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तेलुगु साहित्य-विमर्श

Telugu Sahitya Vimarsh

तेलुगु भाषा का अस्तित्व कब से आरंभ हुआ, इस दिशा में जो अनुसंधान हुए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं।जब तक निश्चित रूप से कोई प्रामाणिक सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया जाता, तब तक अनुमान के आधार पर किसी भाषा की उत्पत्ति का निरूपण करना न्यायसंगत न होगा।अग्निपुराण के वर्णन के आधार पर भी तेलुगु भाषा की प्राचीनता का मूल्यांकन किया जा सकता है, जिसमें कहा गया कि मधुर पदार्थों के प्रति ममता दिखाने वाले श्री महाविष्णु को यह भाषा अत्यंत प्रिय थी-

“त्रिमूर्तिनाम संस्कृतान्ध्र, प्राकृतां प्रियंकरा”।

तेलुगु भाषा के प्राचीन रूप का दर्शन आंध्र प्रदेश के अनेक संस्कृत व प्राकृत भाषा में खुदे हुए पुरातन शिला-लेखों में मिलता है।प्राचीन शिलालेखों में संस्कृत व प्राकृत शब्दों के साथ तेलुगु विभक्तियों के प्रत्यय जुड़े हुए मिलते हैं।
विद्वानों ने तेलुगु भाषा को बड़ा उच्च स्थान दिया है।हेनरी मॉरिस का कहना है कि “तेलुगु अत्यंत मधुर भाषा है।द्रविड़ भाषाओं में तेलुगु जैसी मधुर भाषा और कोई नहीं है।अशिक्षितों की जिह्वा पर भी तेलुगु मधुर प्रतीत होती है।स्वर-माधुर्य तथा प्रांजलता की दृष्टि से तेलुगु भाषा अनुपम है।”
‘हिन्दू’के अंक में तेलुगु भाषा की प्रशंसा करते हुए श्री बी.एस. हालदैन ने लिखा है कि “विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार सम्भव है, किंतु विदेशी शब्दों का नहीं।मैं समझता हूं कि ऐसे शब्दों की स्वीकृति के कारण ही संभवतः भारत की समस्त भाषाओं में तेलुगु ही एक ऐसी भाषा है, जो अन्य भाषाओं के शब्दों को बड़ी आसानी से ग्रहण कर सकती है।इसीलिए विद्वान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि शास्त्रों के शिक्षण में इसे हिंदी के मुकाबले लाया जा सकता है।”
आज से तीन शताब्दियों पूर्व तमिल विद्वान श्री अप्पय्य दीक्षित ने आंध्र भाषा की प्रशंसा करते हुए कहा था कि “तेलुगु स्वरांत भाषा है।इसमें स्वर-प्रधान संगीत और वर्ण-प्रधान साहित्य का सुंदर समन्वय हुआ है।यही कारण है कि तेलुगु भाषा देशी तथा विदेशी विद्वानों की प्रशंसा का पात्र बन चुकी है।
हम कह सकते हैं कि तेलुगु हमारे देश की उन भाषाओं में है, जिनका साहित्य-भंडार समृद्ध और आकर्षक है।मधुर और संपन्न होने के अतिरिक्त तेलुगु में हमें द्रविड़ और आर्य, इन दोनों भाषाओं का समन्वयात्मक रूप परिलक्षित होता है।एक बात यहां और भी ध्यान देने की है कि ‘तेलुगु’ दिशा-वाचक शब्द भी है, जिसका अर्थ होता है ‘दक्षिण’।कहने का आशय यह है कि विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से समलंकृत हमारे इस देश मे अनेक विविधताओं में भी राष्ट्रीय एकता का एक भव्य चित्र समाविष्ट है।भारत की यह अपनी राष्ट्रीयता है और भावनात्मक विशेषता।प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की इस महिमा और गरिमा का ज्ञान होना चाहिए, यह युग की एक आवश्यकता है।

जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि हमने दक्षिण भारतीय भाषाओं के ऊपर कार्यक्रमों की एक श्रृंखला शुरू की हुई है, और इसी क्रम में कन्नड़, तमिल और मलयालम भाषा और साहित्य पर हम विषय विशेषज्ञों से चर्चा भी कर चुके हैं।तेलुगु भाषा की चर्चा न की जाए तो हमारा यह प्रयोजन व्यर्थ जाएगा क्योंकि जैसा हमने अभी ऊपर चर्चा की कि तेलुगु एक बहुत ही समृद्ध और मधुर भाषा है।इसीलिए दक्षिण भारतीय भाषाओं से निकट संपर्क स्थापित करने तथा उनके वाङ्गमय का परिचय-लाभ अपने हिंदी पाठकों/श्रोताओं को सुलभ हो, इस दृष्टि से ही हमने इन कार्यक्रमों का आरंभ किया है।भविष्य में भी हमारा यह प्रयास होगा कि अन्य प्रांतों की भाषा और साहित्य के बारे में हम आपको अधिक से अधिक जानकारी दे सकें।
काफी समय तक कोरोना वैश्विक महामारी के प्रलयंकारी रूप को देखकर हम सभी इतना व्यथित और सहमे हुए से थे कि भाषा के कार्यक्रम हम आपके लिए प्रस्तुत नहीं कर पाए, उसके लिए चुभन परिवार क्षमा चाहता है।
आज तेलुगु भाषा और साहित्य पर चर्चा करने के लिए जिस विदुषी व्यक्तित्व से बात करने का मुझे सौभाग्य मिला है, वे हैं आलूरु राधिका जी।आप लेखिका, पत्रकार, समाजसेवी एवं हिंदी भाषा की प्रचारिका व शिक्षिका हैं।आप हिंदी, अंग्रेजी, तेलुगु, कन्नड़,तमिल और संस्कृत भाषाओं की जानकार हैं।
आप विगत 25 वर्षों से हिंदी भाषा के प्रचार कार्य में लगी हुई है। 1998 से 2003 तक आप युग मानस हिंदी पत्रिका की प्रबंध संपादक रहीं।आप आंध्र प्रदेश सरकार की सेवा में 10 वर्ष (2002 से 2012 तक)पुड्डुचेरी में 2012 से हिंदी शिक्षण व प्रचार कार्य मे सक्रिय रहीं।आपकी 17 संपादित पुस्तकें कन्नड़ में प्रकाशित हो चुकी हैं।आपके अनेकों शोध लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं।
ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी राधिका जी से आज मैं ‘चुभन’ के पॉडकास्ट पर भी तेलुगु भाषा और साहित्य पर चर्चा करूँगा।

कार्यक्रम के विषय में सूचना –

दोस्तों, हम सभी ने बीते कुछ महीनों में वह दृश्य देखा है, जिसकी कल्पना हमने कभी की ही नहीं थी।इन परिस्थितियों ने सभी को कहीं न कही तोड़ा है लेकिन कुछ लोग कोरोना वारियर (Corona warrior ) बनकर हमारे सामने आए और उनसे हमें प्रेरणा मिली।
‘चुभन’ पर इतने ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी से आप सभी परिचित ही हैं और हम सब उनका बहुत सम्मान और उनसे बहुत प्यार करते हैं, वे कोरोना योद्धा के रूप में हमारे सामने आए हैं और बहुत जल्द हम सबके साथ अपने अनुभव साझा करेंगे। हमारा सौभाग्य होगा कि उनकी प्रेरणादायक बातों को हम उन्हीं के द्वारा सुन सकेंगे।तो दोस्तों ‘चुभन’ के अगले लेख और पॉडकास्ट में हम जनरल साहब से मिलने का इंतज़ार करते हैं।

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