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मशहूर शायरा श्यामा सिंह सबा जी के साथ एक संवाद

भाषा हमारे मनोभावों की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है।यह किसी की जागीर नही होती।विभिन्नता में एकता हमारे देश की विशेषता है और इसी विभिन्नता में भाषा गत विभिन्नता भी आती है।
हमारी मातृभाषा हिंदी है परंतु इस मां का ह्रदय इतना विशाल है कि यह हर भाषा को आलिंगन बद्ध करके अपने अन्तस् में समा लेती है।बस यही सम्बन्ध हिंदी और उर्दू में भी है।
इतना ही नही समय समय पर हिंदी ने उर्दू भाषी रसखान, कबीर, रहीम इंशाअल्ला खां और मलिक मोहम्मद जायसी को अपने वात्सल्य की डोर से बांधा तो उर्दू ने भी बढ़कर हिंदी भाषी फ़िराक़ गोरखपुरी,कृष्ण बिहारी नूर और मुंशी प्रेमचंद आदि पर अपनी ममता के मोती लुटा दिए।
इसी श्रंखला को एक कवयित्री ने आगे बढ़ाया और वह नाम है श्यामा सिंह सबा का।सनातनी वाटिका में खिले इस सुमन ने उर्दू की सुगंध सिर्फ अपने देश में ही नही बल्कि सरहदों को तोड़ कर सारी दुनिया मे बिखेर दी।

शायरा श्यामा सिंह सबा जी को शायरी का शौक़ बचपन से ही था।इसका कारण वे बताती हैं कि उनकी मां बहुत अच्छी ग़ज़ल गायिका थीं लेकिन उर्दू ज़ुबान से लगाव होने के बावजूद वे उर्दू पढ़ नहीं सकीं।हाईस्कूल पास करते ही आपका विवाह हो गया और बच्चों तथा परिवार की ज़िम्मेदारी में आप व्यस्त हो गईं।
ज़िम्मेदारियों में आप बंध तो गयीं और शायरी का शौक़ कहीं न कहीं दब भी गया लेकिन भीतर ही भीतर उनको एक चुभन होती रही।


सन 1992 से आपने अपने इस शौक को लोगों तक पहुंचाना आरम्भ किया।यह सब कुछ कैसे हुआ, इसका जवाब आपने बड़ी बेबाकी से ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर दिया।उन्होंने शुरुआती दौर में लिखा हुआ अपना एक शेर भी सुनाया –

” यूँ वो दिल के क़रीब लगता है,
जैसे मेरा नसीब लगता है,
कल ही रुखसत हुआ है वो घर से
आज ये घर अजीब लगता है।”

ऑस्ट्रेलिया,लंदन, दुबई, पाकिस्तान, नेपाल, दोहा-कतर और कुवैत आदि देशों में आपने मुशायरे किये और खूब सम्मान भी पाया। 15 मिनट तक अनवरत तालियों की गूंज उनके शेरों पर होती रहती थी।उन्होंने कहा कि वैसे तो हर देश में उन्हें बहुत प्यार और सम्मान मिला परंतु ऑस्ट्रेलिया में उनको सबसे अच्छा लगा।

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उनके जीवन की दशा एक हादसे ने बदल दी।उनके दो जवान बेटे असमय अकाल मृत्यु के शिकार हुए।उसके बाद वे दो लड्डू गोपाल लाई।उनके नाम सोनू-मोनू रखे और अब उन्हीं के साथ मगन रहती हैं।

अपने देश में भी उनको बहुत सम्मान मिला।देश के हर कोने में उनको सुना और सराहा गया।कर्नाटक के मुख्यमंत्री धर्मसिंह आपकी शायरी को वहुत पसंद करते थे और श्यामा सिंह सबा जी को अपनी बहन की तरह मानते थे। इस दौर में बैंगलोर में कोई भी मुशायरा श्यामा सिंह सबा जी के बिना नहीं होता था।इसी तरह महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में उन्हें खूब प्यार भी मिला और सम्मान भी।

ऐसी शख़्सियत आज हमारे पॉडकास्ट में आईं और अपने जीवन की बहुत सी कही-अनकही बातों को हमारे साथ साझा किया।मेरे साथ हुई उनकी पूरी बातचीत को सुनें।

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