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भारतीय त्योहारों और ऋषियों की परंपरा का वैज्ञानिक आधार

– डॉ. नारदी जगदीश पारेख

“आदिम संस्कृती का द्योतक,
भारत मेरा देश है।
आर्ष दृष्टा ऋषियों का पूजक,
भारत मेरा देश है।

वेद पुराणों का सर्जक,
भारत मेरा देश है।
सारे विश्व का पथ प्रदर्शक
भारत मेरा देश है।”

ऋषियों की दीर्घ दृष्टि और भारतीय संस्कृति

हमारे दीर्घ दृष्टा ऋषियों ने पुस्तक पढ़कर नहीं परंतु प्रकृति को आत्मसात करके, समाधि के द्वारा सर्वेश्वर को पहचान कर जो निष्कर्ष निकाला है, उसे जनमन तक पहुंचाने के लिए, व्यवहारिक रूप बनाने के लिए त्योहार और लोक-परंपरा का आयोजन किया है, जहां धर्म विज्ञान और स्वास्थ्य का त्रिवेणी संगम पाया जाता है। उन्होंने ऋतुओं के मिजाज को परखा है। भारत जैसे विशाल देश की धरा के अनुकूल पहनावा, भाषा और परंपराओं की विविधता का सृजन किया है। जनमन की भलाई को नजर में रखकर विज्ञान को धर्म का और परंपरा का रूप देकर लोगों तक पहुंचाया है। 

ऋषियों का योगदान: प्रकृति और स्वास्थ्य का संगम

“वसुधैव कुटुंबकम” की भावना को छोटी-छोटी क्रिया द्वारा जीवन से जोड़ दिया है। सुबह उठकर सूर्य को अर्घ्य दे दो। जमीन पर पैर रखने के पहले धरती को नमन करो। नहा के तुलसी के पौधे में पानी दो, खाते वक्त पहला निवाला धरती का। दूसरा गाय का, तीसरा कौवे का।चीटियों को और जलचर जीवों को खिलाने की भी महिमा बताई है। कितनी उद्दात भावना!

ऋषियों द्वारा ऋतुओं के अनुसार जीवनशैली का निर्माण

हर एक प्रदेश की  भूमि,उसकी फसल, और आबोहवा के अनुसार रहन-सहन और खुराक की परंपरा बनाई है। यह परंपरा सांस्कृतिक धार्मिक और पारिवारिक रहती है। यह संस्कृति और परंपरा मानव मात्र का जीवन सुसंस्कृत बनाती है! जीवन को आनंदमय रखती है।

ऋषियों की परंपराओं से प्रेरित त्योहारों की महिमा

अगर हम अपने त्योहारों की बात करें तो ये हमारे शुष्क जीवन में ऊर्जा भरते हैं। उत्तरायण के समय हवा का रुख बदलता है, और इसे पहचानने के लिए संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पतंग उड़ाने की मौज के साथ हवा के रुख को पहचाना जाता है। सर्दी की ऋतु में तिल और गुड़ का सेवन भी किया जाता है। जब ऋतुओं का संधिकाल होता है, तो संसर्गजन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इन बीमारियों के जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए होली का त्योहार मनाया जाता है। होली के धुएं से संसर्गजन्य कीटाणुओं का नाश होता है। सर्दी में कफ से बचने के लिए धानी, चना और खजूर का सेवन किया जाता है। कितना आनंदमय इलाज तय किया गया है! हिंदू नव वर्ष और गुड़ी पड़वा के दिन नीम पत्ते का रस पीना लाभकारी होता है। यह शरीर को प्रखर ताप से बचाता है। यदि आप पूरा चैत्र मास नीम पत्ते का रस लें, तो यह आपको सालभर निरोगी रखेगा। रामनवमी के दिन दिया जाने वाला पंजरी पाक भी हर प्रकार से शीतलता प्रदान करता है।

आजकल हम प्रोबायोटिक दही कहते हैं मगर आपको पता है कि पूजा में जो पंचामृत बनाते हैं वह सबसे ज्यादा असर कारक प्रोबायोटिक है। बिना पूजा के भी आप रोज इसका सेवन करो, फिर आपके शरीर में फायदे देखो।

ऋषियों द्वारा ऋतुओं के अनुसार जीवनशैली का निर्माण
 
वर्षा ऋतु में पाचन शक्ति मंद हो जाती है। हरी सब्जियों में जीव जंतु रहते हैं इसलिए  साढ़े चार महीने एक समय भोजन लेने का व्रत होना चाहिए और हरी सब्जियां खाना भी मना रहता है, ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक है, यह करके देखिए। बाद में  पितृपक्ष में कौओ को खाना देने का रिवाज है। मगर उसके पीछे जीव दया और पर्यावरण का कितना बड़ा हेतु है। कौवे की मादा भाद्रपद में अंडे रखती है  और बच्चों के लालन-पालन के लिए ज्यादा खुराक की जरूरत रहती है, दूसरी ओर निरंतर प्राण वायु देने वाले बरगद और पीपल  के पेड़ जमीन में बीज बोकर नहीं उगा सकते। वह तो जब कौवा उसका फल खाता है और उसकी विस्टा में उसका बीज निकलता है तभी पनपता है।

ऋषियों की पर्यावरण के प्रति जागरूकता

देखी अपनी दीर्घ दृष्टा ऋषियों की परंपरा, जो पर्यावरण का भी ध्यान रखती है। उसके बाद आश्विन मास में आने वाली शरद ऋतु, जिसकी चांदनी मनुष्यो के लिए लाभदायक है। इसका सेवन करने के लिए चांदनी में टहलकर पसीना बहाना पड़ता है जिसके लिए गरबा डांडिया, माताजी के मंडप में दर्शन के लिए लाइन में खड़ा रहना, जैसे आयोजन किये जाते है। जिससे आप शरद पूनम की चांदनी का लाभ ले सको। आयुर्वेद में शरद की चांदनी में रखी हुई जड़ी बूटियों का ज्यादा ही महत्व है। मगर आपके लिए एसिडिटी का मीठा इलाज बताऊं? शरद पूनम की रात को पानी भरी एक थाली में एक बड़े बर्तन में खड़ी शक्कर सफेद पतला वस्त्र ऊपर बांध के रख दो पूरी रात उस चांदनी में रखी हुई वह खड़ी शक्कर जब भी एसिडिटी हो एक चम्मच खा लेने से राहत हो जाएगी। गर्मी के लिए भी इसका सेवन लाभदायक है।जब वर्षा ऋतु में हल्की खुराक ली जाती है, उसके बाद आने वाली ठंड की ऋतु के लिए पाचन-तंत्र को तैयार करना पड़ता है। इस तैयारी के लिए दिवाली में भांति-भांति के व्यंजन बनाते हैं, जिससे कि ठंड की ऋतु के पौष्टिक व्यंजन के लिए हमारा पाचन-तंत्र तैयार हो जाए। वर्षा ऋतु के बाद गंदगी के कारण जो मच्छर और जीव जंतु का उपद्रव होता है उसे पटाखों के धुएं से भगाया जाता है। इससे भी बड़ी महिमा हवन के धुएं की है। गीता में भी कहा है कि –

“अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः”।

हवन और यज्ञ: ऋषियों द्वारा विज्ञान की प्रस्तुति

यज्ञ से वर्षा होती है। जब कभी वर्षा नहीं होती है तब यह उपाय होते हुए हमने देखा है। इसका विज्ञान समझिए। आपके घर में जब मिर्ची का छौंका लगता है तब पूरा घर खांसता है, एक मिर्ची धुएं के द्वारा कितने लोगों तक पहुंचती है। ऐसे ही हवन के द्वारा इसमें जो भी आहुति करते हैं वह अनेक सूक्ष्म जीवों तक पहुंचती है। इसमें अगर जड़ी-बूटियों का हवन करते हैं तो आप कई बीमारियों से निजात पा सकते हैं। आपको पता है खैर का वृक्ष मंगल ग्रह का प्रकाश सबसे ज्यादा ग्रहण कर सकता है, इसलिए अगर आपको रक्त विकार की कोई भी बीमारी हो तो रोज खैर के वृक्ष का हवन करें आपकी बीमारी बिना कोई दवा लिए खत्म हो जाती है। ऐसे ही खाखरा का वृक्ष चंद्र का प्रकाश ग्रहण करता है जिसके नीचे जो शरारती बालक होते हैं, उन्हें बिठाओ वह शांत होता है। अगर बिच्छू काटता है तो गोंडा का पान हाथ में मसल दो तो जहर निकलता जाता है। एक अस्थमा का उपाय भी है, जिसमें दुरवा को मधु मे डुबो कर हजार पत्ती का हवन करो। यह रोज करने से अस्थमा दूर होता है।

तो यह है अपने त्योहारों का आयोजन और ऋषियों की परंपरा जिसमें तन और मन के स्वास्थ्य का विचार किया जाता है। इनकी बातों की गहराई को तो पंडित जानते हैं, मगर जो कुछ सीख कर बताने का नम्र प्रयास किया है उसमें कोई त्रुटि हो तो क्षमा करिएगा। मगर यह संस्कृति और परंपरा मनुष्य के जीवन की थकान दूर करके तरो ताजा रखती है। इन सब परंपराओं को देखकर अपने ऋषियों के समक्ष हमारा मस्तक नत हो जाता है।

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