वेद संसार के पुस्तकालय में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं।यह लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के ग्रन्थ हैं।इनमें उच्चकोटि के आध्यात्मिक सिद्धांत,विद्या,कला और व्यवहार सम्बन्धी ज्ञान का समावेश है।यद्यपि यह ज्ञान संक्षिप्त और सूत्र रूप से एक-एक,दो-दो ऋचाओं में दिया गया है,जिसका आशय प्रत्येक व्यक्ति शीघ्र हृदयंगम नही कर सकता,पर उन्हीं का आधार लेकर विद्वानों ने बड़े-बड़े शास्त्रों और आध्यात्म विद्या के उन महान ग्रंथों की रचना की है,जो हजारों वर्षों से लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
वेदों के विषय में एक और विशेष बात यह भी है कि वह किसी विशेष जाति,सम्प्रदाय और मत-मतान्तर के मानने वालों को दृष्टि में रखकर नही प्रकट हुए हैं,वरन इनका उद्देश्य और क्षेत्र सार्वभौमिक है और वह सभी देश तथा सभी कालों के सभ्य और सुसंस्कृत व्यक्तियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।वेदों से प्राप्त होने वाला उपदेश और मार्गदर्शन प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी और उद्धारक सिद्ध होता है।वेदों का समस्त ज्ञान भंडार अकेले एक ‘यज्ञ’ही में चरितार्थ है।वेद में जो कुछ कहा गया है वह यज्ञ के लिए ही है।वैदिक ज्ञान यज्ञों में ही ओतप्रोत है।संसार में व्याप्त कुरीतियों,दुष्प्रवृत्तियों और भ्रष्टाचार से लोहा लेकर सद्प्रवृत्तियों और ईमानदारी को जीवन में धारण करने के लिए जिस प्रबल आत्मशक्ति की आवश्यकता होती है उस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक मन्त्रों की भी वेदों में कमी नही है।इसी प्रकार दुष्प्रवृत्तियाँ और दुर्व्यसन हँसते-खेलते मानव जीवन को नरक बना देते हैं।इनसे छुटकारा पाने की प्रेरणा देने वाले मन्त्रों की भी इनमें कमी नही है।
आजकल देश के क्या हालात चल रहे हैं यह तो हम सभी जानते हैं और ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की है कि हम बड़ी-बड़ी बातें ही न करके देश हित के लिए जो भी हम से संभव हो करें क्योंकि जिस तरह से हमारे वीर सैनिक अपना बलिदान देने से पीछे नही हट रहे वैसे ही हमें भी किसी न किसी तरह का योगदान ज़रूर देना चाहिए। अथर्व वेद 12/1/62 से यह एक मन्त्र आज के समय के लिए बहुत ध्यान से सबके पढ़ने और मनन करने के लिए है—
उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा,
अस्मभ्यं सन्तु पृथिवी प्रसुताः ।
दीर्घं न आयु पृतिबुध्यमाना,
वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम ।।
इसका भावार्थ है-हे मातृभूमि,हम तुम्हारी गोद में पलते हैं और तुम्हारी ही गोद में आरोग्यकारक पदार्थ प्राप्त करते हैं।इसलिए समय आने पर तेरे लिए बलिदान देने से भी पीछे न हटें।
यहाँ हमें यह सन्देश मिलता है कि माता तो हमें केवल जन्म ही देती है पर यह मातृभूमि तो हमारा लालन-पालन,पोषण,रक्षण सभी कुछ करती है।यही हमें रहने के लिए आश्रय प्रदान करती है।अन्न,जल,वायु,फल,औषधि,वनस्पति,पशु-धन सब हमें इस स्नेहमयी माँ से ही मिलता है।वास्तव में हमारे जीवन का सारा आधार ही इस मातृभूमि पर है।इसके उपकारों की कोई सीमा ही नही है और इस ऋण को चुकाने का प्रयास करना हमारा कर्तव्य है।धरती माँ की रक्षा में प्राणों को हँसते-हँसते बलिदान कर देना,भारत के राष्ट्रभक्तों की गरिमामयी परंपरा रही है।राष्ट्र को आज ऐसे सपूतों की आवश्यकता है जो धार्मिकता के सहारे भावनात्मक नव-निर्माण की दिशा में जुट सकें,गृहस्थ में रहते हुए भी इस परंपरा को निभा सकें।प्राचीनकाल का भारत इसीलिए देवोपम व्यक्तियों और स्वर्गोपम परिस्थितियों से भरा-पूरा रहता था क्योंकि देशवासियों का राष्ट्रीय चरित्र उच्चकोटि का था।मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का पूरी पवित्रता व ईमानदारी से पालन किया जाता था।व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्रहित के आगे महत्वहीन हो जाते थे।जो धरती माँ हमें बल,बुद्धि,दीर्घ आयु,सुख-सपत्ति सब कुछ देती है उसके प्रति हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
इसी प्रकार क्या यह संभव है कि जिस भारत ने हजारों साल पहले दुनिया को शून्य और दशमलव प्रणाली दी है,उसके पास अपना कोई अलग गणित-ज्ञान न रहा हो।बड़ी चुभने वाली बात है कि हमारे देश में कम ही लोग जानते हैं कि वैदिक-गणित नाम का भी कोई गणित है और जो जानते भी हैं वे इसे विवादास्पद मानते हैं कि वेदों में किसी अलग गणना प्रणाली का उल्लेख है पर विदेशों में बहुत से लोग मानने लगे हैं कि भारत की प्राचीन वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल मज़ा आता है वरन उससे आत्मविश्वास मिलता है और स्मरण शक्ति भी बढ़ती है।वेदों में गणित का वर्णन यज्ञ-प्रकरण में किया गया है।यज्ञ में अंकगणित और रेखागणित दोनों का काम पड़ता है।यजुर्वेद में अंकगणित से सम्बन्ध रखनेवाला एक मन्त्र है जिसमें इकाई से लेकर परार्द्ध तक की संख्या बताई गई है।इसमें कुंड की ईंटों के लिए एक लम्बा गणित बताकर दर्शा दिया गया है कि यज्ञ में लम्बे अंकों वाले गणित की आवश्यकता होती है।आहुतियों की इयत्ता निर्धारित करने में भी गणित का काम पड़ता है और औषधियों के खरीदने अर्थात ‘सोमक्रय’ करने में भी गणित काम आता है।यह स्पष्ट ही है कि अंकगणित यज्ञ में अपना विशेष स्थान रखता है।अंकगणित ही नही अपितु रेखागणित भी काम आता है।ज्योतिष का वर्णन करते हुए ग्रहणों के प्रकरण में ऋग्वेद का एक मन्त्र दिया है जिसमें यह अर्थ निकलता है कि ग्रहण को देखकर रेखागणित के ज्ञान से शून्य पुरुष मुग्ध हो जाता है।ज्योतिष में रेखागणित का काम पड़ता है।जितने गृह-उपग्रह हैं उनकी परिधि,व्यास,कोण,लम्ब आदि से ही दूरी और मिलाप आदि बताया जाता है।रेखागणित के बिना ज्योतिष बन ही नही सकता।सब यज्ञ कुंड भी रेखागणित के सिद्धांत पर बनाए जाते थे।
मन ही मन हिसाब लगाने की यह विधि भारत के स्कूलों में शायद ही पढ़ाई जाती हो।यहाँ के लोगों का अब भी यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है जो पाश्चात्य देशों से आता है जबकि सच्चाई यह है कि यह पाश्चात्य देश भी योग विद्या की तरह ही आज भारतीय वैदिक गणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं।बिना कागज-पेंसिल या कैलकुलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज तरीका शायद ही कोई है।आज इसे भारत से अधिक इंग्लैंड,अमेरिका,कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है।
बस एक यही बात है जो मुझे इतनी चुभन देती है कि मैं शब्दों में उसका वर्णन नही कर सकती।वास्तव में हमारे देश में पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का अन्धानुकरण करने की प्रवृत्ति इतनी ज़्यादा हो गई है कि लोग हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का जो अथाह ख़जाना है उसका लाभ भी नही ले पाते।पढ़ने में शायद थोड़ा हास्यास्पद लगे लेकिन सच्चाई यह है कि आधुनिक बनने की होड़ इस कदर लोगों के दिल दिमाग पर छा गई है कि हमारे देश का ही कोई सामान जब विदेश चला जाता है और जब वह यहाँ आयात होकर आता है तो लोग उसे ही दुगने दाम पर लेकर ख़ुशी पाते हैं क्योंकि उसपर विदेशी का ठप्पा जो लग गया होता है परन्तु कुछ इसके अपवाद भी हैं क्योंकि हमारे देश में ऐसे जुझारू और कर्मठ व्यक्तियों की कमी नही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी पूरी तन्मयता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में लगे हुए हैं यद्यपि उन्हें शासन या किसी का भी कोई खास सहयोग नही प्राप्त हो रहा है और वे हैं, मैजिकल कॉन्सेप्ट के संस्थापक श्री अनूप भट्ट जी।मैजिकल कॉन्सेप्ट,वैदिक गणित में प्रशिक्षण प्रदान करने वाली एक अग्रणी संस्था है।अनूप भट्ट जी विगत चौदह वर्षों से बच्चों को वैदिक गणित पढ़ा रहे हैं तथा स्वयं वैदिक गणित का अध्ययन करते रहते हैं।उनसे मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ और इस सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मुझे प्राप्त हुईं।उनसे बातचीत के आधार पर मैं अपना अगला लेख लिखूंगी और फिर आप सब के लिए उसे प्रकाशित करुँगी।