हमारे देश के विभिन्न भागों में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं।भाषाओं की विविधता देश की एकता में कहीं भी बाधक नहीं समझी जानी चाहिए।
“दस बिगहा पर पानी बदले,
दस कोसन पर बानी”
इस कहावत के अनुसार ‘पानी’ और ‘बानी’ की अनेकरूपता तो स्वाभाविक ही है और इस अनेकरूपता में एकता का भान कराने के लिए हमने अपने देश के दक्षिण के राज्यों में बोली जाने वाली भाषाओं के ऊपर कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आरंभ की हुई है, जिसके कुछ कार्यक्रम आप सब पढ़ और सुन चुके हैं।इस कड़ी में कन्नड़ और तमिल भाषा एवं साहित्य के उद्गम और विकास के बारे में आप जान चुके हैं।
आज की कड़ी में हम मलयालम भाषा एवं साहित्य की विकास यात्रा के विषय मे बात करेंगे और इस विषय पर हमें जानकारी देने के लिए जिन्हें चुभन ने आमंत्रित किया है, वे हैं चेन्नई से डॉ. के.वत्सला जी।आप एतिराज कॉलेज फ़ॉर विमन में रीडर के पद पर रहीं।अवकाश प्राप्ति के बाद आपने चार वर्ष तक एम.जी.आर.जानकी कॉलेज फ़ॉर विमन में हिंदी विभागाध्यक्ष का पद अलंकृत किया।
आपके साथ मैंने जो भी बात की,वह पूरा कार्यक्रम आप चुभन के पॉडकास्ट में सुन सकते हैं।मुख्य बिंदुओं की यहां चर्चा करना चाहूंगा।
हर राज्य के साहित्य के बारे में एक विशेषता होती है और राज्य की संस्कृति उसके साहित्य से जुड़ी होती है।इसलिए केरल राज्य की उत्पत्ति के विषय में प्रचलित कथा सुनने का हमें अवसर मिला।जिसमें परशुराम की प्रसिद्ध कथा आपने सुनाई।
मलयालम भाषा की उत्पत्ति केरल में कैसे और कब हुई, इसके बारे में भी हमें रोचक जानकारी मिली।वत्सला जी ने बताया कि केरल में भी पहले तमिल को ही बोला जाता था और तमिल साहित्य ही पढ़ा जाता था लेकिन द्रविड़ ब्राह्मण परशुराम के विरोध में हो गए तो उन्होंने उत्तर से आर्य ब्राह्मणों को बुलाया और उनको केरल राज्य दे दिया।उन आर्य ब्राह्मणों की भाषा संस्कृत थी।उन आर्य ब्राह्मणों की संस्कृत और तमिल भाषा के मिलन से एक नई भाषा उत्पन्न हुई, जिसे मलयालम कहते हैं।इसीलिए मलयालम में संस्कृत के कई तत्सम शब्द और तमिल के शब्द हैं।इस प्रकार यह जानकारी हुई कि मलयालम मूलतः संस्कृत और तमिल भाषा का मिश्रण है।इस तरह केरल राज्य की उत्पत्ति और मलयालम भाषा की उत्पत्ति के बारे में हमें वत्सला जी से जानकारी हुई।केरल में जो नंबूदरी हैं, वे उत्तर से आये हुए आर्य ब्राह्मण ही हैं।
मलयालम साहित्य का आरंभ कब और कैसे हुआ, इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी नही है क्योंकि पहले तो तमिल साहित्य ही था।केरल के कवि भी तमिल में ही लिखते थे लेकिन बाद में जब मलयालम भाषा का विकास हुआ तो दसवीं सदी के बाद मलयालम में गीतों का प्रचार हुआ।मलयालम का जो आदि साहित्य है उसे हम इन गीतों में देखते हैं।इन गीतों में श्रमिक लोगों के जीवन की गाथा वर्णित है।केरल के प्राकृतिक सौंदर्य का भी इन गीतों में वर्णन है।
मलयालम चम्पू काव्य के बारे में भी आपने बताया।चम्पू काव्य सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों को दूर करने के लिए लिखे गए।
वत्सला जी के माध्यम से हमें मलयालम साहित्य को जानने का अवसर मिला और कई रोचक तथ्य हमें पता चले।
दस कोष पर बानी 👌
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