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हिन्दी दिवस

चुभन के पाठकों को “हिंदी-दिवस” की हार्दिक शुभकामनाएं।

हिंदी हमारी राजभाषा है अतः इसका सम्मान बहुत आवश्यक है।चीनी भाषा के बाद बोली जाने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हमारी हिंदी ही है।आज हिंदी राजभाषा,संपर्क भाषा,जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है तो वही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी ज़रूरी है।

आज यानि 14 सितम्बर को हम ‘हिंदी-दिवस’ मनाते हैं।वास्तव में किसी भी राष्ट्र की आधारशिला राष्ट्रभाषा होती है।संविधान सभा में 14 सितम्बर 1949 में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया।जिसका अनुसरण करते हुए 26 जनवरी 1950 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी घोषित की गयी।आज के दिन स्वयंसेवी संस्थानों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक मातृभाषा की ऐसी बयार बहती है कि मानों और कोई भाषा हो ही न लेकिन साल के शेष दिनों में कामकाजी भाषा के तौर पर देखें या सरकारी ऑफिसों की कार्यप्रणाली में, मातृभाषा की कितनी चिंता की जाती है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है।अफ़सोस की बात है कि हम हिंदी-दिवस पर हिंदी पखवाड़ा मनाकर मात्र औपचारिकता पूरी कर लेते हैं,लेकिन हिंदी को लेकर जो आमूल-चूल परिवर्तन होने चाहिए, वह नहीं किये जाते हैं।आज की युवा पीढ़ी हिंदी बोलने में हिचकती है और सबसे बड़ी बात जो दिल में चुभन देती है वह यह है कि आज की युवा पीढ़ी हिंदी साहित्य को पढ़ना ही नहीं चाहती है।जबकि मुझे बताने की आवश्यकता ही नहीं है कि हमारा हिंदी साहित्य इतना समृद्ध है कि उससे विदेशी रचनाकारों ने प्रेरणा ली।दुःख होता है जब आज के दिन (हिंदी-दिवस) की शुभकामनाएँ भी अंग्रेजी में दी जाती हैं।पिछले वर्ष सुबह-सुबह जब मुझे फ़ोन पर हिंदी-दिवस की बधाई के रूप में इन शब्दों को सुनना पड़ा- “हेलो मैडम,विश यू ए वैरी हैप्पी डे……सेलिब्रेट एंड एन्जॉय।” तो विश्वास कीजिये कि हजारों काँटों की चुभन का एहसास हुआ।

हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए उसके बुनियादी ढांचे को मजबूत करना पड़ेगा और यह स्कूली स्तर से ही करना होगा।इसे लेकर गंभीरता से सोचना होगा।एक अनुमान के अनुसार 60 करोड़ से भी ज़्यादा लोग हिंदी बोलते,पढ़ते और लिखते हैं परन्तु इतनी सघन पैठ के बावजूद एक किताब को मात्र चार-पांच सौ से ज़्यादा पाठक नहीं मिल पाते यदि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो।
एक बहुत बड़ा भाग उस शहरी आबादी का भी है जो मध्यवर्ग और उच्च मध्यवर्ग कहलाती है और जिसके पास तेजी से धन-संपत्ति और मनोरंजन के साधन आए हैं।दूसरे शब्दों में कहें तो यह ही वह वर्ग है जिसे नई विलासिता हासिल हुई है और वे अपनी भाषा और साहित्य से भी दूर हुए हैं।पंडित जवाहरलाल नेहरु ने शायद इस वर्ग के लिए ही एक बार यह बात कही थी, “मैं अंग्रेजी का इसलिए विरोधी हूँ क्योंकि अंग्रेजी जानने वाला व्यक्ति अपने को दूसरों से बड़ा समझने लगता है और उसकी दूसरी क्लास सी बन जाती है। क्या यही एलीट क्लास होती है?”
वास्तव में बड़ा बुरा लगता है जब कोई हिंदी बोलते समय स्वयं को हीन समझता है। ‘हिंदी भाषी व्यक्ति की अपेक्षा अंग्रेजी बोलने वाला बहुत विद्वान है’ -ऐसी धारणा रखने वालों को अब अपनी सोच बदलनी चाहिए।हमें यह ध्यान रखना होगा कि हिंदी-दिवस भी एक आयोजन और प्रतीक की तरह ही हर साल आता जाता न रहे बल्कि ठोस कार्य करने होंगे।मैं पूछना चाहती हूँ कि आखिर कितने घरों में आज कबीर,सूर,तुलसी,मलिक मोहम्मद जायसी,रहीम,रसखान,निराला,महादेवी वर्मा,प्रेमचंद,या नागार्जुन जैसे साहित्यकारों की पुस्तकें मिलेंगी? लेकिन इसका जवाब अधिक से अधिक ‘हाँ’ में आए इसके प्रयास करने होंगे।मैं आज के बच्चों या युवा पीढ़ी को ही क्या दोष दूँ? अभिभावक या माता-पिता भी इस मामले में दोषी हैं क्योंकि मैंने कई लोगों को देखा है कि वे बड़े गर्व से बताएँगे कि उनका बच्चा इंग्लिश मूवी ही देखता है या इंग्लिश किताबें ही पढ़ता है।ऐसे में इन बच्चों से यदि किसी महान हिंदी लेखक के बारे में पूछ भी लो तो बच्चा तो जवाब नहीं ही दे पाता परन्तु माता या पिता तुरंत बोलेंगे कि “इसे तो इंग्लिश राइटर और पोएट ही पता हैं शुरू से इसने हिंदी बुक्स पढ़ी ही नहीं।” जैसे हिंदी पढ़ना कोई हीनता का कार्य था और न पढ़कर उनके बच्चे ने कोई महान कार्य कर लिया।मैं अंग्रेजी या अन्य किसी भी भाषा की कतई विरोधी नहीं हूँ और इनकी भी अपनी महत्वपूर्ण जगह है परन्तु हिंदी को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए।

हिंदी ऐसी भाषा है जिसका महत्व कभी भी कम नहीं हो सकता है।आज फेसबुक,व्हाट्सएप और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके दिन की शुरुआत ‘सुविचार’ और ‘सुप्रभात’ जैसे संदेशों से होती है।आज हिंदी ब्लॉग भी ख़ूब लिखे और पढ़े जा रहे हैं। आप सब जानते ही हैं कि ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर हमने उस समय से हिंदी में कार्यक्रम देने शुरू किए, जब हिंदी के पॉडकास्ट चैनल बिल्कुल न के बराबर थे और यदि थे भी तो सिर्फ गानों आदि के थे, परंतु मैं अपने श्रोताओं की दिल से आभारी हूं कि उन्होंने हमारे कार्यक्रमों को इतना पसंद किया कि हमने विभिन्न विषयों पर अब तक अनगिनत कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं।

दूसरी तरफ इसमें भी कोई दो राय नहीं कि हमारी बॉलीवुड इंडस्ट्री में भी हिंदी का बड़ा योगदान है।आज भी प्रसून जोशी और गुलज़ार साहब जैसे लोग हैं जिन्होंने हिंदी की गरिमा को कायम रखने का बीड़ा उठा रखा है लेकिन कभी-कभी जब टेलीविजन पर हमारी फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े नामी और कामयाब अभिनेता,अभिनेत्री या कोई भी कलाकार आते हैं तो वे पूछे गये प्रश्नों का अधिकतर जवाब अंग्रेजी में ही देते हैं और यदि पूछने वाला हिंदी में भी पूछ रहा होता है फिर भी उनकी भाव-भंगिमा ऐसी होती है कि जैसे उन्हें हिंदी बोलने में बहुत कष्ट हो और अंग्रेजी में जवाब देने में वे स्वयं को बहुत ही सहज दर्शाते हैं।मुझे तो हंसी आती है ऐसे कलाकारों पर जो हिंदी भाषा की फिल्मों में काम करके कामयाबी की सीढ़ियों पर चढ़ते जा रहे हैं और लाखों-करोड़ों इसके द्वारा कमा रहे हैं, उसी हिंदी को बोलने में इन्हें छोटापन लगता है।हालाँकि इधर मैं महसूस कर रही हूँ कि कुछ कलाकारों के कारण पूरी इंडस्ट्री में एक सुखद बदलाव आ रहा है और हमारी फिल्म इंडस्ट्री के कलाकार भी हिंदी भाषा और देशभक्ति की बातें बहुत खुलकर करने लग गये हैं और वैसे देशभक्ति के मामले में तो फिल्म इंडस्ट्री कभी पीछे भी नहीं रही चाहे कभी भी हमारे देश पर कोई युद्ध थोपा गया हो, तब भी इन कलाकारों ने देश की सीमा पर जाकर भी अपने सैनिकों की हौसलाफजाई करने में संकोच नहीं दिखाया।

साहित्य,कला,विज्ञान,उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में हमारी क्या उपलब्धियां रहीं? अंग्रेजों से मुक्ति पाने के बाद हमने किस हद तक गुलामी की भाषा छोड़ निज भाषा में कार्य करने की काबिलियत हासिल की? हिंदी के प्रचार-प्रसार का जितना शोर-शराबा हुआ उसका कितना फायदा लोगों को मिला? आज हिंदी-दिवस पर इन सवालों पर अगर विचार किया जाए तो परिणाम कभी भी उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता।भाषा के नाम पर आज देश जिस विद्रूप स्थिति में खड़ा है उसे कभी भी उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता।1947 से लेकर 2023 तक का 76 सालों का सफ़र वैसे तो किसी भी देश के लिए अधिक नहीं होता परन्तु भाषा के नाम पर इसे कम भी नहीं कहा जा सकता।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था- “इस देश का कान और जिह्वा हिंदी ही है।अगर यह देश सुनेगा तो हिंदी के माध्यम से तथा बोलेगा तो हिंदी के माध्यम से।अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता होती तो मैं आज से ही विदेशी भाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा बंद कर देता।मैं पाठ्य-पुस्तकों की तैयारी का इंतज़ार नहीं करता।वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे चली आएंगी।आज़ादी के छः महीने बाद भी यदि कोई जनप्रतिनिधि संसद या विधानसभा में अंग्रेजी बोलता हुआ पाया गया तो मैं उसे गिरफ्तार करा दूंगा।विदेशी भाषा एक ऐसी बुराई है,जिसका तुरंत इलाज होना चाहिए।”

आज शायद ही किसी को गाँधी जी के यह शब्द याद हों।देश को आज़ाद कराने वालों ने स्वतंत्र भारत के लिए स्वभाषा का जो सपना देखा था,उसे इतने वर्षों बाद भी हम साकार नहीं कर पाए हैं।हम गुलाम मानसिकता के कारण अंग्रेजी के दामन से इस तरह चिपके हुए हैं कि हिंदी की अनवरत उपेक्षा में ही हमें सुख की अनुभूति होती है।जब हमारा देश गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था उस समय भी हमारे राजनीतिक कर्णधार और साहित्यकार हिंदी को ही वरीयता देते थे और गुलाम होने के बाद भी अंग्रेजी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते थे परन्तु हम आज स्वतंत्र हैं फिर भी अंग्रेजी के आगे हिंदी को नकारते रहते हैं।आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रवर्तक भारतेंदु हरीशचंद्रजी ने स्वयं भी अंग्रेजी,संस्कृत और बांग्ला आदि भाषाओँ से प्रचुर मात्रा में हिंदी अनुवाद किये तथा अपने समय के अन्य लेखकों को भी इस कार्य के लिए प्रेरित किया।दुनिया भर के ज्ञान-विज्ञान को हिंदी भाषा में समेट लेने की प्रबल आकांक्षा उनमें दिखाई देती थी, क्योंकि वे जानते थे कि यही एक उपाय है जिससे जन-सामान्य को विविध विधाओं में शिक्षित किया जा सकता है।

दुर्भाग्यवश भाषा के प्रश्न पर हम काफी पिछड़ गये हैं।इतिहास इस बात का गवाह है कि श्रीलंका जब स्वतंत्र हुआ तब सिंहली की स्थिति हिंदी से भी ख़राब थी, फिर भी एक साल में सिंहली भाषा श्रीलंका की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गयी।जापान अपनी ही भाषा में सभी कार्य करता है।अफगानिस्तान में पश्तो,तंजानिया में स्वाहिली और उरुग्वे में गोरानी तथा बांग्लादेश में बांग्ला भाषा आज़ादी के साथ ही राजभाषा के पद पर आसीन हैं।फ्रांसीसी भाषा से चुन-चुन कर अंग्रेजी शब्दों को निकाल दिया गया।एक शताब्दी पूर्व फ़िनलैंड के लोग स्वीडी भाषा का प्रयोग करते थे परन्तु अब उनकी स्वयं की भाषा फिनी उनके राजकाज की भाषा है,लेकिन हमारे शासकों ने भाषा के मामले में ऐसी नीति का अनुसरण किया जिसे देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि यह एक गुलाम सोच का नतीजा है।जिन देशों को भी अपनी राष्ट्रीय अस्मिता का एहसास है वह किसी दूसरे देश की भाषा का प्रयोग नहीं करते।

रूस,चीन और दूसरे देशों के जो राज्याध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष भारत आते हैं,स्वागत समारोहों और समझौता वार्ताओं में वे अंग्रेजी का प्रयोग नहीं करते।वे अपनी भाषा में बोलते हैं और दुभाषिया उसका अनुवाद करता है,किन्तु विडंबना यह रही कि आज़ादी के बाद से लेकर हाल के वर्षों तक उनके साथ बातचीत करते समय हमारे देश के नेता,बुद्धिजीवी और पत्रकार केवल अंग्रेजी बोलते हैं,ऐसा क्यों? इस ‘क्यों’ का जवाब तो उन्हीं लोगों के पास होगा लेकिन एक सकारात्मक और अच्छी पहल यह हुई है कि इधर कुछ वर्षों से हमारे देश के राज्याध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष भी हिंदी भाषा का खुले मन और प्रसन्नतापूर्वक प्रयोग करते हैं।तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था और उनकी बहुत प्रशंसा हुई थी।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने भी विदेशों में हिंदी में भाषण देकर बहुत वाहवाही प्राप्त की और देशवासियों को गर्व और प्रसन्नता की अनुभूति कराई।
तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज जी के संयुक्त राष्ट्र में दिए गये हिंदी में भाषणों को कोई भी देशवासी भूल नहीं पाएगा।30 सितम्बर 2018 को उनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी हमारे दिल में है।2017 और 2016 में भी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से जैसा ओजस्वी और भावपूर्ण भाषण दिया उसकी पूरे देश में चर्चा हुई और यहाँ तक कि विपक्षी पार्टियों ने भी उनकी प्रशंसा की।ध्यान देने की बात यह है कि यह सारे भाषण हिंदी में ही थे और इन्हें सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे एक-एक शब्द दिल से निकला हो।

अंत में बस मैं यही कहना चाहूंगी कि हिंदी भाषा अपने आप में इतनी सक्षम है कि उसे न तो किसी अन्य भाषा से बैर है और न ही कोई प्रतिस्पर्धा।बस आवश्यकता इस बात की है कि हम इसे उचित सम्मान तो दें ही उचित स्थान भी दें।अपने हिंदी भाषी होने पर गर्व करें और अधिक से अधिक इसका प्रयोग करें।सरकारी स्तर पर तो जो कार्य हो रहे हैं वह ठीक ही हैं लेकिन अब हर नागरिक को स्वयं भी कुछ ज़िम्मेदारी निभानी होगी।मुझे एक बात आजकल बहुत अच्छी लग रही है कि व्यक्तिगत स्तर पर भी आज युवा छोटे-छोटे समूह बना कर हिंदी भाषा-साहित्य और हमारी कला-संस्कृति को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।छोटे-छोटे आयोजनों द्वारा वे लोगों को इस ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं।ऐसे लोगों को भी मेरी शुभकामनाएँ और उनके प्रयास सफल हों ऐसी कामना के साथ ही सभी को पुनः हिंदी-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

7 Comments

  • Vinod Kumar vij
    Posted September 13, 2023 at 11:10 pm

    Nice article
    Explain so nicely n in deep meaning n importance of Hindi divas.
    God bless you.
    Maa Saraswati shower her blessings on you.

  • रम्या तंगम
    Posted September 14, 2023 at 1:11 pm

    नमस्कार। सभी को हिन्दी दिवस की शूभकामनाएं। भावनाजी कार्यक्रम बहुत अच्छा है। आपके इस कार्य जारी रखें।

    • Post Author
      Chubhan Today
      Posted September 14, 2023 at 3:47 pm

      आपका आभार रम्या जी

  • Kamendra Devra
    Posted September 14, 2023 at 5:49 pm

    सादर प्रणाम भावना जी…..हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर आप द्वारा बहुत सुंदर लेख उल्लेखित किया गया है। हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति की अनन्य प्रतीक है। भारतीय संस्कारों, जीवन मूल्यों व आदर्शों की प्रबल संवाहक है। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!

    • Post Author
      Chubhan Today
      Posted September 15, 2023 at 8:43 am

      आपका आभार कामेंद्र जी

  • Йома
    Posted September 20, 2024 at 10:49 am

    Great blog. Reading more. Looking forward to more content. Truly excellent.

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