15 अगस्त 1947 को लम्बी पराधीनता के बाद भारत को स्वतंत्रता का वरदान मिला।इस वर्ष हम आज़ादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।भारत की आज़ादी का संग्राम बल से नहीं वरन सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर विजित किया गया।इतिहास में स्वतंत्रता के संघर्ष का एक अनोखा और अनूठा अभियान था,जिसे विश्व भर में प्रशंसा मिली।स्वतंत्रता दिवस,15 अगस्त एक राष्ट्रीय अवकाश है,इस दिन का अवकाश प्रत्येक नागरिक को बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदान को याद करके मनाना चाहिए।
महान देशभक्त और क्रांतिकारी खुदीराम बोस की पंक्तियाँ-
“खुशनसीब हैं वो जिन्हें हिंदुस्तान की धरती नसीब हुई,उनसे भी खुशनसीब वो हैं जिन्हें इसके लिए कुछ करने का मौका मिला।”
इन पंक्तियों को पढ़कर मेरे दिल में ऐसी चुभन होती है,जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर पाती क्योंकि वास्तव में यह पंक्तियाँ एहसास कराती हैं कि हम कितने बदनसीब हैं जो इस धरती पर जन्म लेकर भी इसके लिए कुछ कर नहीं पा रहे।आज के दिन मैं तो यह प्रण लेती हूँ कि कम से कम इस धरती का क़र्ज़ मैं ऐसे ही चुकाने की कोशिश करूँ कि जिस क्षेत्र में भी हम हैं उसी में अपना काम ईमानदारी और निष्ठा से करें।आज मैं ऐसे ही कुछ खुशनसीब महान व्यक्तित्व,जिन्होंने इस धरती माँ के लिए क्या कुछ नहीं किया और अपनी जान से लेकर कोई भी बलिदान करने में संकोच नहीं किया,उनके बारे में कुछ बातें आपके साथ साझा करुँगी-
सुभाषचंद्र बोस- देश को दिया नया मिजाज़,न नाम पाने का अरमान,न खुशियों की चाहत।लक्ष्य केवल एक देश की आज़ादी।इसके लिए उन्होंने जंगलों की ख़ाक छानी,देशों की सीमाएं नापीं और यहाँ तक कि अपना खून बहाने से भी नहीं चूके।सुभाषचंद्र बोस एक असाधारण प्रतिभावान युवक थे।1911 में मैट्रिकुलेशन परीक्षा में पूरे कलकत्ता(अब कोलकाता) में उनकी दूसरी रैंक आई।फिर 1919 में आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विसेस) पास कर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया परन्तु इसी दौरान उन्हें देशभक्ति का ऐसा रंग लगा कि प्रशासनिक सेवा,करियर सब पीछे छूट गया।वे बन गये उस मतवाली टोली का हिस्सा,जिसके लिए भारत माँ की आज़ादी से बड़ी नौकरी दूसरी न थी।
अरविन्द घोष- क्रांतिकारी,तत्वज्ञानी,दार्शनिक,संत……।हम चाहे जिस भी रूप में अरविन्द घोष से वाकिफ हों परन्तु उनका सबसे बड़ा परिचय एक ऐसे वतनपरस्त का है,जिसने देश के लिए अनेकों मुसीबतें झेलीं।शानदार एकेडेमिक रिकॉर्ड रखनेवाले अरविन्द घोष की प्रारंभिक पढ़ाई दार्जिलिंग में हुई।इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड चले गये,जहाँ उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई की।उसके बाद किंग्स कॉलेज कैम्ब्रिज की स्कालरशिप अर्जित करके उन्होंने आईसीएस परीक्षा भी उत्तीर्ण की लेकिन अंग्रेजों की हुकूमत में नौकरी करना उन्हें मंज़ूर न हुआ,लिहाजा वे भारत वापस आकर ‘देश की नौकरी’ में लग गये।यह भी एक संयोग ही है कि आज ही के दिन यानि15 अगस्त को अरविन्द घोष का भी जन्मदिन होता है।
भगत सिंह- ‘मेरी ज़िन्दगी देश की आज़ादी के लिए है इसलिए मेरे लिए दुनियावी बंधन,ज़रूरतें,सुविधाएँ कोई मायने नहीं रखतीं।’ मात्र 19 वर्ष की आयु में अपनी ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा इन पंक्तियों में लिख देने वाले भगत सिंह आज देश में युवाओं के सबसे बड़े नायक हैं।दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज से पढ़े भगत सिंह की अंग्रेजी,उर्दू और पंजाबी सहित कई भाषाओँ में गज़ब की पकड़ थी।उनके लिखे पत्रों,निबंधों और कविताओं में इसकी साफ़ झलक देखी जा सकती है,जिनके निहितार्थ आज भी शोधकर्ताओं के साथ युवा पीढ़ी के लिए खासे प्रासंगिक हैं।अपनी अप्रतिम मेधा व विश्लेषण क्षमताओं के कारण भगत सिंह को ‘दार्शनिक क्रन्तिकारी’ भी कहा जाता है।
एम.विश्वेश्वरैया- आधुनिक भारत में इंजीनियरिंग का ज़िक्र होते ही सिर्फ एक नाम हमारी ज़ुबान पर आता है और वह है डॉ.एम.विश्वेश्वरैया का।स्वतंत्रता के बाद देश के ढांचागत सुविधाओं के निर्माण में उनका असाधारण योगदान रहा।चाहे वह हैदराबाद को बाढ़ से बचाने के लिए मूसा नदी को बांधना हो या फिर मैसूर में कृष्ण राज सागर बाँध का निर्माण हो,आपने हर बार वह किया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।मद्रास यूनिवर्सिटी से स्नातक विश्वेश्वरैया की सेवाएँ देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1955 में ‘भारत रत्न’ से नवाजा।प्रत्येक वर्ष 15 सितम्बर को उनका जन्मदिन देश में ‘राष्ट्रीय इंजीनियरिंग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।इन्हें ‘आधुनिक विश्वकर्मा’ भी कहा जाता है।
होमी जहाँगीर भाभा- यह हमारे देश की ख़ुशकिस्मती थी कि उसे परमाणु वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा का साथ मिला।भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले भाभा के चलते आज हम दुनिया की परमाणु ताकतों में शुमार होते हैं।उनके ही नेतृत्व में देश को उसका पहला परमाणु अनुसन्धान केंद्र (ट्राम्बे) व टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (आईटीएफटी) जैसे आला संस्थान मिले।
स्वामी विवेकानंद- बचपन में नरेन्द्र के नाम से जाने जाने वाले विवेकानंद के बारे में एक पश्चिमी विद्वान ने कहा था कि ‘इस तरह की विलक्षण प्रतिभाएं सदियों में एक बार ही जन्मती हैं।’ विवेकानंद ने विश्व सर्व धर्म सम्मलेन से लेकर आध्यात्मिक जीवन के कई मंचों पर अनेक बार इस बात को सिद्ध किया।विवेकानंद की अद्वैत दर्शन पर की गई टीकाएँ,परंपरागत विज्ञान,परम्पराओं और भारतीय दर्शन पर निष्कर्ष आज भी अध्ययन का विषय है।
एम एस स्वामीनाथन- आज देश भर के खेतों में छाई हरियाली देखकर दिल में जो सुकून मिलता है,उसके पीछे कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का दिमाग था।यह स्वामीनाथन ही थे जिन्होंने देश में उच्च पैदावार वाली गेंहू,चावल की खेती को प्रोत्साहन दिया और देश सही मायने में महान ‘हरित क्रांति’ का गवाह बना।आज़ाद भारत को उसकी भूख की बेड़ी से रिहा कराने वाले स्वामीनाथन को 1999 में ‘टाइम मैगज़ीन’ ने एशिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार किया था।
अब्दुल कलाम- राष्ट्रीय प्रतिरक्षा के क्या मायने हैं?पांच-पांच युद्ध झेल चुके भारत से बेहतर कौन जानता होगा?देश के प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत करने में महान वैज्ञानिक व पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का आज देश ऋणी है।यह कलाम की प्रतिभा ही थी कि एक बेहद गरीब,अभावग्रस्त परिवार में जन्म लेकर भी वे देश के राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे।वही बदलते सामरिक परिदृश्य में देश के शस्त्रागार को परमाणु हथियारों,मिसाइलों से लैस करने में भी अब्दुल कलाम की अहम भूमिका रही।कलाम साहब को 1997 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
सतीश धवन- स्पेस मार्केट में आज भारत दुनिया का बड़ा खिलाड़ी साबित हो रहा है।खासतौर पर राकेट प्रक्षेपण (लॉन्च वेहिकल निर्माण) के क्षेत्र में।परन्तु शायद बहुत से मेरे पाठक इस बात को नहीं जानते होंगे कि इस उड़ान को मुकाम देने में अहम भूमिका किसकी है?तो आइये जानते हैं कि वह शख्सियत कौन हैं?जी हाँ वे हैं देश में राकेट इंजीनियरिंग का पर्याय बन चुके सतीश धवन।देश-दुनिया के अनेक सम्मान व पुरस्कारों से नवाजे जा चुके सतीश धवन ने स्पेस साइंटिस्ट के तौर पर देश को कई बार स्वयं पर नाज़ करने का अवसर दिया।70 के दशक में ‘इसरो’ के चेयरमैन रहते हुए उन्होंने विक्रम साराभाई की विरासत को कामयाब अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के ज़रिये नई ऊंचाई दी।
अभिनन्दन वर्धमान- इनके नाम को तो अभी हममें से कोई भी भूला नहीं होगा।अभिनन्दन भारतीय वायुसेना के अधिकारी हैं।सम्प्रति वे विंग कमांडर हैं और मिग-21 बाइसन के पायलट हैं।एयर स्ट्राइक के अगले दिन पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराने वाले विंग कमांडर अभिनन्दन को ‘वीर चक्र’ से नवाजा जाएगा।पाक विमान को गिराने के दौरान भारतीय विमान भी पीओके में जा गिरा और पाक सैनिकों ने अभिनन्दन को पकड़ लिया था।भारत ने कूटनीतिक तरीकों से 1 मार्च 2019 को अभिनन्दन को छुड़ा लिया था।
यह तो कुछ बहुत ही थोड़े से नाम हैं जिनका ज़िक्र मैं यहाँ कर सकी।हमारी भारत भूमि धन्य है कि यहाँ ऐसे लाल पैदा हुए जिन्होंने अपनी जान,अपना सर्वस्व त्याग कर भी इसकी रक्षा की और अपने देश की शान को ऊँचा उठाया।एक-एक शहीद सैनिक को आज हम सबका सलाम और श्रद्धापूर्ण नमन।ऐसे सैनिक वास्तव में पूजनीय हैं जिन्होंने अपने देश की आन,बान और शान के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान अपनी जान देने में भी तनिक हिचक नहीं दिखाई।इन महान लोगों के कार्यों और बलिदानों के कारण ही आज हम यह दिन देख पा रहे हैं और हर्षोल्लास के साथ अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं।एक बार फिर से विश्व के किसी भी कोने में बैठे मेरे हर भारतवासी को 73वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।जय हिन्द।
सभी भारतीयों को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! हमने आज़ादी की लड़ाई में अपना कोई योगदान नहीं दिया क्योंकि हम स्वतन्त्र भारत में पैदा हुए परन्तु देश आज़ाद रहे और विश्वगुरु बने इसमें ज़रूर अपना योगदान दें।महान स्वतन्त्रता सेनानियों के बलिदान और उनके कार्य हमारे लिए आदर्श हैं।
वास्तव में हमलोग बहुत भाग्यशाली हैं जो हमने आज़ाद भारत में जन्म लिया।उन वीर क्रांतिकारियों को हम सच्ची श्रद्धांजलि यह दें कि देश की एकता,अखंडता पर आंच न आने दें और सभी मिलजुलकर रहें क्योंकि सभी जाति और धर्मों के लोगों का एक जैसा ही योगदान है इस देश की स्वतंत्रता के लिए।