी माता-पिता ने अपनी बेटी का नाम कैकेयी नहीं रखा है।
अगर वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि कैकेयी प्रारंभ से ऐसी कुटिल और स्वार्थी नहीं थी जैसा कि हम उस के बारे में सुनते आये हैं।मंथरा ने उसे भड़काया, ऐसा भी हमें मालूम है, लेकिन हमें यह नहीं मालूम कि कैकेयी का श्री राम के प्रति लगाव और प्रेम कितना था.जब उसे श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार मिला तो उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा।कैकेयी उतनी ही खुश थी जितनी कौशल्या। क्या श्रीराम के प्रति कैकेयी के प्रेम,व स्नेह के बारे में हमें मालूम भी है?आईये, जानने की कोशिश करें कि वाल्मीकि रामायण में इसके बारे में किस तरह से दर्शाया गया है।
कौशल्या की वेदना
श्रीराम की माताश्री कौशल्या का बेटे से बिछड़ने का दर्द हम नहीं समझ सकते।ऐसी माता जो कि एक समय हर्ष से फूली नहीं समा पा रही थी, अगले ही पल घोर विशाद के सागर में घिर गयी। कहाँ तो पुत्र के राज्याभिषेक की बात हो रही थी, चारों ओर उत्सव का माहौल था,खुशियों का माहौल था,तभीऐसा समाचार सुनने को मिला कि पैरों से जमीन खिसक गयी।पुत्र से इतना प्रेम और स्नेह कि उससे एक पल भी अलग होना असंभव और सुनने को मिला कि उसे चौदह बरस के लिए वनवास जाना पड़ रहा है!
कौशल्याका दर्द कौन जाने? पति की सबसे पहली पत्नी तो थी लेकिन पूर्ण प्रेम न मिल सका।पति की दो और पत्नियों के साथ प्यार बाँटना पड़ा और तीसरी ( कैकेयी) सबसे सुंदर व आयु मेंछोटी होनेके कारण पति की सबसे प्यारी भी थी।मन में आशा जाग उठी कि सारी खुशियाँ पुत्र के राज्याभिषेक होने पर पूरी हो जाएँगी लेकिनअचानक ऐसा वज्रपात हुआ कि चारों और अन्धेरा छा गया। एक समय कौशल्या ने दशरथ के सामने यह प्रस्ताव भी रखा कि श्रीराम की जगह भरत को राजा बना दिया जाये लेकिन श्रीराम को वनवास न भेजा जाये. लेकिन नियति को यह मंज़ूर नहीं था।कौशल्या के मन में यह संदेह भी था कि मालूम नहीं भरत के राजा बन जाने पर उसकी अपनी क्या परिस्थिती रहेगी? उसके मन में अपने पुत्र के साथ अपने अनिश्चित भविष्य की आशंका भी सता रही थी।कौशल्या की इसी मनोस्थिति को वाल्मीकि जी नें रामायण में विस्तार से दर्शाया है।