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“संस्कृत दिवस: मृदुल कीर्ति जी की अद्वितीय साहित्यिक यात्रा”

हमारे देश में प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर को “संस्कृत दिवस” के रूप में मनाया जाता है। श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षा बन्धन का पावन पर्व भी इसी दिन होता है और यह ऋषियों के स्मरण तथा पूजा और समर्पण का पर्व माना जाता है। वैदिक साहित्य में इसे “श्रावणी” कहा जाता था। इसी दिन गुरुकुलों में वेदाध्ययन कराने से पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है।संस्कृत साहित्य में योगदान देने वाली मृदुल कीर्ति जी भी इस दिन का महत्व भली-भांति समझती हैं।

आजकल देश में ही नहीं, विदेशों में भी इस दिन पर संस्कृत उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें केन्द्र तथा राज्य सरकारों का भी योगदान उल्लेखनीय है।

आज के दिन हम उनका स्मरण न करें तो यह दिवस अधूरा ही रह जाएगा क्योंकि आप आधुनिक संस्कृत की पहचान हैं। जी हां, आज मैं एक ऐसे व्यक्तित्व से आपका परिचय करवा रही हूं, जिनके विषय मे कुछ भी लिखने बोलने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं। आप न सिर्फ संस्कृत साहित्य अपितु हिंदी और ब्रजभाषा की विदुषी लेखिका डॉ. मृदुल कीर्ति जी हैं।

यूं ही कोई वट वृक्ष नहीं बन जाता, यूं ही कोई ध्रुव तारा नही बन जाता। आदरणीया मृदुल कीर्ति जी की छांव में, संस्कृत सुकून पाती है। उनकी दिशा से ही संस्कृत साहित्य मार्गदर्शन प्राप्त करता है। आप को वह लहर कहा जा सकता है जो अनायास ही न जाने कितने लोगों के लिए प्रेरणा बन गयी है। न जाने कितने सम्मानों से सम्मानित यह नाम मेरे लिए 'आदरणीय' से कहीं ऊंचा है।

यूं ही कोई वट वृक्ष नहीं बन जाता, यूं ही कोई ध्रुव तारा नही बन जाता। आदरणीया मृदुल कीर्ति जी की छांव में, संस्कृत सुकून पाती है। उनकी दिशा से ही संस्कृत साहित्य मार्गदर्शन प्राप्त करता है। आप को वह लहर कहा जा सकता है जो अनायास ही न जाने कितने लोगों के लिए प्रेरणा बन गयी है। न जाने कितने सम्मानों से सम्मानित यह नाम मेरे लिए ‘आदरणीय’ से कहीं ऊंचा है।

डॉ. मृदुल कीर्ति जी को फिजी में आयोजित, 12 वें ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ में 2023 का ‘विश्व हिंदी सम्मान’ भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रसाद जी ने दिया।

आपको उत्तर प्रदेश संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।इनके अतिरिक्त आपको भारत की प्रमुख आर्य संगोष्ठी और भारत विकास परिषद में भी सम्मानित किया जा चुका है।

आपकी पुस्तक ‘पतंजलि योग दर्शन’ का 14 मार्च 2017 को भारत के संसद भवन में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लोकार्पण किया।

सितारों की ऊंचाई कितनी भी हो, आसमान से तो कम ही होती है। ये सब सम्मान, आपको सुशोभित करते सितारे हैं तो आप इनका आसमान हैं। परंतु जैसा उनका नाम है, वैसा ही आचरण। मैंने एक बार उनसे बात करते हुए जब इन सम्मानों का ज़िक्र किया तो उन्होंने इतनी मृदुलता से जवाब दिया कि, ” भावना यह मेरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का सम्मान है।” अपने इसी मृदुल स्वभाव के कारण ही उनकी कीर्ति अक्षुण्ण है।

डॉ. मृदुल कीर्ति जी ने आर्ष वैदिक ऋषियों के प्रणीत ग्रंथों – ‘सांख्ययोग दर्शन’, ‘पतंजलि योग दर्शन’, ‘सामवेद’ ईशादि नौ उपनिषदों, ‘श्रीमद्भगवद्गीता’, ‘अष्टावक्र गीता’, ‘विवेक चूड़ामणि’ आदि ग्रंथों के मूल संस्कृत ऋचाओं का हिंदी काव्यानुवाद किया।

आपने आर्ष संस्कृत ग्रंथों की क्लिष्टता, गूढ़ अर्थ गर्भिता और मर्म गर्भिता को काव्य की सरसता, और विभिन्न छंदों में ढालकर मधुरता के साथ काव्यानुवादित करने का साहसिक कार्य किया है।

मैं ऐसा तो नहीं कह सकती कि इन ग्रंथों का इतनी गहनता, गंभीरता से अनुशीलन किसी और ने नही किया होगा। अवश्य ही हमारी भारतभूमि मनीषी महात्माओं की भूमि है और यहां समय-समय पर विद्वान विदुषी व्यक्तित्व प्रकट होते रहे और अपनी प्रतिभा, अपनी मेधा से हम जैसे लोगों का मार्गदर्शन और ज्ञानवर्धन करके हमें उपकृत करते रहे, परंतु मेरे संपर्क में संस्कृत भाषा की इतनी ज्ञानी विदुषी शख्सियत पहली बार ही आई है, जिन्होंने इन ग्रंथों को जैसे अपने अंदर धारण कर लिया है, आत्मसात कर लिया है।

मृदुल कीर्ति जी का स्वयं यह मानना है कि यह कार्य आसान नहीं था। उनका कहना है कि, “बहुत क्लिष्ट विधा होती है, जिसमें आपका अपना कुछ नहीं, उन्ही का सब होता है। इसके लिए ऋषियों के वैचारिक शरीर मे प्रवेश करना पड़ता है। उन्होंने जो कहा, जो लिखा, उसको आत्मसात करके फिर संस्कृत भाषा से छंदों का मंथन और उसे हिंदी भाषा के सीमित मीटर में लाना…..यह सब बहुत कठिन विधा है। “

मृदुल कीर्ति जी से मैंने जब भी बात की, हमेशा मैंने यह महसूस किया कि उनका व्यक्तित्व कुछ अलग है। “एक असाधारण व्यक्तित्व का इतना साधारण होना ही उसे असाधारण बना देता है।”
मेरी इस एक पंक्ति को यदि आप समझ सकें तो उनके व्यक्तित्व को जान सकेंगे। उनका अंतर्मन शुद्ध है, विचार भी उतने ही शुद्ध हैं, शायद इसीलिए ईश्वर उनसे ऐसे कार्य करवा देते हैं, जो असंभव जान पड़ते हैं।

आपने ब्रज भाषा में गीता लिखी है जबकि इस भाषा में आपने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। मैंने जब उनसे पूछा तो उनका जवाब था, “यह सच है कि मैं कभी ब्रज के आसपास भी नही गयी। जब तक आप मन, वचन और कर्म से शुद्ध नहीं होते, तब तक वासुदेव आपके हृदय में रुकेंगे ही नही, ऐसे में ग्रंथो का अनुवाद असंभव है।” वास्तव में स्वयं वासुदेव ने उनसे यह कार्य करवाया है।

मैं स्वयं को भाग्यशाली समझती हूं कि मुझे उनका सानिध्य मिला और बहुत कुछ उनसे सीख सकी। मृदुल कीर्ति जी को स्वयं भी यह पता नही होगा कि उनका एक-एक शब्द मेरे लिए क्या मायने रखता है। जब भी उनसे बात हुई हर बार ज़िंदगी की कोई नई सीख मुझे मिली। एक बार अपने काम के प्रति समर्पण भाव को लेकर बात करते हुए आपने बहुत सुंदर बात की, जो मेरे जैसे न जाने कितने लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकती है। आपका कहना है,

“काम के प्रति दृढ़ निष्ठा और पूर्वजन्म से मिली भावनाएं मेरी पहचान हैं, उनको मारने का अर्थ है कि मैंने प्रकृति के प्रति कुठाराघात किया क्योंकि प्रकृति ने उसके बीज तो हमारे अंदर दिए हैं।”

मृदुल कीर्ति जी का सफर उतना आसान नहीं था, जितना देखने मे लगता है क्योंकि वे इतनी शांत और सौम्य व्यक्तित्व की हैं कि मैंने आज तक कभी भी उन्हें अधीर होते नहीं देखा। इतना संतुलित व्यक्तित्व होना, शायद बहुत मुश्किल है। कहते हैं न कि अपने नाम को सार्थक बहुत कम लोग कर पाते हैं, परंतु आपने यह किया। मृदुल – कीर्ति की पताका आपने फहराई परंतु उनका सफर आसान रहा हो, यह कदापि नहीं कहा जा सकता। उन्होंने स्वयं मेरे से एक बार बात करते हुए कहा,

“उड़ान भरने का अर्थ है कि मेरे पंखों में पत्थर बंधे थे। यह न सोचना कि सब कुछ बहुत सरल था।”

मैंने आज तक किसी भी मंच से उन्हें अपने जीवन सफर के बारे में कुछ भी कहते नहीं सुना। जब इसका कारण मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने इतने सुंदर शब्द कहे जो मेरी तरह आप सबके लिए भी ज़िंदगी जीने की एक कला हो सकते हैं। आपका कहना है,

“मेरा लक्ष्य एकांतिक नहीं आत्यंतिक है। मैं एकांतिक दुख और पीर की बात नहीं करती। मैं अपनी बात नहीं करती, मैं वह बात करती हूं जो त्रिकाल में तुम्हारी पीड़ा को हरे, इसीलिए मुझे यह ग्रंथ पसंद हैं।”

मृदुल कीर्ति जी के लिए यह कहने में मुझे बिल्कुल भी संकोच नही है कि आपने संस्कृत को कुछ इस तरह से तराश दिया है कि संस्कृत अब अपने चिर यौवन को प्राप्त कर चुकी है। जिस तरह से आपने संस्कृत के आर्ष ग्रंथों का न सिर्फ हिंदी अपितु ब्रजभाषा में भी काव्यानुवाद किया, उसके कारण हम कह सकते हैं कि आपने आधुनिक साहित्य को उसके मूल से परिचित करवाया। आपने संस्कृत की जड़ों को जीवन की ऊष्मा देने का महती कार्य किया है।

मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह जी से मुलाक़ात

मृदुल कीर्ति

4 thoughts on ““संस्कृत दिवस: मृदुल कीर्ति जी की अद्वितीय साहित्यिक यात्रा”

  1. All lovers of Sanskrit and Hindi are gratefully obliged to respected Sister Mridul Kirti for such wonderful lifelong dedication in translating the great publications of Sanskrit literature. My humble salutations to her. May Master bless her and family a long, healthy and fulfilling life. Heartful Pranams.

  2. Read your article about Mridul keerti ji… She is not one person… She appears to be a Banyan tree with several other trees arising from the trunk of the parent Banyan tree. 👍how can i read some of her work in hindi

  3. प्रणाम दीदी
    अद्भुत अनुपम उपलब्धियां
    ऊंचाई की मीनार
    शब्दों से परे ज्ञान की पराकाष्ठा
    अप्रतिम व्यक्तित्व शत‌-शत‌ नमन
    आपकी साहित्यिक यात्रा की विशेष ऊर्जा की
    लहरों का स्पंदन हृदय को आह्लादित कर देता है।
    हार्दिक बधाई
    चंदा

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