जैसा कि मैंने अपने लेख “वेद-लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के ग्रन्थ” में ज़िक्र किया था कि लखनऊ में वैदिक गणित के विकास के लिए अथक परिश्रम करने वाले श्री अनूप भट्ट जी से बातचीत के आधार पर मैं अपना लेख प्रकाशित करुँगी तो आज का मेरा लेख उसी बातचीत पर आधारित है।सबसे पहले मैं वैदिक गणित का संक्षिप्त परिचय देना चाहूंगी।अपने पिछले लेख में मैं बता चुकी हूँ कि वेदों में यज्ञ-प्रकरण में अंकगणित और रेखागणित का वर्णन आया है।वैदिक गणित के अध्ययन की विशेषता यह है कि इसके द्वारा अधिकतर गणनाएं मौखिक या एक पंक्ति में की जा सकती हैं।देखने वाले को वैदिक गणित से की गई गणना चमत्कार के रूप में दिखती है और करने वाले के लिए यह सम्पूर्ण गणित है।
अनूप जी से जब मैं मिली तो मेरा पहला सवाल ही उनसे यह था कि वैदिक गणित के अध्ययन से क्या लाभ है?इसके जवाब में जो बातें उन्होंने बताईं वह बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।उन्होंने कहा कि बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए तथा उनके अन्दर प्रतियोगितात्मक क्षमता तथा तार्किक क्षमता बढ़ाने में वैदिक गणित बहुत सहायक है।वैदिक गणित से गणना करने पर बच्चों में गणित के प्रति रूचि तो बढ़ती ही है साथ ही मानसिक रूप से भी वे मजबूत होते हैं।इसे अपनाने से प्रतियोगिता में प्रश्नों को जल्दी से हल करना भी आसान हो जाता है।
भट्ट जी से ही मुझे वैदिक गणित का संक्षिप्त सा इतिहास भी पता चला जो कि उन्होंने बहुत ही रुचिकर तरीके से बताया।मैं तो शुरू से ही साहित्य की विद्यार्थी रही हूँ और मेरे जैसे लोगों के लिए गणित जैसे विषयों पर बात करना बड़ा नीरस रहता है लेकिन भट्ट जी की विषय पर इतनी पकड़ है और वे इतने सरस तरीके से इस विषय के बारे में बताते हैं कि इसमें कोई शक नही कि मेरी तरह ही बहुत से लोगों के लिए गणित जैसा विषय भी बड़ा रुचिकर हो जाता है।उन्होंने बताया कि वैदिक गणित का सूत्रपात स्वामी भारतीय कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने किया था।(1884-1958)।स्वामी जी स्वयं इतिहास,विज्ञान,दर्शन शास्त्र,अंग्रेजी,संस्कृत तथा गणित विषयों में परास्नातक (पोस्टग्रेजुएट) थे।उन्होंने वेदों से 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों को ढूंढ़कर निकाला तथा पूरी दुनिया को यह दिखाया कि दुनिया की समस्त गणित इन्ही सूत्रों के माध्यम से हल की जा सकती है तथा इन्ही सूत्रों में समाहित है।स्वामी जी गोवर्धन मठ के मठाधीश भी थे।उन्होंने वर्ष 1957 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तथा मथुरा विश्वविद्यालय में वैदिक गणित पर अपना व्याख्यान भी दिया था।बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एक वैदिक गणित विभाग की स्थापना भी की गई थी,जिससे वैदिक गणित पर शोध कार्य आगे भी किया जा सके।
भट्ट जी ने एक और बहुत रुचिकर जानकारी दी कि जब नासा द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए वैदिक गणित के सूत्रों का प्रयोग किया गया और परिणाम पहले की तुलना में आधा घंटा पूर्व मिलने लगा तो दुनिया ने पुनः वैदिक गणित की शक्ति को पहचाना।सन 1911 से 1917 के बीच स्वामी जी ने अज्ञात रहते हुए वेदों का गहन अध्ययन किया तथा उनमे से 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों को प्रतिपादित किया।
अनूप जी ने ‘मैजिकल कॉन्सेप्ट’ नामक एक संस्था की स्थापना की जो वैदिक गणित में प्रशिक्षण प्रदान करने की एक अग्रणी संस्था है जिसमें वे पिछले 14 वर्षों से बच्चों को वैदिक गणित पढ़ा रहे हैं तथा स्वयं भी इसका अध्ययन करते रहते हैं।उन्होंने देश-विदेश के विभिन्न वैदिक गणित के लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन किया है साथ ही आदिकाल के गणितज्ञों जैसे आर्यभट्ट,भाष्कराचार्य द्वितीय आदि की पुस्तकों का भी अध्ययन करते रहते हैं।भट्ट जी ने मैजिकल कॉन्सेप्ट में वैदिक गणित के सूत्रों का ही प्रयोग कर कई गणनाओं को आसान रूप में प्रस्तुत किया है जिससे बच्चों को मौखिक गणना करना और भी आसान हो गया है।
आपका उद्देश्य ही यह है कि वैदिक गणित को ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों तथा अध्यापकों को पढ़ने तथा पढ़ाने के लिए प्रेरित करना।उनका कहना है कि इसका अध्ययन कक्षा एक से ही प्रारंभ कर देना चाहिए ताकि बचपन से ही बच्चों के अन्दर मौखिक गणना का विकास हो सके तथा लिखकर या उँगलियों में गिनती कर जोड़ने-घटाने की प्रक्रिया को रोका जा सके।कक्षा एक से चार तक वैदिक गणना यंत्र (मैजिक स्क्वायर) का प्रयोग कर मौखिक जोड़ने घटाने का अभ्यास कराना चाहिए,साथ ही एक से नौ तक के पहाड़े कंठस्थ कराकर 99 तक के पहाड़े मौखिक बनाने का अभ्यास कराना चाहिए।इसी प्रकार उन्होंने कक्षा चार,पांच,छः तथा सात,आठ,नौ तथा दस तक के बच्चों के लिए कई महत्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराया।मैजिक स्क्वायर पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं।इस पद्धति को कागज-कलम द्वारा न प्रयोग करके मौखिक रूप से गणना करने के लिए एक बोर्ड तथा नंबर क्वाइन बनाकर बच्चों से मौखिक गणना कराने का अभ्यास विकसित किया गया है।
अनूप भट्ट जी और उनकी संस्था मैजिकल कॉन्सेप्ट इस दिशा में प्रयासरत है।इसी श्रंखला में उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार तथा उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् को अपनी रूचि से अवगत कराया,जिस पर शिक्षा निदेशक (माध्यमिक),उत्तर प्रदेश,लखनऊ द्वारा एक निःशुल्क शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम जुबिली इंटर कॉलेज,लखनऊ में आयोजित किया गया।कार्यक्रम तीन दिन (2,3तथा 5 नवम्बर 2018) को आयोजित किया गया।भट्ट जी का मानना है कि उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि वैदिक गणित के सूत्रों की सहायता से वैदिक गणित को आगे बढ़ाने के लिए एक शोध-संस्था की स्थापना भी करे तथा उत्तर प्रदेश में वैदिक गणित पर कार्यरत सभी संस्थानों को उस शोध का हिस्सा बनाए।विभिन्न विश्वविद्यालयों,कॉलेज आदि के गणित के अध्यापकों,प्रोफेसरों आदि को इस शोध-संस्था में शामिल कर वैदिक गणित का विकास करे।
भट्ट जी का कहना था कि वैदिक गणित को धर्म से जोड़कर नही देखना चाहिए।प्राचीन काल में भारत वैज्ञानिक रूप से सबसे समृद्ध देश था।अतः भाषा,गणित,विज्ञान आदि का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ।गणित के सूत्र तथा गणना की विधि भारत से अरब देश में गई थी।अरब के कई विद्वानों ने यह विद्या भारत आकर सीखी थी।इस सम्बन्ध में अरब देश में पौराणिक शिलालेख मिलते हैं।अरब देश से यह विद्या यूरोप गई।यूरोपियन ने इस गणना पद्धति को अरेबियन गणना विधि माना तथा इसका अपने विचारों से शोध कर आगे बढ़ाया।अतः यह निश्चित है कि विश्व को सर्वप्रथम गणित भारत द्वारा ही दी गई है।आपका मानना है कि वैदिक गणित को एक सम्पूर्ण गणित मानते हुए सामान्य गणित के साथ जोड़कर गणना सीखने की विधि को परिवर्तित कर देना चाहिए,जिससे बच्चों में मौखिक गणना का अभ्यास हो सके और उनका मष्तिष्क शुरू से ही तार्किक प्रक्रिया को अपनाने में सक्षम बन सके।
अनूप भट्ट जी के अनुसार यह वैदिक गणित पर आधारित सूक्ष्म कार्यक्रम जो जुबिली इंटर कॉलेज में आयोजित किया गया वह इस बात की पुष्टि करता है कि यह स्कूल तथा कॉलेजों में आसानी से अपनाया जा सकता है।शुरू के कुछ वर्ष अध्यापकों के सहयोग से बच्चों के लिए अलग से कक्षाएं चलाई जाएँ तथा धीरे-धीरे कक्षा में ही इस विधि को समाहित कर दिया जाए।
यह सारी जानकारी थी जो मुझे भी भट्ट जी से प्राप्त हुई।ऐसे लोगों से मिलकर गर्व की अनुभूति होती है जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जी-जान से जुटे रहते हैं लेकिन फिर वही एक बात जो मुझे इस सारे प्रकरण में एक चुभन देती है और वह यह है कि जब एक व्यक्ति बिना किसी लोभ के अपनी सारी मेहनत और प्रयास देना चाहता है तो भी प्रशासनिक स्तर पर मुझे नही लगता कि कोई बहुत उत्सुकता दिखाई जा रही है या उनकी मदद का कोई खास प्रयास किया जा रहा है।मैं आशा करती हूँ कि हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का यह जो अनमोल ख़जाना है उसे आगे बढ़ाने में सरकार और प्रशासन भी कुछ सहयोग करें।