अधूरी आज़ादी

             -रामेंद्र सिंह चौहान,

        संपादक डी डी न्यूज़ लखनऊ

बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं, थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥

यह सपना हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी बाजपेई का नही है। यह सपना भारत की हर उस आंख का है जिन्होंने 1947 में आधी आज़ादी पाई है। हम कश्मीर की वादियों में जो खिलते हुए फूल देखते हैं वह अकेला सच नहीं है, उनके नीचे दहकते अंगारों की ताप को भी महसूस करते हैं। हम कश्मीर में अपना घर बार, अपने रिश्तेदार, अपने परिजनों को छोड़कर दिल्ली की झोपड़पट्टी में निवास करने वाले उन हिंदुओं को भी देख रहे हैं। अक्साई चीन और तिब्बत को भी भारत के भू-भाग में देखने की मंशा पाल कर बैठे हैं। इसीलिए यह आज़ादी अभी अधूरी है।अल्पसंख्यकों के नाम पर जो खेल सरकारों ने खेला है, उसका प्रतिफल भी हम आज़ादी की अधूरी दास्तान में देख रहे है। आजाद भारत में जब “सर तन से जुदा” का नारा लगता है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब इस देश में कोई कमजोर अपनी न्याय की लड़ाई नहीं लड़ पाता है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब राजनीति जातिवादी जाल डालकर वोट बटोरती है और केवल अपनी सत्ता के लिए काम करती है, तब भी आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब कोई इंसान भूख से दम तोड़ देता है, चिकित्सा के लिए परिवार असहाय होकर भगवान की तरफ देखता है, तब भी आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब योजनाओं का बंदरबांट अधिकारी और नेता करते हैं, तब भी हमें यह आज़ादी अधूरी लगती है।

वोट देने वाले इस देश के राजा और सत्ता पाने वाले नेताओं के बीच जब अंतर बढ़ने लगता है, तब भी हमें यह आज़ादी अधूरी लगती है। जब किसी छोटी बच्ची का बलात्कार होता है, और वह न्याय की तलाश में भटकती रहती है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब इस देश का किसान आत्महत्या करने के लिए विवश होता है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब कुछ लोग पैसा कमाने के लिए प्रकृति को तहस-नहस कर देते हैं, जंगल पहाड़ नदियां सब बेच देना चाहते हैं, तब भी आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब देश के किसी थाने में पुलिस के रवैये से लोगों की मौत हो जाती है, तब भी आजादी हमें अधूरी लगती है। जब कोई पत्रकार अपनी कलम पैसे के लिए बेच देता है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। जब लोगों के लिए नैतिकता का कोई मूल्य नहीं रह जाता है, तब भी यह आज़ादी हमें अधूरी लगती है। इन सब समस्याओं का समाधान किसी राजनीतिक नेतृत्व या किसी दल में न तलाशिये, यह आप पर निर्भर है, अगर वोट देते समय आपने सही चुनाव किया तो यह सारी समस्याओं का समाधान होना तय है। आप इस देश के मालिक हैं, इसलिए आपकी जिम्मेदारी सबसे अधिक है। देश का नेतृत्व कैसा हो और देश की दिशा कैसी हो यह तय करना आपका अधिकार है। आप अपने अधिकार से जिस दिन परिचित हो जाएंगे, यह आज़ादी का सपना भी पूरा हो जाएगा और अखंड भारत भी आपकी सरहदों में बंधा हुआ दिखेगा।

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