आज मैं कई दिनों बाद अपने पाठकों के लिए कुछ लिख रही हूँ।इतने अन्तराल के बाद मिलने की मुझे बहुत ख़ुशी है ।मेरे इतने दिनों तक आपके साथ संवाद न कर पाने का कारण शायद आप समझ गये होंगे क्योंकि आज बिलकुल नए रूप और कलेवर में आपकी website खुली होगी।इसी प्रयास में मैं कुछ दिन अपने लेख प्रकाशित नही कर पाई।कल 14 अप्रैल को हम सबने बैसाखी का पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया।इस अवसर पर सभी को लख-लख बधाइयाँ।इसी दिन समाज सुधारक,चिन्तक और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार डॉ भीम राव अम्बेडकर का जन्म दिन भी मनाया गया।साथ ही अभी 13 अप्रैल को हमलोगों ने श्री राम नवमी का पावन पर्व मनाया।हमारे कोई भी पर्व त्यौहार जब हम मनाते हैं तो इतना तो निश्चित है कि वह कोई न कोई सन्देश अवश्य ही छोड़कर जाते हैं और अगर हम थोड़ा सा भी चिंतन करें तो हम सोचने को मजबूर हो जाएँगे कि क्या खाली इस पर्व को हमने एक ज़िम्मेदारी समझ कर बस निभा दिया है या शुरू से एक परंपरा हम निभा रहे हैं इस पर्व को निभा देने की तो बस वह निभा दी लेकिन इसके मायने क्या हैं?हमारी चिंतन-धारा क्या कहना चाह रही है?इन सब बातों पर विचार हम ज़रा कम ही करते हैं।
उस दिन इस पर्व को मना कर दो दिन से मैं यही सोच रही हूँ कि श्री राम और श्री कृष्ण के चरित्र ऐसे हैं जिनमें अपार सन्देश,ज्ञान या कह लें पूरा जीवन-दर्शन ही छुपा हुआ है।भारतीय चिंतन-धारा को जिन दो महान व्यक्तित्व ने सर्वाधिक प्रभावित किया है वे श्रीकृष्ण तथा श्री राम के व्यक्तित्व हैं।इन दो लोक नायकों के गरिमायुक्त लोकोत्तर अप्रतिम व्यक्तित्व ने भारतीय संस्कृति को कालजयी बनाकर विश्व की प्राचीनतम संस्कृति के रूप में सुरक्षित रखने में अपूर्व सफलता पाई है।विश्व कल्याण तथा मानवता की उच्चतम अवधारणा ने न केवल भारतीय चिंतन-धारा को ही अपितु समस्त विश्व के मानव को प्रभावित किया है।भारतीय जन-मानस की उदात्त मानवीय चेतना से युक्त इन दो युग पुरुषों के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों ने भारतीय वांग्मय की विभिन्न भाव-भूमियों को अनंत सृजनात्मक प्रेरणा प्रदान की है।कवि,लेखक,दार्शनिक,योगी,संत,विचारक एवं राजनीतिज्ञ सभी इन महापुरुषों के अलौकिक व्यक्तित्व से संपन्न महान चरित्र को अपना आदर्श मानकर उनकी ओर समान रूप से आकर्षित हुए।किसी ने इन्हें काव्य का विषय बनाया तो किसी ने इनके वैविध्यपूर्ण आदर्श चरित्र को अपनी व्याख्या तथा तात्विक विवेचन का और किसी ने दार्शनिक चिंतन का आधार बनाकर इनके नाम,रूप आदि पर विस्तृत विचार किया।कवि-कल्पना से लेकर दार्शनिक चिंतन तक श्रीकृष्ण और श्री राम भारतीय वांग्मय के आदर्श चरित्र नायक तथा गूढ़ तात्विक चिंतन के विषय रहे हैं।ऐहिक जीवन की समृद्धि तथा भौतिक जीवन की सम्पन्नता से लेकर मोक्ष तक की महत्वपूर्ण उपलब्धि इन दो चरित्र नायकों के चरित्र के माध्यम से की गई है।विश्व-कल्याण,चिरशांति तथा मानव-मात्र को आनंद प्रदान करने एवं मानव मात्र के प्रति आत्मीयता की उदात्त भावना ने भारतीय जीवन दर्शन को इतना प्रभावित किया है कि उसने सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता तथा नियंता को ही नर रूप में पृथ्वी पर अवतरित कराया।विश्व की किसी भी संस्कृति में संभवतः ऐसी अवधारणा के दर्शन नही होते।युग की आवश्यकता के अनुरूप उस परम सत्ता का विभिन्न रूपों में अवतरित होकर अपनी अजेय शक्ति एवं सामर्थ्य से विश्व मानवता की रक्षा एवं असीम सुख और आनंद प्रदान करने की घोषणा भारतीय मनीषियों तथा चिंतकों द्वारा की गई एक अत्यंत मनोरम अवधारणा है जिसे अवतार की संज्ञा दी गई है।अनीतियों के बढ़ते हुए विनाशक प्रभाव से त्रस्त मानव जीवन को भयाकुल संताप से मुक्ति दिलाने तथा मानव जीवन मूल्यों में होने वाले ह्रास से मानव समाज को पतन के गर्त से उठाकर उसकी सुरक्षा एवं पुनर्स्थापना के लिए उस परम सत्ता को अवतार रूप में इस पृथ्वी पर साकार होने की अवधारणा भारतीय चिंतन-धारा की महानतम उपलब्धि है।श्री कृष्ण और श्री राम को परम ब्रह्म ईश्वर का दिव्य रूप मानकर अपने सुख-दुःख,हानि-लाभ,उत्थान-पतन तथा चिर शांति का साथी स्वीकार कर उनके प्रति पूर्ण समर्पण का भाव तथा समस्त मानवीय संबंधों के दिव्य आलंबन के रूप में उनके विग्रह को अपने चिंतन तथा साधना का माध्यम स्वीकार करना भारतीय धर्म साधना की विशेषता रही है।
जिनके चरित्र के माध्यम से मोक्ष तक की महत्वपूर्ण उपलब्धि की बात कही गई हो और जिन्हें भारतीय जीवन दर्शन ने अवतार की संज्ञा दी हो ऐसे चरित्रों का आज हमारे देश में जैसे राजनीतिकरण किया जा रहा है वह दिल में चुभन का एहसास जगाता है।इतने दिनों बाद क्योंकि आज मैं आपसे रूबरू हो रही थी तो ऐसे में मैंने यही सोचा था कि आज किसी भी चुभन की बात नही की जाएगी लेकिन श्री राम और श्रीकृष्ण के विषय में जब भी चिंतन करो तो ऐसी अनुभूति होती है कि जैसे वास्तव में असीम आनंद या कहे मोक्ष का सा एहसास होने लगता है और उन्हीं चरित्रों को जब तथाकथित राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए बिना कुछ जाने समझे या कहें बिना किसी ज्ञान और चिंतन के अपने हिसाब से चित्रित करते हैं तो वास्तव में शक होता है कि क्या हम सच में उसी भूमि पर खड़े हैं जहाँ इन चरित्रों ने लोक कल्याण के लिए नर रूप में अवतार ग्रहण किया।लिखते हुए भी शर्म आती है कि कुछ लोगों को तो भगवान राम के होने पर भी शक होता है, उनका जन्म अयोध्या जी में हुआ या नही इस बात का प्रमाण जानने की उनकी जिज्ञासा रहती है और इससे अधिक क्या कहा जाए कि ऐसे तथाकथित राजनीतिक व्यक्तित्व श्री राम के ही होने का प्रमाण मांगते हैं और फिर कुछ दिनों के बाद वोटों के लिए श्री राम को भगवान मानकर मंदिरों में दर्शन भी करते हैं।शर्म आती है ऐसे दोहरे चरित्र के स्वार्थी लोगों से।ऐसे लोग भारतीय जीवन दर्शन को कितना जानते हैं यह भी एक प्रश्न है?क्या कुछ बातें स्वयं सिद्ध नहीं होती हैं उन्हें प्रमाण ही चाहिए होता है।राम को मत पूजिए उस चरित्र को पूजिए जिसका आदर्श विषमताओं से त्रस्त मानवता को रावणीय व्यवस्था के प्रति निरंतर संघर्ष करने का सन्देश देता है और उसे विश्वास दिलाता है कि उन शक्तियों की ही अंत में विजय होती है जो मानवता की मुक्ति के लिए राम के समान संघर्षरत रहती हैं। राम के चरित्र में आशा-निराशा,जय-पराजय,सुख-दुःख,लोकोत्तर जिज्ञासा और ऐहिक मांगल्य की कामना का मिला-जुला रूप लक्षित होता है।श्री राम का चरित्र उस जीवनी शक्ति का प्रतीक है जिसके द्वारा मानव विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करता आया है।मानव सभ्यता जीवनी शक्ति के कन्धों पर चढ़ कर ही वर्तमान विकसित अवस्था को प्राप्त हुई है।राम का चरित्र मानव के इसी अनवरत संघर्ष का प्रतीक बनकर हमारे सामने आता है।श्री राम एक युग-विशेष के प्रतिनिधि न होकर युग-युग के प्रतिनिधि हैं।अब ऐसे चरित्र की आराधना करना,उसे पूजना या उसका नाम लेना कहाँ से किसी अन्य धर्म का अपमान होता है बल्कि मैं तो यही कहूँगी कि इस भारत भूमि में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो,स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिए कि उसने ऐसी पावन भूमि में जन्म लिया और प्रत्येक व्यक्ति को श्री राम और कृष्ण के चरित्रों को पूजना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि इन चरित्रों का कुछ अंश ही हममें आ सके।अगर इस देश का प्रधानमंत्री या कोई अन्य व्यक्ति जो उच्च पदों पर बैठा है,श्री राम या श्री कृष्ण के चरित्रों का गुणगान करता है या अपनी जनता से अपील करता है इन जैसा बनने की तो इसमें क्या चुभने वाली बात होती है?यहाँ तो जय श्री राम कहना भी साम्प्रदायिकता हो जाती है लेकिन ऐसा क्यों?हम good morning,good night,नमस्ते hello सब कुछ कह सकते हैं तो क्यों न जब भी मिलें एक दूसरे का अभिवादन ‘जय श्री राम या जय श्री कृष्ण’ से करें।इससे कुछ पलों के लिए ही सही इन महान चरित्रों का कुछ तो अंश हमारे अन्दर आएगा।आज जो समाज में रावणीय प्रवृत्तियां चरम पर हैं उनका कारण यही है कि हमारे अन्दर से रामत्व और कृष्णत्व लुप्त हो गया है और उनके खोने का कारण हम स्वयं हैं क्योंकि हमने ऐसी प्रवृत्तियों को पनपने का अवसर दिया है।जिन राम और कृष्ण के करोड़ों अनुयायी विश्व के प्रत्येक देश में मिल जाएँगे जो बिना किसी झिझक राम और कृष्ण का गुणगान करते हैं उन्ही श्री राम और कृष्ण से उन्हीं की धरती पर अपने होने का सबूत पूछा जाता है।ऐसा क्यों बर्दाश्त किया जा रहा है?जिनके चरित्र लोक-कल्याणकारी हैं,समस्त विश्व के मानव की रक्षा करने वाले हैं उन्हें कुछ लोगों की संकुचित,कुटिल,स्वार्थी और घिनौनी सोच का हिस्सा नही बनने देना चाहिए।आज मेरा तो यही प्रण है कि श्रीकृष्ण और श्री राम हम सबके अंतर्मन में विराजें और हम अधिक से अधिक इनका नाम लें और इनके चरित्रों का अनुसरण करें।
श्री राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह स्वयं के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह है। जब तक ये पृथ्वी है तब तक सतत, राम का व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श रहेगा। कविवर मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में….
राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाये सहज सम्भाव्य है।
बहुत – बहुत बधाई ,आगे भी कुछ नया लिखें तो भेजती रहें ।