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टूटता पिघलता हिमालय और सूखती गंगा

भारत की धरती पर दो ऐसे स्थल हैं जो न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखते हैं – गंगा नदी और हिमालय पर्वत। ये दोनों भारत की आत्मा और संस्कृति के स्तंभ हैं, जो सदियों से लोगों को आकर्षित करते हैं।

गंगा नदी:

गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। इसका उद्गम हिमालय की गंगोत्री से होता है और यह नदी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती है। गंगा नदी के किनारे कई पवित्र स्थल हैं, जिनमें वाराणसी, हरिद्वार, और प्रयागराज प्रमुख हैं।

हिमालय पर्वत:

हिमालय पर्वत विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है, जो भारत के उत्तर में स्थित है। इसकी ऊंची चोटियाँ, जैसे कि माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा, और नंदा देवी, विश्वभर के पर्वतारोहियों को आकर्षित करती हैं। हिमालय पर्वत के क्षेत्र में कई पवित्र स्थल हैं, जिनमें अमरनाथ, केदारनाथ, और बद्रीनाथ प्रमुख हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

गंगा और हिमालय दोनों ही धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। गंगा नदी को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, और इसके जल में स्नान करना पुण्य माना जाता है। हिमालय पर्वत को भी हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, और इसकी चोटियों पर कई पवित्र मंदिर और तीर्थ स्थल हैं।

निश्चित रूप से गंगा और हिमालय भारत की आत्मा और संस्कृति के स्तंभ हैं। ये दोनों न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखते हैं। ये दोनों भारत की पहचान और गरिमा के प्रतीक हैं।

परंतु दुर्भाग्यवश भूमि के भगवान कहे जाने वाले हिमालय और पवित्र नदी गंगा की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। हिमालय की पिघलती चोटियाँ और गंगा की सूखती धारा हमें पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करती हैं।

हिमालय की स्थिति

हिमालय, जो भारत की सीमा की रक्षा करता है और जलवायु को नियंत्रित करता है, आज खतरे में है। हिमालय की चोटियों पर बर्फ पिघलने से जल स्तर बढ़ रहा है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा, हिमालय की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं की विविधता भी खतरे में है।

गंगा की स्थिति –

गंगा, जो भारत की जीवनधारा मानी जाती है, आज प्रदूषण और जल संकट का शिकार हो रही है। गंगा की धारा सूखने से जल जीवन का अस्तित्व खतरे में है। इसके अलावा, गंगा में प्रदूषण बढ़ने से जलीय जीवन भी खतरे में है।

कारण

हिमालय और गंगा की इस स्थिति के कई कारण हैं:

  1. जलवायु परिवर्तन
  2. प्रदूषण
  3. वनस्पति विनाश
  4. जल दोहन
  5. औद्योगिकीकरण

समाधान

हिमालय और गंगा की स्थिति में सुधार करने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे:

  1. जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए ऊर्जा संरक्षण
  2. प्रदूषण कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग
  3. वनस्पति संरक्षण और वृक्षारोपण
  4. जल संचयन और जल प्रबंधन
  5. औद्योगिकीकरण को नियंत्रित करना।

इन सब बातों पर जल्दी किसी का ध्यान नहीं जाता क्योंकि अभी उसकी भयावह स्थिति हम समझ नही पा रहे, लेकिन कुछ लोग हैं जो काफी समय से इस प्रयास में लगे हैं कि किस तरह हिमालय और पवित्र गंगा नदी की स्थिति को सुधारा जा सके और हम फिर पहले की स्थिति में ही पहुंच सकें, जब यह सब समस्याएं थीं ही नहीं।

हमारे साथ हैं “देवभूमि” उत्तराखंड से विधायक किशोर उपाध्याय जी
आप उत्तराखंड की टिहरी विधानसभा सीट से तीसरी
बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। आप उत्तराखंड सरकार में मंत्री भी रहे हैं और आपकी पहचान है पर्यावरणविद की। आपने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ी है जो अभी भी जारी है। किशोर जी ने जम्मू कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बहुत कार्य किये। आप कई आंदोलनों से भी जुड़े रहे। आपने वनाधिकारों पर, हिमालय, गंगा और जंगली जानवरों आदि के लिए बहुत कुछ किया।

जब वे यह कहते हैं कि “कैलाश में बर्फ ही न रही तो शिव जी कहाँ वास करेंगे ?” तो उनकी चिंता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। आपने जलवायु परिवर्तन रोकने, प्रदूषण कम करने, वनस्पति संरक्षण करने और जल संचयन करने के लिए बहुत सारे कार्य किये हैं। आपने न सिर्फ उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड बल्कि पूरे देश से राजनीति की। आपका मिशन है कि हम हिमालय और गंगा की रक्षा के लिए एकजुट हो और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करें।

धरती पर स्वर्ग जैसी खूबसूरती का प्रतीक माने जाने वाले कश्मीर से हमारे साथ हैं, डॉ. अग्निशेखर जी। आप समकालीन हिंदी कविता के प्रतिष्ठित कवि हैं और निर्वासन-चेतना और संवेदना को केन्द्रीयता देने वाले प्रमुख कवि हैं।

आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी विशेष रूप से चर्चित और जम्मू-कश्मीर की राज्य अकादमी से पुरस्कृत कविता संग्रह ‘जवाहर टनल’ का उल्लेख अवश्य करना चाहूंगी, जिसका अंग्रेजी, तमिल, गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ आदि कई भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुका है।

आपको केंद्रीय हिंदी निदेशालय का ‘हिंदी लेखक पुरस्कार’ , ‘गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार’ ,’सूत्र सम्मान’, जम्मू कश्मीर राज्य अकादमी का सर्वश्रेष्ठ पुस्तक सम्मान, ‘साहित्य शताब्दी सम्मान’, आदि अनेकों सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। आपकी किताबें विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाई जाती हैं।

आप ‘पनुन कश्मीर’ के संयोजक हैं और निर्वासित कश्मीरी पंडितों की आवाज़ आपने देश-विदेश में उठाई है और तीन दशकों से भी अधिक समय से वे इस कार्य मे लगे हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी आपकी सक्रिय भूमिका रही है। अमेरिका, हॉलैंड, पेरिस, लंदन, हेग आदि में निर्वासितों के मुद्दों पर आपने अनेकों प्रस्तुतियां दी हैं।

अग्निशेखर जी ने धरातल स्तर पर भी काफी काम किया है और आपकी पहचान एक लोकप्रिय साहित्यकार के रूप में तो है ही, उसके साथ ही एक विचारक और चिंतक के रूप में भी वे हमारे सामने आते हैं।

कश्मीर और उत्तराखंड दोनों ही प्राकृतिक सौंदर्य के दो अद्वितीय स्थल हैं। दोनों ही समृध्द सांस्कृतिक धरोहर के उदाहरण हैं। इसलिए इन दोनों स्थानों के विद्वान वक्ताओं के साथ हुए पूरे संवाद को ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर सुनें।

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मृदुल कीर्ति

One thought on “टूटता पिघलता हिमालय और सूखती गंगा

  1. अद्भुत चर्चा हिमालय और गंगा की – किशोर जी और अग्निशेखर जी के अमूल्य उद्गारों की जिन्हें भावना जी ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जोड़कर गुथा जो अमूल्य है। इस वार्ता को विस्तृत रूप देकर दस्तावेज़ के स्वरूप सरकार को और देश विदेश में बसे सनातन धर्म के प्रेमियों तक पहुँचाना चाहिए।

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