“कौन सी बात कहां,कैसे कही जाती है।
यह सलीका हो तो ,हर बात सुनी जाती है।”
प्रसिद्ध शायर वसीम बरेलवी जी ने इस शेर में जो बात कहनी चाही है, वह हम सभी पर कभी न कभी सटीक बैठती है, क्योंकि हममें से अधिकांश लोगों की यह समस्या होती है कि हम तो अपनी बात कहते हैं पर कोई उसे ध्यान से सुनता ही नही परंतु कुछ ऐसे लोग होते हैं,जिनके पास यह हुनर होता है कि अपनी बात कहां और कैसे कहनी है?ताकि ज़्यादा से ज़्यादा उनकी बात सुनी जाए और ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी,जिन्हें आप पहले भी चुभन के ब्लॉग और पॉडकास्ट पर पढ़ और सुन चुके हैं।
आज हम शोरी जी के लेखक रूप की चर्चा करेंगे और उनकी प्रकाशित चार पुस्तकों में से एक “Invisible shades of Ramayana” ,जोकि वाल्मीकि रामायण पर आधारित है, पर जनरल साहब के ही विचार जानेंगे।
इस पुस्तक में आपने वाल्मीकि रामायण के 20 चरित्रों को लिया है और उन चरित्रों के उस रूप को हमारे सामने लाने का सफल प्रयास किया है, जिनसे हम अभी तक अपरिचित ही रहे हैं क्योंकि ज़्यादातर हमारी एक परंपरावादी दृष्टि होती है, जिसमें पीढ़ियों से जो बातें चली आ रही हैं, उन्हें ही मानते हुए हम चलते चले जाते हैं और इतने महान ग्रंथ,जिसकी बातें यदि अमल में लाई जाएं तो एक नए युग का निर्माण हो सकता है, लेकिन हमारी दकियानूसी सोच के चलते कुछ भी नही हो पाता।
आपकी पुस्तक का शीर्षक “Invisible shades of Ramayana” बिल्कुल सटीक है।इसमें आपने वास्तव में वाल्मीकि रामायण के कथानक के उन अदृश्य रंगों को अपनी लेखनी से एक नया रूप दिया है, जो शायद हममें से बहुत से लोगों के लिए अदृश्य ही रह जाते।
दोस्तों इसी विषय पर मेजर जनरल शोरी जी ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।उनके लेख को प्रकाशित कर रही हूं-
लेखक-मेजर जनरल ए.के. शोरी जी
रामायण विश्व में सबसे अधिक प्रचलित,आदरणीय और पवित्र ग्रंथों में है।यद्यपि रामायण लिखने वाले अनेकों हैं, लेकिन इसके प्रथम जनक महर्षि वाल्मीकि हैं। निसंदेह गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ अधिक प्रचलित और प्रसिद्ध है और ‘रामचरित मानस’ को पढ़ने व जाननेवालों की संख्या ‘वाल्मीकि रामायण’ से अधिक है, क्योंकि इस की भाषा की सरलता जन-मानस को अपने साथ जोड़ कर रखती है।वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के मुकाबले रामचरित मानस संक्षिप्त भी है परन्तु अगर विस्तृत विवरण, भाषा की उच्चता और ख़ूबसूरती, सभी घटनाओं को पिरो कर दर्शाना और आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन का समावेश करना, इन सब को देखा जाय तो ‘वाल्मीकि रामायण’ कोसों आगे है.
देखा गया है कि भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू घर होगा जहाँ रामायण न हो। लेकिन सिर्फ रामायण घर में होने से ज़िम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती जब तक उस का अध्ययन न किया जाय और वो भी पूरी श्रध्दा और नियम के साथ।वाल्मीकि रामायण के बारे में बहुधा लोगों का ज्ञान काफी हद तक सीमित है। दरअसल रामायण के बारे में हमें उतना ही मालूम है जो फिल्मों, टेलीविज़न या रामलीला में दिखाया गया है, जो कि बहुत सीमित, ग्लैमर से भरा हुआ व भावनाओं से ओत प्रोत रहा है। ‘वाल्मीकि रामायण’ एक ऐसा महा ग्रन्थ है, जिस का अनेकों बार अध्ययन करने के बाद ही उसकी महानता का पता चलता है। यह एक ऐसा महाकाव्य है,जो हजारों साल बाद भी आज की बदलती परिस्तिथियो में पूरी तरह से सार्थक है। इसे एक नहीं बल्कि अनेकों बार पढ़ने से ही इसमें छिपी दार्शनिकता के बारे में समझ आती है।
दरअसल वाल्मीकि रचित रामायण सिर्फ एक कहानी नहीं है।इसकी वृहत विषयों की महानता और उच्च दर्श्नावली को देखा जाये तो रामायण राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी के लिए प्रजातांत्रिक व्यवस्था, मंत्रिपरिषद की कार्य प्रणाली, शासन प्रबंधन एंव कूटनीति पर एक शोधग्रन्थ है।अगर इसे समाज शास्त्री के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मानवीय संबंधों, परिवारिक व सामाजिक रिश्ते नातों की एक महान गाथा है।मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो रामायण प्यार, स्नेह, निस्वार्थ सेवा में गुंथे हुए फूलों की एक माला है। दार्शनिक कोण से अगर हम रामायण को जानने की कोशिश करें तो इसमें अध्यात्मिकता का भरपूर रस मिलता है।वास्तव में, रामायण ऐसे इन्द्रधनुष की तरह है, जिसके रंग जितने दिखाई देते हैं, उससे ज्यादा इसमें निहित हैं व जिन्हें आँखों से देखा नहीं बल्कि आत्मा से महसूस किया जा सकता है।जितने भी सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, मनोवैज्ञानिक विषय हमें हमारे जीवन में विचलित करते हैं, उन सब को महसूस करने और उनसे प्रेरणा ले कर जीने के लिए है रामायण।
आज टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अपनी जगह इस तरह से जमा ली है कि हम एक तरह से उसके गुलाम बनते जा रहे है। फेसबुक नें हमें अदृश्य दोस्तों के साथ ज्यादा समीप और अपने साथ रहनेवालों से दूर कर दिया है और लोग क्या कर रहे हैं और हम जो कर रहे हैं उसके बारे में लोग जानते है कि नहीं, इसी गोरखधंधे में फंसते जा रहे हैं। 3 जी व 4 जी से हमारा मन शांत नहीं हो रहा है जबकि हमारे पांव के नीचे से हमारी अपनी दुनिया, परिवार, मित्र, खिसक कर दूर अति दूर होते जा रहे हैं। कुछ भी व कैसे भी पा लेना हमें नैतिक मूल्यों से विमुख करता जा रहा है। ऐसे में मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि रामायण जैसे महाग्रंथ क्या रेशमी कपड़े में लपेट कर अगरबत्ती दिखाने के लिए हैं? रामायण में श्रीराम के साथ-साथ दूसरे अन्य पात्रों को भी जानने व समझने की आवश्यकता है जो कि ज्ञान व बुद्धि का ऐसा भण्डार अपने में समेटे हुए हैं, जिस की जानकारी हमें बहुत कम है।इन पात्रों में राजा दशरथ, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सीता, भरत, लक्ष्मण के इलावा मुनि वशिष्ठ, सुमंत, जटायु और जाबली है। दूसरी ओर रावण, कुम्भकरण, सूपर्णखा, मरीचि, माल्यवान, विभीषण तथा बाली, हनुमान व सुग्रीव हैं। हम सुनते आये हैं कि रावण बहुत ज्ञानी व विद्वान् था, लेकिन उसके ज्ञान के बारे में हमें बहुत कम मालूम है।राजा दशरथ का राज्य कैसा था, उनका प्रशासन कैसा था, इन सब के बारे में हमें जानकारी बहुत कम है।हनुमान को हम एक शक्तिशाली, बलशाली वानर के रूप में तो जानते है, लेकिन उनके ज्ञान, कूटनीति, संवाद कुशलता के बारे में कुछ नहीं मालूम।सक्षेप में, रामायण के पात्रों को माध्यम बना कर रामायण में निहित रंगों को जानना व समझना अति आवश्यक है, तभी हम इस महान ग्रन्थ से परिचित हो सकते हैं।
2 Comments
Ashish Kumar
सच मे सर आपने ठीक कहा कि मेहनत करने वाले के साथ किस्मत होती है।हम थोड़ा भी आपका अनुसरण कर सकें तो हमारा सौभाग्य होगा।
Ritika Devra
सर आप इतना अच्छा बोलते हैं, बिल्कुल समझाकर कि न तो उपदेश लगता है और बात भी समझ आ जाती है।मुझे आपके सारे एपिसोड का इंतज़ार रहेगा।