लेखक – डॉ. भावप्रकाश गांधी “सहृदय”
सहायक प्राध्यापक -संस्कृत, सरकारी विनयन कॉलेज
गांधीनगर, गुजरात
मनुष्य अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए जिस सार्थक मौलिक साधन का उपयोग करता है उसको हम भाषा कहते हैं । भाष भाषणे इस धातु से भाषा शब्द की निष्पत्ति होती है । इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जिस माध्यम से हम लोग अपने विचारों का विनिमय करते हैं आदान प्रदान करते हैं उस साधन का नाम भाषा है मानव सभ्यता का संबंध भाषा से होता है । भाषा के माध्यम से विचार करने के कारण ही मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न और विशिष्ट समझा जाता है और इन विचारों की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से होती है, इस बात में कोई भी संदेह नहीं है ।
मनुष्य की सारी क्रियाएं भाषा के माध्यम से ही संचालित होती है, मानव अपनी आत्मा के साथ और मानव अपने समाज के साथ इसी साधन के आधार पर बात करता है । संस्कृत का भाषा विज्ञान के साथ महत्व समझाते हुए सर्वप्रथम भाषावैज्ञानिक महर्षि भर्तृहरि कहते हैं कि लौकिक कर्म, कर्तव्य बोध,क्या करना चाहिए , क्या नहीं करना चाहिए यह ज्ञान भाषा से ही पता चलता है –
इतिकर्तव्यता लोके सर्वा शब्दव्यपाश्रया । वहां पर शब्द इस से भाषा का उल्लेख प्राप्त होता है । आचार्य दंडी भी भाषा के महत्व के संदर्भ में कहते हैं –
“इदमन्धन्तम: कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम् ।
यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ।।”
यदि इस संसार में शब्द ज्योति ही ना होती तो यह संपूर्ण संसार अंधकार युक्त हो जाता ।
भाषा की उत्पत्ति किस प्रकार हुई यह कहना तो भाषा वैज्ञानिकों के लिए भी अत्यंत कठिन कार्य है भाषा की उत्पत्ति के विषय में दिव्योत्पत्ति -संकेत- रणन -श्रमिकध्वनि इंगित -प्रतीक इस प्रकार के अनेक सिद्धांत सुने जाते हैं और पढ़े जाते हैं । भारतीय तो इन भाषाओं की उत्पत्ति के विषय में वेदों को परम प्रमाण मानते हुए इस संसार की उत्पत्ति के साथ ही भाषा की उत्पत्ति को मानते हैं जैसा कि ऋग्वेद में भी कहा गया है-
“दैवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपा: पशवो वदन्ति ।।”
इस प्रकार हम भाषा के महत्त्व को देख सकते हैं ।
विश्व में लगभग 3000 भाषाएं बोली जाती हैं । भाषावैज्ञानिक इन भाषाओं का दो प्रकार से वर्गीकरण करते हैं – पहला आकृतिमूलक वर्गीकरण और दूसरा परिवारमूलक वर्गीकरण । आकृतिमूलक वर्गीकरण रूप के आधार पर योगात्मक और अयोगात्मक इस तरह से किया जाता है । जिसमें चीनी, बर्मी, तिब्बती, मुंडा, संथाली, तुर्की आदि भाषाएं समाविष्ट हैं । इन योगात्मक भाषाओं का श्लिष्ट, अश्लिष्ट और प्रश्लिष्ट इस प्रकार 3 तरह से वर्गीकरण होता है ।
परिवारमूलक वर्गीकरण का आधार है अर्थतत्व और रचना तत्व की समानता । इस वर्गीकरण में 100 से ज्यादा परिवारों का समावेश किया जा सकता है । फिर भी मुख्यतः 18 परिवार इसमें माने जाते हैं । इनमें भारोपीय परिवार सबसे महत्वपूर्ण और विशाल है । सतम् और केन्टूम् वर्ग इस तरह दो वर्गों में इस परिवार का विभाजन किया गया है । सतम् वर्ग में 4 परिवार और केन्टूम् वर्ग में 6 परिवार माने गए हैं । सतम् वर्ग में भारत ईरानी आर्य भाषा परिवार का समावेश किया जाता है । इस परिवार की मुख्य भाषा संस्कृत है । इसका वर्गीकरण तीन प्रकार से किया जाता है –
1. प्राचीन भारतीय आर्यभाषा समय – 1500 ई.पू. से 500 ई.पूर्व
2. मध्यभारतीय आर्यभाषा समय- 500 ई.पू. से 500 ई.स.
3. आधुनिक भारतीय आर्यभाषा , समय 500 ई.स से 1500 ई.स ।
प्राचीन भारतीय आर्यभाषा में वैदिक संस्कृत का और लौकिक संस्कृत का समावेश है । मध्य भारतीय आर्यभाषाओं में पाली, प्राकृत,अपभ्रंश, शौरसेनी, मागधी पैशाची भाषाएं हैं और आधुनिक भाषाओं में हिंदी, गुजराती, मराठी बंगाली, असमी, उड़िया, पंजाबी आदि भाषाएं समाहित हैं । गुजराती भाषा सबसे मधुर और बोलने में सरल भाषा मानी जाती है । प्रचार प्रसार की दृष्टि से गुजराती भाषा विश्व में अत्यंत आदरणीय स्थान प्राप्त करती है।
2011 की जनसंख्या गणना के अनुसार भारत में वक्ताओं की संख्या के आधार पर गुजराती छठे क्रम पर बोले जाने वाली सर्वाधिक प्रचलित भाषा है । आज भारत में लगभग 5.56 करोड़ लोग गुजराती भाषा बोलते हैं जो भारत की जनसंख्या के आधार पर लगभग 4.5% बोलने वालों की संख्या मानी जाती है ।समग्र विश्व में गुजराती भाषा बोलने वालों की संख्या 6 करोड़ 55 लाख के आसपास है।इस तरह गुजराती भाषा विश्व में 26 क्रम में बोली जाने वाली प्रचलित भाषा है।
गुजराती भाषा साहित्य की दृष्टि से 700 साल पहले से भी प्राचीन है कुछ लोगों के आधार पर इसवी सन 800 के आसपास की यह भाषा रही होनी चाहिए । गुजराती लोगों के द्वारा दक्षिण एशिया के अनेक भागों में भारत के अनेक राज्यों में विशेषत: मुंबई और पाकिस्तान कराची में भी गुजराती बोली जाती है । गुजराती वंश के लोगों के द्वारा दक्षिण एशिया के बाहर भी विश्व के अनेक देशों में गुजराती भाषा का प्रचलन है उत्तर अमेरिका के प्रदेशों में गुजराती भाषा सबसे तीव्र गति से विकास पा रही है । अमेरिका और कनाडा में तो यह गुजराती भाषा भारतीय भाषाओं में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाती है । यूरोप में गुजराती ब्रिटिश दक्षिण एशियाई भाषाओं को बोलने वालो में दूसरे स्थान को प्राप्त करती है । इंग्लैंड के लंदन में गुजराती चौथे क्रम पर बोले जाने वाली भाषा है । गुजराती उत्तर पूर्वीय अफ्रीका, केन्या, युगांडा तांजानिया, जांबिया तथा दक्षिण अफ्रीका सहित अफ्रीका महाद्वीप के अन्य देशों में भी बोली जाती है । हॉन्गकॉन्ग, इंडोनेशिया,सिंगापुर ऑस्ट्रेलिया और मध्यपूर्व के देशों में भी जैसे कि बहरीन आदि में गुजराती का प्रचलन है । एक और गौरव लेने की बात है कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल, महर्षि दयानंद सरस्वती आदि राष्ट्रपुरुषों की मातृभाषा के रूप में गुजराती का समावेश होता है । इसके साथ नरसिंह मेहता, मोरारजी देसाई धीरूभाई अंबानी, जेआरडी टाटा और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी गुजराती भाषा के माध्यम से ही पढ़े हुए हैं और उनके व्यवहार में अभी भी गुजराती का समावेश होता है ।
गुजराती भाषा का संस्कृत भाषा के साथ अभिन्न संबंध है क्योंकि समस्त भारतीय भाषाओं का मूल संस्कृत को माना गया है । संस्कृत से ही पाली, प्राकृत और अपभ्रंश आदि भाषाएं निकली और अपभ्रंश से शनै: शनै: गुजराती भाषा का प्रादुर्भाव हुआ । किसी भी भाषा को विकसित होने में कई सदियों का समय लगता है ईसवी सन 800 से लेकर 1300 ई. तक अपभ्रंश भाषा के माध्यम से गुजराती भाषा का निर्माण और विकास होता गया । इस तरह गुजराती भाषा अपभ्रंश भाषा से निकली हुई है ऐसा विद्वान मानते हैं । अपभ्रंश भाषाओं के ग्रंथों में वज्रसेन के द्वारा रचित भरतेश्वर बाहुबलीघोर, शालीभद्रकृत भरतेश्वरबाहुबलीरास, धर्मकृत जंबुसामीचरिय और विजयसेन सूरिकृत रेवंतगिरिरासु आदि ग्रंथ प्रमुख हैं । उसी से गुजराती भाषा का विकास हुआ है । हेमचंद्राचार्य सिद्धहेमशब्दानुशासन ग्रंथ में अपभ्रंशव्याकरणविभाग में अपभ्रंश भाषा का प्रयोग गुजरात के समीपवर्ती क्षेत्र में किया जाता था ऐसा लिखते हैं । भोजराज भी सरस्वतीकंठाभरण में अपभ्रंश का प्रयोग सूचित करते हैं – “अपभ्रशेन तुष्यन्ति स्वेन नान्येन गुर्जरा: ।” इस तरह संस्कृत भाषा के साथ गुजराती भाषा का संबंध जाना जा सकता है । उदाहरण के तौर पर संस्कृत के कर्म से अपभ्रंश का कम्म और उससे गुजराती का काम । उसी तरह पंच >पच्च>पांच और 5 कुंभकार से कुम्भआर और उससे कुम्भार आदि । इस तरह संस्कृत भाषा से ही गुजराती भाषा में शब्द उतर आए हैं इस लिए संस्कृत भाषा से ही गुजराती भाषा का उद्भव मान सकते हैं ।
भाषा एक परिवर्तनशील प्रक्रिया होती है समय-समय पर उसमें काफी विभिन्नता देखी जा सकती है । कहीं भौगोलिक कारण, कहीं ऐतिहासिक कारण तो कहीं साहित्य कारण से भाषा में विकास और विकार दोनों देखे जा सकते हैं । भाषा विज्ञान की दृष्टि से भाषा के निर्माण में अन्य भाषा के चार तत्वों का प्रभाव परिलक्षित होता है – 1. ध्वनिप्रभाव 2. रूपप्रभाव 3. अर्थप्रभाव और 4. शब्दप्रभाव या वाक्यप्रभाव । इन चारों प्रभाव के कुछ उदाहरणों के माध्यम से हम संस्कृत भाषा के साथ गुजराती भाषा का समन्वय स्थापित कर सकते हैं ।
ध्वनिप्रभाव के उदाहरण –
1. घृत >घिऊ > घी
2.शृगाल>सियालु >सियाल
3. ऋक्ष >रिच्छु > रींछ
रूपप्रभाव के उदाहरण
1. कथयति>कहइ > कहे
2.तरति>तरई >तरे
3. मृत्तिका >मट्टिअ > माटी
अर्थप्रभाव के उदाहरण
1. अमृत >अमिउ > अमी
2.चतुष्क>चउक्कु >चौक
3. राजकुल >राउल > रावल
वाक्यप्रभाव के उदाहरण
1. अहं कार्यं करोमि>हूं काम करु छुं.
2. अहं कार्यम् अकरवम् > हूं काम करतो हतो
3. अहं कार्यं करिष्यामि > हूं काम करीश
इस प्रकार संस्कृत भाषा से सभी भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है वहीं गुजराती भाषा के मूल में भी संस्कृत भाषा ही विद्यमान है । संस्कृत के शब्दों को आधार बनाकर लगभग 60% शब्द गुजराती भाषा में समाहित हैं । संस्कृत के व्याकरण से ही गुजराती भाषा का व्याकरण संवर्धित और पल्लवित हुआ है ।संस्कृत के व्याकरण के नियमों के समान ही गुजराती में भी नियम देखे जा सकते हैं । लिंग-वचन- विभक्ति-प्रत्यय आदि में यद्यपि बहुत समानता नहीं है परंतु संस्कृत की तरह ही उनका प्रयोग लोकव्यवहार में या शास्त्रों में देखा जा सकता है । इस प्रकार निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा गुजराती भाषा से बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध रखती है और संस्कृत भाषा के साथ गुजराती भाषा का अविनाभावेन संबंध है ।।
बहुत ही अच्छा लगा