“संस्कृतं नाम दैवी वाग् अन्वाख्याता महर्षिभिः”। महर्षियों ने संस्कृत को ‘देववाणी’ कहा है।ऐसी हमारी ‘देववाणी’ की आज क्या दशा है, यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से मन में उठता है। “भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” । भारत की प्रतिष्ठा दो के कारण है- एक संस्कृत तथा दूसरी संस्कृति। इन्हीं दोनों का आज क्या हाल हो गया […]