लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
पंडित सोहनलाल द्विवेदी जी की यह पंक्तियां कितनी भावपूर्ण हैं।दिल में जज़्बा हो,जुनून हो,जोश हो तो कोई भी उपलब्धि हासिल करना असंभव नहीं है।यह बात जानते तो हम सभी हैं परंतु उसको अमल में कुछ विरले ही ला पाते हैं।
आज मैं ऐसी ही एक शख्सियत के बारे में आपको बताऊंगी और अपने पॉडकास्ट में उनसे मैंने बात भी की है।वे हैं लखनऊ के ही वरिष्ठ रंगकर्मी प्रभात कुमार बोस जी।आपने अपने अथक परिश्रम से वह मुकाम हासिल किया जो बहुत से कलाकारों का सपना ही रह जाता है।आप ‘आकांक्षा थिएटर आर्ट्स ‘ के फाउंडर डायरेक्टर हैं और अपने रंगसफ़र में अब तक पूरे भारत में 998 प्ले कर चुके हैं।
प्रभात जी ने सन 1975 में फ़िल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय का डिप्लोमा लिया।उस समय उनके प्रिंसिपल गजानन जागीरदार थे जो फिल्म डायरेक्टर और प्रसिद्ध अभिनेता थे।जिन्होंने कई फिल्मों में अभिनय भी किया।
प्रभात कुमार बोस जी ने 15 अप्रैल 1977 को ‘आकांक्षा थिएटर आर्ट्स’ की स्थापना की।आपने जिस समय इस संस्था को खोला कोई पूंजी उनके पास नहीं थी।उन्होंने बहुत ही साफ़गोई से बताया कि घर के सोफे,फर्नीचर अलमारियां और मां के जेवर बेच-बेचकर इस थिएटर को खड़ा किया।सन 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग से पहली बार आठ हज़ार रुपए परफॉर्मिंग आर्ट के तहत मिले।इन्हीं ग्रांट के पैसों से सन 1992 में रवींद्रालय लखनऊ में आपने प्ले किया जिसमें तत्कालीन राज्यपाल मोहम्मद उस्मान आरिफ़ जी को बुलाया।इनका प्ले देखकर राज्यपाल महोदय ने प्रभात जी से पूछा कि आपने शिक्षा प्राप्त की है?इस पर जब प्रभात जी ने उनसे यह बताया कि उन्होंने अभिनय और डायरेक्शन में ट्रेजडी के ऊपर स्पेशलाइजेशन किया है तो वे प्रभावित हुए बिना न रह सके और उन्होंने ही दिल्ली आवेदन करने के लिए कहा।राज्यपाल मोहम्मद उस्मान आरिफ़ जी ने उनका आवेदन राजभवन से ही स्वीकृत करके भेजा।
परंतु व्यवस्था का दोष कि जो आवेदन भेजा गया वह दिल्ली जाकर ठंडे बस्ते में चला गया।इसके आगे प्रभात कुमार बोस जी ने मुझसे बहुत भावुक होकर बताया कि वे स्वयं दिल्ली गए और उनके पास मात्र पांच सौ रुपए थे और उसी हालात में वे चौदह दिन रहे।शास्त्री भवन तक रोज पैदल जाते और फिर प्लेटफॉर्म पर आकर सो जाते क्योंकि होटल में रुकने के लिए उनके पास पैसे ही नहीं थे।तभी उन्हें एक सज्जन मिले जिन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन से उनकी मुलाकात करवाई।प्रभात जी के ही शब्दों में, “वहां से जो रंगसफ़र शुरू हुआ और उसने गति पकड़ी,उसके बाद अब तक 998 प्ले पूरे भारत में मैं कर चुका हूं।”
यहीं पर थोड़ी व्यथा के साथ प्रभात जी ने बताया कि यह उनका दुर्भाग्य था कि तेरह बार सबसे अच्छा ऑडिशन देकर भी लखनऊ दूरदर्शन ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया।यहां इंटरव्यू लेने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की सबा ज़ैदी आईं थीं जो प्रभात जी का चयन न होने से इतनी भावुक हो गईं की रोने लगीं और बोलीं, “दादा आपको अगर लखनऊ दूरदर्शन ने नहीं लिया तो यह लखनऊ दूरदर्शन का दुर्भाग्य है।”
उसके बाद प्रभात जी ने आल इंडिया रेडियो की तरफ रुख़ किया परंतु यहां भी वही हुआ जो दूरदर्शन में हुआ था।
इन सब घटनाओं से वे मानसिक रूप से इतना हताश हुए कि दूरदर्शन और आकाशवाणी की तरफ फिर कभी गए ही नहीं।मुझे तो लगता है कि जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ क्योंकि उन जगहों पर शायद उनकी प्रतिभा दब जाती लेकिन स्वयं उन्होंने जो कुछ किया वह आज हम सबके सामने है।
प्रभात कुमार बोस जी ने इन सब घटनाओं को सकारात्मकता से लिया और विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लिया।आज की युवा पीढ़ी शॉर्टकट ढूंढती है और थोड़ा सा भी असफलता उन्हें निराशा के गर्त में ले जाती है लेकिन प्रभात जी जैसे व्यक्ति से हर कलाकार ही नहीं वरन हर इंसान को प्रेरणा लेनी चाहिए।
इन सब असफलताओं से प्रभात जी ने यही निर्णय लिया कि अब वे ख़ुद से ही कुछ करेंगे।जैसे-जैसे उन्हें केंद्र सरकार से मदद मिलती गयी वैसे-वैसे वे अपने सपनों को मूर्त रूप देने की कोशिश में जुट गए।बातचीत में उन्होंने मुझे बताया कि उनका सबसे बड़ा सपना था कि लखनऊ में एक ऐसा प्ले हो,जैसा दोबारा कभी न हो।उसी को ध्यान में रखते हुए आपने गिरीश कर्नाड जी द्वारा लिखा गया ‘तुगलक’ नाटक चुना और 15 नवंबर 2015 को लखनऊ के संत गाडगे ऑडिटोरियम में उसका मंचन हुआ।इस प्ले का सेट प्रभात जी के अनुसार एक लाख नब्बे हज़ार का बना था जो बहुत ही आलीशान था।पूरा राजमहल का सेट बनाकर सत्तावन चरित्र मंच पर उतारे गए।पूरे कॉस्ट्यूम, भाले आदि उस समय के हिसाब से बनवाए गए।इस प्ले के मंचन के बाद अखबारों ने लिखा कि “लखनऊ की सरज़मीं पर तुगलक ने दी दस्तक। ”
इसके बाद प्रभात जी को सात राज्य के राज्यपालों ने ‘कला-रत्न’और ‘कला-विशारद ‘ से सम्मानित किया।
2017 में आपको उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने सम्मानित किया जिसमें राज्यपाल आनंदी बेन पटेल द्वारा इन्हें पुरस्कृत किया गया।
ऐसा ही रंगसफर रहा प्रभात कुमार बोस जी का-कुछ कठिनाइयों भरा कुछ उपलब्धियों भरा।मैंने अपने पॉडकास्ट में उनसे बात की है जिसमें उन्होंने खुलकर ज़िक्र किया है कि कौन सी बातों ने उनके दिल को चुभन दी और कौन सी बातों ने सुकून परन्तु उनसे बात करके एक बात तो समझ आई है कि प्रतिकूलताएं,परेशानियां और दुख भी हमें कुछ न कुछ सीख देने वाले ही होते हैं।इसलिए उनसे घबड़ाकर नहीं बल्कि बहादुरी से सामना करने वाले को ही मंज़िल हासिल होती है।
4 thoughts on “वरिष्ठ रंगकर्मी प्रभात कुमार बोस जी से एक मुलाक़ात”
विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिभाओं को आगे लाने एवं वो वयक्तिव जो अपने कार्य क्षेत्र में नींव के पत्थर हैं, ऐसे महानुभावों को सामने लाने का जो बीड़ा डा. भावना घई जी ने उठाया है, इस कार्य के लिए बधाई देता हूं। आपके सामने नतमस्तक हूं।
अजय यादव जी के कथन से पूर्ण रुप से सहमत और गौरवांवित महसूस कर रही इतनी संवेलनशील और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की दोस्त हूं।दुआ है तुम्हारा यह कारवां उंचाइयों के नये मापदंड तय करे ।
प्रभात कुमार बोस जी जैसे व्यक्तित्व हम सब के लिए प्रेरणा हैं
सकारामक सोच और एक और सुन्दर लेख के लिये आपको बधाई !! आप ऐसी ही उच्चकोटि के लेखों का सृजन करते रहें।
हमारी कोटिशः शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।।
विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिभाओं को आगे लाने एवं वो वयक्तिव जो अपने कार्य क्षेत्र में नींव के पत्थर हैं, ऐसे महानुभावों को सामने लाने का जो बीड़ा डा. भावना घई जी ने उठाया है, इस कार्य के लिए बधाई देता हूं। आपके सामने नतमस्तक हूं।
अजय यादव जी के कथन से पूर्ण रुप से सहमत और गौरवांवित महसूस कर रही इतनी संवेलनशील और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की दोस्त हूं।दुआ है तुम्हारा यह कारवां उंचाइयों के नये मापदंड तय करे ।
प्रभात कुमार बोस जी जैसे व्यक्तित्व हम सब के लिए प्रेरणा हैं
सकारामक सोच और एक और सुन्दर लेख के लिये आपको बधाई !! आप ऐसी ही उच्चकोटि के लेखों का सृजन करते रहें।
हमारी कोटिशः शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।।
बेहद शानदार और लाभप्रद इंटरव्यू आज की पीढी का मार्गदर्शन करते हुये