शांत लहरों को सुनामी में न परिवर्तित करें
छोड़ दें यह ज़िद कि हम भी प्रेम परिभाषित करें……
सच में बहुत कठिन है, प्रेम को परिभाषित करना क्योंकि प्रेम के इतने रंग, इतने रूप होते हैं कि इसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है, शब्दों की सीमा में बांधना तो असंभव ही है।
आज हमने ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर जिनको आमंत्रित किया है, उनका व्यक्तित्व ऐसा है, जिसमें प्रेम के रंग भरे हुए हैं और इन रंगों में इतनी विविधता है कि आपने ऐसा कम ही देखा सुना होगा।
बात उन्हीं की होती है, जिनमें कोई बात होती है।हमारी आज की मेहमान शाबिस्ता बृजेश जी से जब मैंने बात की तो निस्संदेह गर्व भी मुझे हुआ कि कोई महिला कैसे इतनी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए रूढ़ियों और परंपराओं को इतने शालीन और सम्माननीय तरीके से तोड़ते हुए भी निभाती चली गई।
आपने एक हिन्दू लड़के बृजेश जी से विवाह किया और न सिर्फ विवाह किया बल्कि दोनों धर्मों और संस्कृतियों को समान आदर देते हुए इस तरह आत्मसात किया कि प्रेम का एक पवित्र रूप समाज के समक्ष प्रस्तुत हुआ।
विवाह के बाद, जब उनके अपनी कोई संतान नहीं हुई तो एक अद्भुत निर्णय पति-पत्नी ने लिया और विकलांग और असहाय बंदरों को उन्होंने अपने घर में रखकर ऐसे पाला जैसे उनके अपने बच्चे हों।एयरकंडीशनर और हीटर लगे कमरों में उनको रखा।उनके इस कार्य को राष्ट्रीय ही नही अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी खूब प्रचारित-प्रसारित किया गया, लेकिन भावुकता और वात्सल्य से भरे इस दंपति का दिल यह बात नहीं स्वीकार कर सका कि उनके बच्चे जैसे बंदर को मीडिया की भीड़-भाड़ से कोई कष्ट हो, इसलिए उनको प्रसिद्धि पाने की चाह ही नहीं रही वरना कोई और होता तो इस बात का खूब लाभ उठा सकता था।अपने प्रिय बंदर चुनमुन के नाम पर आपने ‘चुनमुन ट्रस्ट’ की स्थापना की और इसके द्वारा आपलोगों ने गरीब बच्चों की प्रतिभाओं को आगे बढ़ाया।चुनमुन, जो कि अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसकी बात करते हुए शाबिस्ता जी हमारे कार्यक्रम में भी इतनी भावुक हुईं और जब कार्यक्रम के बाद मैंने उनसे चुनमुन की कोई तस्वीर मांगी तो बहुत ही व्यथित होकर उन्होंने कहा कि मैं उसकी तस्वीर ढूंढ नहीं सकूँगी क्योंकि देखते ही मैं रो पड़ूँगी। है न, प्रेम का अद्भुत रंग……
आप एक प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित कवयित्री भी हैं।पूरे देश में कई मंचों पर काव्य-पाठ करके इन मंचों की आप शोभा बढ़ा चुकी हैं।आपको उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी सम्मानित कर चुके हैं, उसके अलावा उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब द्वारा भी आप सम्मानित की जा चुकीं हैं और भी न जाने कितने सम्मानों से आपको नवाज़ा जा चुका है।
आपकी 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
2 वर्षो तक ‘अंतराल’ नाम से एक साहित्यिक पत्रिका निकाली।
प्रकाशित कृतियां-
‘मस्जिद शिवाला’
‘बग़ावत के फूल ‘- कविता संग्रह
प्रेम ( मुक्तक)
‘आवाहन’, ‘नील कंठ’, ‘ राधा की मटकी ‘ ( घनाक्षरी और सवैया)
‘रामेश्वर और निराला’- संस्मरण
‘पागल फरिश्ता’- रेखा चित्र
‘सिंदूर एक छल ‘- कहानी-संग्रह
‘वाणी’- खण्ड काव्य
इस तरह हम देखते हैं कि साहित्य की कई विधाओं पर आपने अपनी लेखनी चलाई।
प्रेम को परिभाषित करती हुई उनकी यह कविता पढ़ें –
“शांत लहरों को सुनामी में न परिवर्तित करें
छोड़ दे यह ज़िद की हम भी प्रेम परिभाषित करें।
हमसफ़र बन कर अवनि के साथ जो चलता रहा
कैसे परिभाषित करूं उस व्योम के विस्तार को
गोद मे सागर के जो अठखेलियाँ करती रहीं
कैसे परिभाषित करूं लहरों के इस संसार को
एक गूंगा स्वाद बोलो कैसे उच्चारित करें
छोड़ दे अब ज़िद कि हम भी …..
माप पाऊँगी न नदियों के प्रबल प्रवाह को
माप पाऊँगी न बढ़ती प्रीति के उच्छाव को
व्याख्या कैसे करूं मैं वेदना संत्रास की
या कि अपने संयमित श्वासों के मैं सन्यास की
झील में भी मीत क्या तूफ़ां को आमंत्रित करें
छोड़ …..
क्या पपीहे सी मुखर कर दूं मैं अपनी वेदना
या स्वाति की तरह बस मौन हो संवेदना
या बिखेरू रंग दुनिया देख ले यह अल्पना
या बना लूँ कोरे नयनों की तुम्हे मैं कल्पना
है असम्भव स्वाति बूंदे पीर को दर्शित करें
छोड़ दे …..
न छुअन की थी ज़रूरत न थी आलिंगन की चाह
न समर्पण की ज़रूरत और न चुम्बन की चाह
एक नज़र से तृप्त मेरे मन का यह आंगन हुआ
मुस्कुराए तो हमारा तन भी वृन्दावन हुआ
आत्माओं के मिलन को कैसे परिलक्षित करें
छोड़ दे यह ज़िद……”
आपके व्यक्तित्व में राजनीतिक रंग भी देखने को मिलते हैं।आप रायबरेली में सभासद नगर पालिका के पद पर रहीं और यह पद आपने अंतर जनपदीय ज़हर खुरानी गिरोह के गैंग लीडर को हरा कर प्राप्त किया।उनकी शख्सियत ही इतनी निर्भीक और साहसी है कि हर चुनौती उनके सामने धराशायी हो जाती है।
आप 3 बार जिला सहकारी बैंक की डायरेक्टर भी निर्वाचित हुईं।
आपने सेंट्रल बार एसोसिएशन के संयुक्त मंत्री और कार्यवाहक महामंत्री के पद पर भी कार्य किया।
किसी एक व्यक्ति में ही इतने सारे रूप और वो भी प्रेम और त्याग से भरे हुए कम ही देखने को मिलते हैं, इनसे हुई पूरी बातचीत को सुनें।
क्या हम इनके वीर रस की कवितायेँ सुन सकते हैं? हम सुनना चाहते हैं।
पूरी बातचीत बहुत मनमोहक हैं। शाबिस्ता जी ने बड़े मन से पूरी बात की। उनका ढेरों धन्यवाद है। हमारी शुभकामनायें।
आपका आभार अनुज जी कि आप चुभन के कार्यक्रम सुनते हैं।प्रयास रहेगा कि बहुत जल्द शाबिस्ता जी की कविताओं को हम पुनः सुनें।