हर तरफ कैसा कोहराम, कैसा मातम छाया हुआ है?हर चीज़ अपनी जगह पर स्थिर हो गयी है।कुदरत भी मानो रो रही है।पूरा विश्व ही मौत के आगोश में बैठा है।कब किसकी बारी आ जाए, इसकी शंका हर मन में रहती है।कितने अपनों को हम अपने सामने से जाता देख रहे हैं और कोई अपना अब हमसे बिछड़ न जाए इस आशंका से मन भयभीत रहता है।जब कोई हमारा हमसे अलग होता है तो हमारी आत्मा ही नहीं शरीर का भी एक भाग मानो कट जाता है और आज तो हम रोज ही अपने शरीर और आत्मा के कई हिस्से होते देख रहे हैं, यह अलग बात है कि अपनी अपनी संवेदना के हिसाब से हम उसे कितना और किस तरह महसूस करते हैं?
कोरोना महामारी के कारण जो शारीरिक और मानसिक कष्ट हो रहे हैं उनसे हर कार्य से मुंह फेरने की प्रवृत्ति विकसित हो गयी है, कई दिनों से मैं आप लोगों से बात भी नहीं कर सकी लेकिन आज रामनवमी के पावन पर्व पर प्रभु श्रीराम का चरित्र हम सबके लिए एक मिसाल है।
“चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।”
आज के समय की आवश्यकता है कि हम राम को परब्रह्म राम न मानकर मानव राम के रूप में देखें, जो निरंतर संघर्षों से लड़ते रहते हैं।उनका जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा, घात-प्रतिघात का जीवन है।परिस्थितियों की विषमता उन्हें विचलित कर देती है, परंतु कर्तव्य-बुद्धि द्वारा संयत रह कर वे आत्मविश्वास को पुनः जागृत करते हैं और अंततः समस्त बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हैं।अपने कर्तव्य-पथ पर दृढ़ रहकर सफलता प्राप्त करने के लिए वे अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं।शक्ति की आराधना करते हुए एक कमल पुष्प कम होने पर अपनी आंख निकालकर शक्ति को समर्पित करने का संकल्प इसी सर्वस्व समर्पण भाव का द्योतन करता है।पुष्प चुरा लिए जाने पर राम क्षण भर के लिए जीवन से विरत दिखाई देते हैं।निराला जी की ‘राम की शक्ति पूजा’ की इन पंक्तियों में आज के मानव का दर्द और कुंठा भी मानो मुखरित हो उठी हो।आज हम सब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण इसी दर्द, इसी परेशानी से जूझ रहे हैं।यही कारण है कि मुझे ‘राम की शक्ति पूजा’ बहुत पसंद है और यह पुस्तक मेरे दिल के बहुत करीब है।राम का दर्द ,उनकी कुंठा को सुनें-
“धिक जीवन जो पाता ही आया विरोध,
धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध,
उद्धार जानकी!हाय प्रिया का हो न सका।”
देखा जाए तो राम की विजय की अपेक्षा उनकी साधना ही अधिक महत्वपूर्ण दिखाई देती है।राम एक युग विशेष के प्रतिनिधि न होकर युग-युग के प्रतिनिधि हैं।
शक्ति रावण रूपी अन्याय का समर्थन करती है और इस प्रकार नैतिक मूल्यों के क्षेत्र में एक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है।राम इसी का निराकरण करते हैं और नैतिक मूल्यों के पुनर्स्थापन में सफल होते हैं।महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पंक्तियां कितनी भावपूर्ण हैं-
“होगी जय,
होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन।
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।”
आज वैश्विक महामारी कोरोना से जो हालात बन गए हैं, जैसी परिस्थितियां हैं, उनमें राम का संघर्षपूर्ण चरित्र हमें कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा देता है।
रामनवमी की शुभकामनायें …🙏🌹🌹