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बहुभाषी साहित्य का संगम बिंदु – डॉ. स्वर्ण ज्योति

भाषा के चिंतन की सार्थकता सिर्फ संवाद मात्र से सिद्ध नहीं हो जाती। जब तक साहित्य के मंथन से भाषा मथी न जाए, तब तक भाषा का सौन्दर्य निखर कर सामने नहीं आता है। यह भारतीय साहित्य का सौभाग्य है कि भाषाओं के जितने भेद, भारत वर्ष में पाए जाते हैं, संभवतः किसी और देश में नहीं पाई जाते। माना कि हमारे देश में अनेक भाषाओं के अनेक साहित्य विभिन्न रूपों में लिखे गए हैं। माना कि भारतीय साहित्य टुकड़ों में बटा हुआ है। माना कि भारत अनेक संस्कार एवं रीत में बंटा हुआ है,परंतु यह भी सत्य है, कि भारतीयता की आत्मा ने, इन सब को एक सूत्र में बांधकर रखा है। यूं ही नहीं, भारतीय संस्कृति को अनेकता में एकता का सम्मान दिया गया है। इस कथन की सत्यता हमारे साहित्य में भी देखी जा सकती है।
यू तो हर भारतीय साहित्य में एक से बढ़कर एक लेखक, वि,श्लेषक, विचारक एवं समीक्षक हुए हैं। भारतीय साहित्य, ज्ञान के अंबार से पटा पड़ा है। प्रश्न यह उठता है कि हम इन महान ज्ञान स्रोतों को जोड़ें कैसे ? यह भारतीय साहित्य का सौभाग्य कहा जाएगा कि हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने लेखन, विश्लेषण एवं अनुवाद के माध्यम से हम सबको जोड़ा है एवं छोटे-छोटे जलाशय में बंटे साहित्य को अनुवाद,समीक्षा एवं बहुभाषी लेखन के द्वारा जोड़कर साहित्य के एक महासागर का निर्माण किया है। ऐसे महान व्यक्तित्व, साहित्यकारों के प्रेरणा बिंदु के रूप में मार्गदर्शक साबित हुए हैं।
माना कि भारतीय साहित्य के आकाश में ऐसे ध्रुव तारों की कमी नहीं है, परंतु यह हमारा सौभाग्य है कि हम ऐसे ही एक व्यक्तित्व से रूबरू होने जा रहे हैं, जिन्होंने स्वयं को बहु भाषा ज्ञान तक ही सीमित नहीं रखा, अपितु, बहु भाषा में उत्तम लेखन का सर्जन भी किया। इनकी यात्रा यहीं नहीं रुक जाती। इन्होंने चार भाषाओं में लेखन के अलावा इन सभी भाषाओं में अनुवाद का कार्य कर, विभिन्न साहित्यों को जोड़ने की कड़ी का महत्वपूर्ण कार्य भी किया है। मुझे यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हम संपूर्ण भारतीय साहित्य का परिचय उनके व्यक्तित्व में पा सकते हैं।
आइए जानें उस अनुसरणीय व्यक्तित्व को, जिन्हें हम डॉ. स्वर्ण ज्योति जी के नाम से जानते हैं। बेंगलुरु में जन्मी एवं पांडिचेरी में निवास करने वाली आदरणीय डॉक्टर ज्योति जी ने आठ भाषाओं का ज्ञान रखने के अलावा, चार भाषाओं में लेखन एवं अन्य साहित्यिक गतिविधियों से भी जुड़ कर, सही मायनों में साहित्य की भारतीयता को परिभाषित क्या है।


आप की मातृभाषा कन्नड़ होते हुए भी
हिंदी भाषा साहित्य , व्याकरण और उच्चारण पर आप की गहरी पकड़ है। साथ ही कन्नड भाषी होते हुए भी आप एक गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में पिछले 25 सालों से किसी भी संस्था या सरकार के सहयोग के बिना व्यक्तिगत रूप से हिंदी के प्रचार एवं प्रसार का कार्य कर रही हैं।
आदरणीय डॉक्टर स्वर्ण ज्योति जी ने, न केवल हिंदी में उत्तम साहित्य का लेखन किया, अपितु कन्नड़, तमिल एवं अंग्रेजी में भी विभिन्न साहित्य का अनुवाद कर, ज्ञान संचार की एक धारा को भी जन्म दिया। यह आदरणीय डॉक्टर ज्योति जी की अनुकंपा है, कि हम एक सूत्र के द्वारा चार भाषाओं के साहित्य से इतनी सुलभता से परिचित हो पाएं हैं।
हिंदी में आपकी कृतियों में,
एक कुल्हड़ चाय ( काव्य संग्रह)
ये कहानियाँ नहीं है (कहानी संग्रह) , प्रमुख हैं।

इसके अलावा आपकी अनुवादित पुस्तकों में,
आठवीं शताब्दी में रचित कन्नड़ संख्यात्मक जैन ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद
कटिलु दुर्गा परमेश्वरी क्षेत्र पुराण का कन्नड़ से हिंदी में अनुवाद
क्या करें जब माँ बने ‌( गर्भावस्था के लिये एक उपयोगी पुस्तक का हिंदी से कन्नड़ में अनुवाद )
डॉ. उज्जवल पाटनी की ” नेटवर्क मार्केटिंग” का हिंदी से कन्नड़ मे अनुवाद
मृदुला सिन्हा की परितप्त लंकेश्वरी का हिंदी से कन्नड़ में अनुवाद प्रमुख हैं।
आपकी यात्रा सिर्फ साहित्य तक ही सीमित नहीं है।
आप एक जानी-मानी समाजसेविका भी हैं।
पॉण्डिचेरी सरकार के द्वारा संचालित वृद्धाश्रम और अंधाश्रम में स्वयं सेवी
बंगलोर में आर्थिक रूप से असमर्थ बच्चों के लिए एक विद्यालय का संचालन, इत्यादि आपके अनेक सामाजिक कार्यकलापों की एक झलक मात्र है।
अगर हम, आपके द्वारा प्राप्त सम्मान की बात करें, तो आप के सम्मानों के बारे में चर्चा करना, मेरे लिए सम्मान की बात होगी।


पॉण्डिचेरी की उप राज्यपाल महामहिम डॉ. किरण बेदी जी द्वारा हिंदी के प्रचार एवं प्रसार हेतु सम्मानित(2016)

पॉण्डिचेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी द्वारा हिंदी के प्रचार एवं प्रसार हेतु सम्मानित (2013)

पॉण्डिचेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी एवं राष्ट्रीय हिंदी अकादमी द्वारा हिंदी के प्रचार एवं प्रसार हेतु सम्मानित (2010)

राष्ट्रीय कवि पद्मश्री कविपेयरअरसु वैरमुत्तु जी के द्वारा सम्मानित (2010)

कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री टी. एन. चतुर्वेदी के द्वारा कर्नाटक राज भवन में जैन ग्रंथ के अनुवाद हेतु सम्मानित (2009 ),

उपरोक्त सम्मानों का जिक्र, आपके द्वारा प्राप्त सम्मानों की सूची पर, एक सरसरी निगाह डालने मात्र जैसा होगा। इतने छोटे आलेख में, इस व्यक्तित्व को, संपूर्ण शब्दों में बांध पाना, मेरी कलम के बूते की बात नहीं।
आपकी कुछ कविताएं, जो मेरे दिल के बहुत करीब हैं, देना चाहूंगा-

मैं

मैं, मैं ही रहूंगी
अपनी ही छवि बनाऊँगी

मैं राधा नहीं बन सकती
कि आज प्रेयसी प्रताड़ित है
मैं सीता नहीं बन सकती
कि आज पतिव्रता पतित है
मैं मीरा नहीं बन सकती
कि आज भक्ति भ्रमित है
मैं यशोधरा नहीं बन सकती
कि आज विश्वास व्यथित है
मैं गांधारी नहीं बन सकती
कि आज त्याग त्यजित है
मैं उर्मिला नहीं बन सकती
कि आज समर्पण सारहीन है

मै, मैं ही रहूँगी
अपनी ही छवि बनाऊँगी
कर्तव्य सारे निभाऊँगी
मैं, मैं ही रहूंगी
अपनी ही छवि बनाऊँगी।

(2)
यादों का पुलिंदा खोल कर बैठा है मन
आज न जाने कहाँ-कहाँ उड़ा जा रहा है मन
कस्तूरी कुंडल बसे पर ढूँढ रहा है मन
यूँही मृगतृष्णा के पीछे भाग रहा है मन

रेतीली सूखी गरम धरा की छाती पर
प्यार की ठण्डी छाँव ढूँढ रहा है मन
प्यासा तो ओस बूंद में भी तृप्त है
पर भागीरथी का प्रयत्न कर रहा है मन

तराशने का दर्द सह कर ही चमक आती है
पर दर्द से ही दूर भाग रहा है मन
शीशे का होता है ये नाज़ुक दिल
‘कम्बख़्त ‘ इसे ही पत्थरों पर रख तड़प रहा है मन

जानती हूँ चाँद की सच्चाई क्या है
पर नानी का ही कहा मानता है मन
दूर कहीं कभी मिलन की आस है
यह सोच क्षितिज के पीछे भाग रहा है मन।

One thought on “बहुभाषी साहित्य का संगम बिंदु – डॉ. स्वर्ण ज्योति

  1. मेरी प्यारी दीदी हमें तुझ पर गर्व है।

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