तीन-चार दिन पहले सोशल मीडिया के माध्यम से एक गीत सुनने का अवसर मिला।जैसा कि आमतौर पर हम सभी के साथ होता है कि सोशल मीडिया के माध्यम से कोई भी गीत,कविता या सन्देश जो भी हमें प्राप्त होते हैं उन्हें हम सरसरी तौर पर सुन या देख लेते हैं परन्तु कभी-कभी ही ऐसा होता है कि कोई बात बिलकुल दिल को छू जाती है और गहरे तक असर डालती है।मैं बात कर रही हूँ युवा गीतकार अमन अक्षर की जिनका लोकप्रिय ‘राम गीत’ मेरे दिल को भी छू गया और जो बात हम सभी बचपन से जानते हैं कि श्री राम ने माता सीता की अग्निपरीक्षा ली थी और हम सभी राम से कभी न कभी यह प्रश्न अवश्य करते हैं कि उन्होंने सीता जी की अग्निपरिक्षा क्यों ली?परन्तु सीता जी अग्नि से सुरक्षित निकलती हैं।यह भी बात हम सभी जानते हैं कि होलिका जिसको न जलने का वरदान प्राप्त था वह भी अग्नि में जल गयी थी लेकिन सीता जी अग्नि से बचकर निकलीं।
अब मैं अमन अक्षर के गीत की कुछ पंक्तियाँ देना चाहूंगी-
सारा जग है प्रेरणा प्रभाव सिर्फ राम हैं
भाव सूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ राम हैं।।
x x x
जग की सब पहेलियों का दे के कैसा हल गये?
लोक के जो प्रश्न थे वो शोक में बदल गये
सिद्ध कुछ हुए न दोष,दोष सारे टल गये
सीता आग में न जलीं,राम जल में जल गये।
भगवान श्री राम ने इस धरा-धाम को कैसे छोड़ा तो इस प्रश्न का उत्तर है कि उन्होंने जल-समाधि ली।जिस स्थान पर वे सशरीर अदृश्य हुए आज वह स्थान अयोध्या के सरयू तट के किनारे मौजूद है।इसे ‘गुप्तार घाट’ के नाम से जाना जाता है।
वास्तव में इस युवा कवि की पंक्तियाँ इतनी भावप्रवण हैं कि मन भावुक हो जाता है।सच ही तो है सीता जी अग्नि में जाकर भी सुरक्षित बाहर निकलती हैं और श्री राम जल में ही समा जाते हैं।
“सीता आग में न जलीं,राम जल में जल गये”- इन पंक्तियों को सुनते ही माता सीता के प्रति श्रद्धा भाव और भी बढ़ जाता है।सीता जी मातृ-स्वरूपा हैं।उन्होंने न केवल अपने पुत्रों लव-कुश को ही संस्कारित किया,वरन वे समस्त जगत का पालन-पोषण भी माँ सरस्वती,माँ लक्ष्मी और माँ काली के रूप में करती हैं।इसीलिए उन्हें जगत-माता कहा जाता है।ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का सृजन,पालन और संहार त्रिदेव-ब्रह्मा,विष्णु और महेश अपनी शक्तियों-सरस्वती,लक्ष्मी और काली के माध्यम से करते हैं,किन्तु सीता जी यह तीनों काम स्वयं करने में समर्थ हैं।वे क्लेशहारिणी भी हैं।उनके जितना धैर्य किसी में भी देखने को नहीं मिलता फिर चाहे श्री राम के साथ उनका वनगमन हो या लंका में रावण की कैद में भी उनका अद्भुत धैर्य और साहस हम देखते हैं या वन में अपने पुत्रों लव-कुश के पालन-पोषण का दायित्व सभी में उन्होंने धैर्य,सहनशीलता और निर्भीकता का ही परिचय दिया।यह गुण मातृत्व का बोध कराते हैं और यह सारे गुण आज भी प्रासंगिक हैं।सच में सीता जी ममता की मूर्ति हैं,जो सभी जीवों के दुःख-क्लेश दूर करने के लिए सदा तत्पर रहती हैं।उनका वात्सल्य भाव सिर्फ अपनों पर ही नहीं अपितु समस्त प्राणियों के प्रति समान भाव से रहता है।उनकी कृपा सभी पर समान रूप से होती है।हनुमान जी की सेवा एवं समर्पण-भाव से संतुष्ट होकर सीता जी उन्हें आशीर्वाद रूपी यह वरदान देती हैं-
आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना।होहु तात बल सील निधाना।।
अजर अमर गुन निधि सुत होहू।करहुं बहुत रघुनायक होहु।।
ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी सीता माता के इस आशीर्वाद से ही चिरंजीवी हुए।सीता जी के प्रति मातृ-भाव रखने वाले हनुमान जी ममतामयी माता सीता के वात्सल्य से अभिसिंचित हो गये।लक्ष्मण जी भी अपनी भाभी सीता के प्रति माता की भावना रखते थे।सीता जी को जब निर्वासन का दुःख भोगना पड़ा,उस समय भी वाल्मीकि आश्रम में उन्होंने अपने पुत्रों लव-कुश का एक श्रेष्ठ माता की भांति पालन-पोषण किया।उन्हें इस तरह शिक्षित और संस्कारित किया कि वे जीवन की किसी भी परिस्थिति से न घबराएं।इसीलिए नन्हें लव-कुश में इतना आत्मविश्वास था कि वे राम के दरबार में उनके सम्मुख खड़े होकर अपने विचार संप्रेषित कर सके।यह सब बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।बच्चों की परवरिश में अक्सर ही इन बातों को नज़रन्दाज़ कर दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप उन बच्चों के भविष्य क्या बनते हैं,यह मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है।आज की इक्कीसवीं सदी में जब महिलाएं अकेले अपने दम पर क्या कुछ नहीं कर रहीं और बहुत से उदाहरण ऐसे भी मिलेंगे जब किसी भी कारण से जैसे पिता की मृत्यु हो जाने पर या पति-पत्नी के बीच तलाक हो जाने पर या पति किन्हीं भी कारणों से अपने बच्चों या परिवार को पालने में असमर्थ हो तो महिलाएं एक आदर्श पत्नी और माँ की भूमिका बहुत अच्छे से निभाती हैं।single parent बनकर वे अपने बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से करती हैं।ऐसे उदाहरण देखकर अक्सर हमलोग कह देते हैं कि “वाह यह आधुनिक ज़माने की नारी है अकेले दम पर सब कर रही है” परन्तु हमें तो परंपरा से ही ऐसे संस्कार मिले हैं।सीता जी ने अपने अकेले के दम पर लव-कुश की ऐसी परवरिश की कि इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं।सीता जी के विषय में हम जितना पढ़ते हैं उतना ही उनके चरित्र के विभिन्न चित्र हमारे सामने उपस्थित होते जाते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि सीता जी का ध्यान सरस्वती माता की तरह अविद्यारूपी अंधकार को नष्ट करके निर्मलमति प्रदान करता है-
जनक सुता जगजननि जानकी।अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।
ताके जुग पद कमल मनावऊं।जासु कृपा निर्मल मति पावऊ।।
सीता जी की लक्ष्मी माता जैसी महिमा उनके विवाह के समय दिखाई पड़ती है।बारात के आगमन पर जनकपुर में अपने पिता की लज्जा रखने हेतु और श्रीरघुनंदन की मर्यादा के अनुकूल कुछ कार्य उन्होंने परोक्ष रूप से किये-
जानी सिय बरात पुर आई।कहु निज महिमा प्रगटि जनाई।।
ह्रदय सुमिरि सब सिद्धि बुलाई।भूप पहुनई करन पठाई।।
लंका में सीता जी का प्रवेश काली-स्वरूपा कालरात्रि के रूप में हुआ।लंका में उनके आगमन से ही राक्षस-कुल के नाश का मार्ग प्रशस्त हुआ।रावण की महारानी,मंदोदरी ने सीता जी के इस रूप को पहचान लिया था,इसीलिए उसने रावण से प्रार्थना की थी कि वह सीता जी को राम जी को लौटा दे।रावण के अनुज विभीषण ने भी सीताजी को आदर के साथ श्री राम को लौटा देने का परामर्श दिया था,परन्तु रावण ने किसी की भी न सुनी।अन्ततोगत्वा रावण और उसके राक्षस-कुल का विनाश हुआ।
मान्यता है कि भगवती सीता में सरस्वती,लक्ष्मी और काली की तरह सृजन-पालन और संहार की त्रिगुणात्मक शक्ति सन्निहित है परन्तु वे जीव-मात्र पर अपना वात्सल्य लुटाती रहती हैं।शास्त्रों के अनुसार,जगदम्बा सीता सम्पूर्ण जगत की माता हैं।सीताजी की उपस्थिति के कारण ही जनकपुरवासियों को श्रीराम (परमात्मा) के दर्शन का लाभ मिला।इसीलिए यह कहावत प्रसिद्ध है-
जनकनंदिनी पदकमल जब लगि ह्रदय न वास।राम भ्रमर आवत नहीं,तब तक ताके पास।।
सीता जी के ऊपर यदि अध्ययन किया जाए तो इतना कुछ है कि हमें लगेगा कि अभी तक हमने उनके ऊपर कुछ जाना ही नहीं था।अंत में सिर्फ एक बात कहने का मन कर रहा है।जैसे मैथिलीशरण गुप्त जी ने श्री राम के लिए लिखा था-
राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए,सहज संभाव्य है।
वैसे ही माता सीता का चरित्र भी ऐसा है कि उसका चित्रण करते हुए कोई भी महाग्रंथ लिख सकता है और जीवन-पथ पर चाहे कोई भी मोड़ आये सीता जी के जीवन का एक-एक प्रसंग हमारे लिए प्रेरणा बन सकता है।
बहुत ही मर्मस्पर्शी एवं प्रेरणात्मक लेख।माता सीता का उज्जवल चरित्र ही उन्हें लोकोत्तरता प्रदान करता हैं।वाल्मीकि रामायण मे आदि कवि कहना है कि सम्पूर्ण रामायण माता सीता के चरित्र की महिमा का ही गुण गान हैं-
कृत्सनं रामायणं सीतायाश्चरितं महत्।
बहुत सुंदर लेख है….
भगवान श्रीराम व माता जानकी का चरित्र सबसे उत्तम और आदर्श माना गया हैं, वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार माता सीता ने जब से दांपत्य जीवन में प्रवेश किया तब से लेकर अंतिम समय तक संघर्ष ही करना पड़ा । लेकिन हर परिस्थिति में उन्होंने पतिव्रत धर्म का पालक करते हुए पूरे परिवार को भी माला के मोतियों की भांती एक सूत्र में पिरोये रखा । एक श्रेष्ठ पत्नी, एक उत्तम बहू, प्रजाजनों के लिए मातृ तुल्य महारानी और एक ऐसी मां जिसने विपरीत परिस्थियों में अपनी संतानों को महान सांकृतिक वीर योद्धा बनायें….. ऐसे उदाहरण संसार में बहुत कम ही देखने को मिलते है । अगर माता सीता के जीवन की इन बातों का वर्तमान की स्त्रियां जीवन में अनुसरण करने लगे तो दांपत्य जीवन सुखमय हो सकता है ।
Outstanding.