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जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान

हर कोई आज कोरोना कोविड-19 के डर के साये तले जीने को मजबूर है लेकिन उसकी मजबूरी को दूर करने का उपाय नज़र नहीं आ रहा।हमारे देश भारत में 30 जनवरी को पहला मरीज कोरोना संक्रमित मिला था और 7 मई को यह आंकड़ा 50 हज़ार पर पहुंच गया।19 मई तक एक लाख लोग इसके संक्रमण में आ गए और आज यानी 3 जून को यह आंकड़ा दो लाख को पार कर गया है।आज इससे संक्रमित मरीजों की संख्या दो लाख सात हजार छः सौ पंद्रह तक पहुंच गई।इन आंकड़ों पर जब नज़र डालो तो मन डर जाता है और जैसे लगता है कि हम कोई बहुत ही बुरा स्वप्न देख रहे हैं जो जल्दी टूटे और हम अपनी उसी दुनिया मे फिर से आ जाएं।यद्यपि इस वायरस की चपेट में आकर दुखद मृत्यु प्राप्त करने वाले हमारे देश के नागरिकों की संख्या पांच हज़ार आठ सौ पंद्रह है।अन्य देशों की तुलना में हमारे देश मे ईश्वर की असीम कृपा है परंतु इतने लोगों की बीमारी और मौत एक बार हर व्यक्ति को डरा अवश्य रही है लेकिन डरने के बावजूद अभी भी हमारे अंदर बहुत सुधार नहीं हो रहा।अभी भी हम अपनी कमियों को स्वीकारने के स्थान पर इन सारी परिस्थितियों के लिए अन्य चीजों पर दोषारोपण करने से चूक नहीं रहे।
कुछ महीने पहले (12 अक्टूबर 2019) मैंने अपने इसी ब्लॉग में “कपि हनुमाना” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था जिसकी प्रारंभिक पंक्तियों पर यदि आप ध्यान दें तो उस समय तो वह हालात के हिसाब से सही थीं ही लेकिन इधर कुछ दिनों में मेरे कई पाठकों ने मुझसे कहा कि आपका “कपि हनुमाना” शीर्षक लेख जब हम आज की तारीख में पढ़ रहे हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे आपने इतने महीनों पहले आज की स्थितियों की भविष्यवाणी कर दी थी।उस लेख की कुछ प्रारंभिक पंक्तियां मैं आज यहां फिर दे रही हूं और पूरा लेख यदि आप पढ़ना चाहें तो इसी ब्लॉग में पढ़ सकते हैं।कुछ पंक्तियां-
आज विज्ञान और टेक्नोलॉजी की तरक्की के कारण इतने संसाधन विकसित हो गये हैं कि मनुष्य के आराम,मनोरंजन और रहन-सहन के ढंग में बहुत परिवर्तन आ गया है।बिजली का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है लेकिन ह्रदय में अंधकार भी उतना ही बढ़ गया है।उत्पादन बढ़ते जा रहे हैं लेकिन मन उतने ही पीले पड़ते जा रहे हैं,सूखते जा रहे हैं।आनंद और उल्लास खोता जा रहा है,हिंसात्मक घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं।परीक्षित के लिए तो यह कहा गया था कि तुम्हारे लिए सात दिन का समय है उसके बाद तुम्हें काल-सर्प डंस लेगा लेकिन आज के मनुष्य को तो प्रतिक्षण काल-सर्प दिखाई दे रहा है।जैसा कि इस युग के एक बड़े मनीषी व दार्शनिक बर्टन रसल ने कहा है, “इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मृत्यु-दण्ड दिया जा चुका है।अब सुबह उठकर वह अपने आपको जीवित पा ले तो यह उसका सौभाग्य है और समाप्त हो जाए तो उसका दुर्भाग्य।मृत्यु का भय उसके सर पर मंडरा रहा है।आज हम उस मृत्यु-दंड के अधीन जीवित हैं।महाविनाशकारी शक्तियां बढ़ती जा रहीं हैं।”
कभी चिंतन करिए कि ऐसा क्यों हो रहा है?और मेरे ख्याल से लगभग हर व्यक्ति आज के माहौल को देखकर अपने-अपने तरीके से हालातों का निरीक्षण कर रहा है और जिसका जो भी निष्कर्ष निकलता हो परन्तु एक बात तो निश्चित है कि इसके पीछे हमारी विचारधारा,कुंठित और स्वार्थी सोच,धर्म-संस्कृति के लिए अत्यधिक संकुचित विचार और भी न जाने क्या-क्या कारण हैं जो हम मनन करेंगे तो हमारे मन में आएँगे ही।………….
लगता है न आज के सटीक हालात।सब कुछ जानते समझते हुए भी एक होड़ मची हुई है जो सब कुछ पा लेने की उसी ने आज के हालात पैदा कर दिए हैं।हर समय असंतोष का जो भाव है उसी ने कुदरत के साथ छेड़छाड़ करने की हमारी प्रवृत्ति बना दी।
“जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान”
इस सोच को हमें जगाना होगा और इसके साथ ही आगे बढ़ते जाने की कोशिश करनी होगी।

2 Comments

  • पूनम घई
    Posted June 5, 2020 at 7:53 am

    वाह!!!!! सामयिक लेख…….
    सन्तोषः परमं सौख्यं
    सन्तोषः परममृतम्।
    सन्तोषः परमं पथ्यं
    सन्तोषः परमं हितम्।।

    • Shabnam firdaus
      Posted July 12, 2021 at 12:50 pm

      bht hi badhiya hai

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