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जम्मू-कश्मीर में जो भी हुआ या हो रहा है, उसके बारे में हम सभी कुछ न कुछ जानते ही हैं परंतु यह भी अटल सत्य है कि जो भी परिस्थितियां बनीं और आज तक कायम हैं, उसमें हमारी भी गलतियां हैं।कश्मीर क्या था और क्या बन गया है, यह तो किसी से भी छुपा नहीं…
"कुछ बातें प्रेमचंद की"
- अजय यादव
प्रेमचंद के जन्मोत्सव पर, आनेकों अनेक कार्यक्रम किए जाते रहे हैं, परंतु, ऐसा प्रतीत सोता है, कि हम वृहद आकाश को एक मुट्ठी में समेटने का प्रयास कर रहे हैं। हम प्रेमचंद के साहित्य पर कितने भी…
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लेखक - डॉ. भावप्रकाश गांधी "सहृदय"
सहायक प्राध्यापक -संस्कृत, सरकारी विनयन कॉलेज
गांधीनगर, गुजरात
मनुष्य अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए जिस सार्थक मौलिक साधन का उपयोग करता है उसको हम भाषा कहते हैं । भाष भाषणे इस धातु से भाषा शब्द की निष्पत्ति होती है । इस आधार पर हम यह कह…
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"ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।"
-फिराक़ गोरखपुरी
वास्तव में ज़िंदगी होती तो चार ही दिन की है और चार दिन होते भी काफी हैं,परंतु हममें से ज़्यादातर लोग उसमें से दो दिन तो यह सोचने में गुज़ार देते हैं कि हमें करना क्या है ? बाकी बचे दो दिन…
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"अंत में मित्रों
इतना ही कहूंगा
कि अंत महज़ एक मुहावरा है जिसे शब्द हमेशा
अपने विस्फोट से उड़ा देते हैं
और बचा रहता है
हर बार
वही एक कच्चा-सा
आदिम मिट्टी जैसा ताज़ा आरम्भ
जहां से हर चीज़
फिर से शुरू हो सकती है।"
- केदारनाथ सिंह
इन पंक्तियों को मैं हमेशा याद रखती हूं, इनमें जीवन का सार छुपा है।सच में 'अंत' तो कुछ…
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"लाई हयात, आए, क़ज़ा ले चली, चले
अपनी खुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-किमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
हो उम्रे-ख़िज़्र भी तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग
हम क्या रहे यहां अभी आए…