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विराट अनुभूति : डॉक्टरी जीवन का पहला अध्याय

विराट अनुभूति एक ऐसी अवस्था है जहां हम स्वयं को विश्व के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। यह एक ऐसी पवित्र और दिव्य अनुभूति है, जिसमें हम अपने छोटे-छोटे संकटों और चिंताओं को भूलकर जीवन की विशालता और सुंदरता को देखते हैं।

सेवा और सहयोग से हम अपने आप को दूसरों के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। ऐसा ही भाव हमारे चुभन परिवार के वरिष्ठ सदस्य डॉ. बी. सी. गुप्ता जी अपने मन मे रखते हैं, तभी उनका जीवन विराट अनुभूतियों की कहानियों से भरा हुआ है।

उनका लेखन, उनकी पेंटिंग्स…..हर जगह उन्हें ऐसी ही अनुभूतियां हुईं और उन्होंने अपने कुछ संस्मरण आज हमारे साथ साझा किए। उनके साथ हुए संवाद को तो आप “चुभन पॉडकास्ट” में सुन ही रहे होंगे।

उनकी विराट अनुभूति की एक झलक देखिए –

एक विराट अनुभूति

वर्ष 1953-54

मैं एम.बी.बी.एस. के अंतिम वर्ष का एक छात्र। अस्पताल, अस्पताल का मेटरनिटी विभाग, विभाग का ड्यूटी रूम।

मैं चौबीस घण्टे की एमरजेंसी ड्यूटी पर।

कम से कम दो दर्जन बच्चे पैदा करवाने का प्रैक्टिकल तजुर्बा प्राप्त हो जाने तक। अभी आकर डयूटी शुरू की है।

सूटकेस से कपड़े इत्यादि निकाल कर अलमारी में लगा दिये हैं। बहुत नर्वस और बेचैन सा हूँ। कारण ???

अपने उथले और छितरे किताबी ज्ञान पर मुझे स्वयं भरोसा नहीं।

समय, दोपहर का एक बज कर कुछ मिनट।

हमारे हॉस्टल के मैस का महाराज टिफिन कैरियर में लंच रख कर जा चुका है।

सोचता हूँ खाना खा लें और टिफिन कैरियर खोलता हूं –

दरवाजे पर दस्तक खट-खट-खट-!!

“कम इन”-

भडभड़ाते हुए मेटरनिटी वार्ड की सिस्टर-इन-चार्ज का प्रवेश।

“यस सिस्टर ?”

“क्विक डॉक्टर। जच्चा ने वार्ड में पलंग पर ही बच्चा डिलिवर कर दिया है…..

हरी अप कम टू द वार्ड।”

सुन कर मेरे हाथ-पैर शिथिल-गला एकदम सूखा सा-और में स्वयं एक अजीब सी प्रसव पीड़ा से पीड़ित, भागता हुआ मेटरनिटी वार्ड में दाखिल।

लायसोल की महक के साथ वार्ड का उदास वातावरण। एक जूनियर नर्स स्क्रब करने में मेरी सहायता कर, स्क्रीन से घिरे एक पलंग के निकट मुझे छोड़कर चली जाती है। स्क्रीन के पीछे से सिस्टर-इन-चार्ज, “आइये डॉक्टर…. कम इनसाइड। जच्चा की टाँगों के बीच ‘मिकोनियम में सना हुआ एक भद्दा सा नवजात शिशु आँखें बन्द, बस हाड़-मॉस का लुंज-पुंज सा एक लोथड़ा ।”

सिस्टर द्वारा शिशु का निरीक्षण और मैं मूढ़ सा खड़ा देखता हूँ। “मरा पैदा हुआ है” सिस्टर के शब्द सुनकर माँ फूट-फूट कर रो पड़ती है। उसके दुख में मैं भी हिस्सेदार… एक संतान के वियोग में और दूसरा ज्ञान के अभाव में। तभी सिस्टर का स्वर मेरे भटकते मन को कर्तव्य के संसार में वापस लाता है- “डाक्टर, आप अंबिलायकल कार्ड (नाल) काट कर, शिशु की बॉडी आपरेशन-रूम एनेक्से में डालकर जल्दी वापस आइये और मैं इस बीच प्लेसेंटा डिलिवर कराती हूँ।”

नर्स के निर्देशानुसार मैं अपने डाक्टरी जीवन का पहला अंबिलायकल कार्ड काटने की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पाता हूँ… एक अनोखा सा स्फुरण ।

शिशु की उस नन्ही सी, घिनौनी और गिलगिली सी लाश को एक तौलिया में लपेट कर, मैं ऑपरेशन थियेटर की ओर लम्बी सी कॉरिडोर में, तेजी से बढ़ते मेरे कदम।

यकायक विचित्र सा अहसास-ऐसा लगा मानो तौलिया के अंदर एक क्षण के लिए कुछ रंग सा गया। मेरे बढ़ते कदम रुकते हैं और जिज्ञासावश मेरी नजर शिशु के चेहरे पर- सब कुछ वैसा ही… पहले जैसा ही निस्तेज और निश्चल-जीवन के लक्षण विहीन।

वहम था. भ्रम था। विशफुल शिकिंग ।।

आपरेशन थियेटर से जुडा एक कमरा… ओ०टी० ऐनेक्से।

एकदम सन्नाटा।

दीवार पर टँगी घड़ी… टिक टिक टिक टिक। शिशु की हलकी सी बॉडी को एक मेज पर धीरे से रख वापस जाने के लिए पलटता हूँ। परन्तु कोई अदृष्य शक्ति मुझे वापस उस लाश के पास बरबस ही ला खड़ा करती है। तौलिया हटा कर मेरी नजर शिशु के वक्ष पर- शायद कोई साँस… शायद जीवन का कोई लक्षण ।। और तभी शिशु के सीने पर एक क्षीण सी सिहरन- क्या यह भी मेरा भ्रम था कल्पना थी ? ! परन्तु तभी एक बार फिर वही सिहरन । चट से स्टेथोस्कोप( stethoscope) शिशु के वक्ष पर और मेरे दोनों कान पूर्ण रूप से एकाग्र चित्त, तल्लीन। बेचैनी, बेकली और बेसब्री के कुछ क्षणों के बाद-

मेरे कानों को लगा जैसे दूर किसी सुरंग से किसी के पदचापों की आवाज… लब-ढप….. लब-ढप !!

क्या यह भी खुशी से झूमते, मेरे कल्पनाधीन मन और कानों का भ्रम था ?.. अथवा यह प्राणों के पहले पदचापों के आगमन की सूचना थी ?

आशा-निराशा मिश्रित एक बौखलाहट अपने सीमित ज्ञान के परे कुछ मदद माँगने, शिशु को इस हालत में छोड़कर मैं कहीं नहीं जा सकता। हे ईश्वर ! मैं क्या करूँ मुझे क्या करना चाहिये ? और तभी मेरी भटकती नज़र ऑक्सीजन सिलेंडर पर। फुर्ती से उठ कर बच्चे को ऑक्सीजन लगाता हूँ- एक मिनट… दो मिनट- मुझे ऐसा लगा कि बच्चे की त्वचा हलकी गुलाबी सी हो चली थी। हे प्रभो ! काश यह मेरा भ्रम न हो। अपने माथे का पसीना पोछता हूँ।

आश्चर्य !!…. पसीना ? कमरा तो एयर कंडीशण्ड ओ गॉड !! बच्चे को तो माँ के पेट के अंदर जैसा तापमान चाहिए। ए०सी० का स्विच तलाशती मेरी नज़र रुई के बंडल पर रुक जाती है। झपट कर उस नन्हे से शरीर को कॉटन से लपेट देता हूँ।

मेटरनिटी वार्ड की सिस्टर-इन-चार्ज का प्रवेश’

“अरे । आप यहाँ क्या कर रहे हैं, डॉक्टर ? मैं वार्ड में”-

“सिस्टर ! मुझे लगता है इस बच्चे में “लाइफ” है… प्लीज़ इनफॉर्म द रेजिडेंट सर्जिकल ऑफिसर आन ड्यूटी।” सिस्टर आर०एस०ओ० को सूचित कर, वापस। “सिस्टर ! प्लीज़ टैल मी… मुझे और क्या करना चाहिये।”

“अपने हाथ की छोटी उंगली में गॉज’ लपेट कर बच्चे का हलक साफ करिये।”

“डन! व्हाट नैक्स्ट, सिस्टर ?”

“बच्चे की बॉडी हलके गुनगुने पानी में डुबाइये… ध्यान रहे बच्चे का सिर पानी की सतह से ऊपर।”

आशा-निराशा के कुछ क्षण और-

“लगता है कोशिश बेकार है, डॉक्टर।”

“ओ नो, सिस्टर ! लैट अस ट्राइ सम मोर !!”

आर०एस०ओ० का प्रवेश-

“गुड ईवनिंग, मैम ! मेरा अनुमान है, देयर इज लाइफ इन दिस ‘बॉर्न डैड’ बेबी।”

आर०एस०ओ० द्वारा निरीक्षण- सस्पेंस के कुछ क्षण और-

“यस, यू आर राइट, यंग मैन… लेकिन यह बेबी शायद सरवाइव नहीं कर पायेगा…. बट कीप ट्राइंग…. इंजेक्सन कोरामीन’ इन्टू द अंबिलायकल वेन….. ऑक्सीजन इंटरमिटॅली एण्ट माउथ-टु-माउथ रैस्पिरेशन इफ नैसेसरी….. एण्ड कीप हिम वार्म।”

“आइ विल कम एगेन टु चैक द बेबीज़ प्रोग्रेस।”

अब सारे भ्रम टूट चुके थे….. सारे संशय छितरा गये, एक नई स्फूर्ति और जोश के साथ मैडम के बताये आर्डर्स सम्पन्न करता हूँ। यस आइ विल कीप ट्राइंग टिल गॉड गिव्ज हिम ऐनादर चान्स ।

प्रार्थनाओं के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था मेरे पास। आँखें बंद कर “ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।”…. मंत्र पाठ में तल्लीन।

मुझे ऐसा लगा कि मैं सो रहा हूँ और कहीं दूर कोई नवजात शिशु रो रहा है-

एक झटके के साथ मैं चौकन्ना… नज़र बच्चे पर यकायक बच्चे का वक्ष एक बार अंदर को सिकुड़ा और फैला. और फैलने के साथ ही एक रूदन स्वर।

मेरे हृदय में खुशी की फुहारें फूट पड़ीं, और वहाँ पर्याप्त स्थान न पाकर मेरी आँखों में आँसू बन कर बह चली।

डॉक्टर का दूसरा चक्कर-

“दे बेबी क्राइड मैडम… माइ बेबी क्राइड जस्ट नाउ… और अब वो नियमित रूप से साँस भी ले रहा है….. देखिये. देखिये !!”

“यस इट्स अ मिरेकिल, यंग मैन। यू कैन गिव इट सम सेलाइन वाटर बाइ माउथ नाउ।”

आर.ऐस.ओ. दरवाजे तक जाकर पलटते हुए, “गुड वर्क! यू डिज़र्व ऑल द केडिट फॉर वर्किंग सो हार्ड ऑन योर बेबी।”

सुनकर मुझे अच्छा लगा क्योंकि डॉक्टर ने उसे ‘मेरा बच्चा कहा- मुझे लगा कि मेरे व्यक्तित्व में कुछ अधूरापन था जो एक विराट अनुभूति के हृदयंगम से सम्पूर्ण हो गया।

किसी चूजे की चोंच के समान मुँह में, ड्रापर से जब मैंने सेलाइन वॉटर की कुछ बूँदें टपकाई तो बच्चे के होंठ हिले और पानी निगलने की
प्रक्रिया में उसके कंठ की हड्डी ऊपर-नीचे हुई। कुछ बूँदें और। शायद कुछ ही सैकिन्ड बीते होंगे कि बच्चे ने पहली बार अपनी आँखे खोली और टुकुर-टुकुर मेरे चेहरे को निहारने लगा.. मानों मुझसे कुछ कह रहा हो। और मन-ही-मन में बोला था.- थैंक्यू….. थैंक्यू माइ लिटिल बेबी फॉर योर गिफ्ट ऑव लव। यूँ ही बैठे बैठे मैं उसे निहारता रहा… उससे बातें करता रहा… पता नहीं कितनी देर तक। शायद मेरा अस्तित्व एक लंबे अंतरात के लिए पृथ्वी के समय-चक्र से छिटक कर ‘स्पेस’ में मंडराता रहा, जहाँ बस मैं था और मेरे साथ एक नन्ही सी आत्मा।

डॉक्टर का एक और चक्कर- “हाउ इज योर बेबी नाउ ? लैट अस सी।” डॉक्टर द्वारा निरीक्षण-

मैं एक ओर खड़ा ऐसे देखता रहा जैसे कोई मूर्तिकार किसी विशेषज्ञ को अपनी पहली कलाकृति दिखा रहा हो। “गुड! आप अब बच्चे को इसकी माँ के पास पहुँचा सकते हैं… ये अब अपनी माँ का दूध पी सकता है।”

उस अर्ध विकसित पुष्प को अपने सीने से चिपटाए जब मैं मेटरनिटी वार्ड में पहुंचा तो रात्रि का दस बजा था।

माँ पलंग पर बैठी अपनी मृत संतान के लिए आँसू बहा रही थी। पदचाप सुन उसने मेरी ओर देखा।

“लीजिये ! आपका बच्चा !” अविश्वास स्वर, “लेकिन….. लेकिन वो तो मरा और माँ का कण्ठ अवरुद्ध । “हाँ, लेकिन भगवान ने उसे नया जीवन दिया है….लीजिए. इसे अपना दूध पिलाइये” और मैंने हौले से माँ की प्यार रूपी समुद्र-शैया पर उस कमल पुष्प को लिटा दिया और दो शरीर और आत्माएं आपस में मिलकर एकीभूत हो गई।

थके बोझिल कदमों से जब मैं अपने कमरे में वापिस आया, तब रात हो चुकी थी और टिफिन के डिब्बों में पड़ा मेरा लंच मुझे देख गर्व से मुस्करा रहा था।

आज इतने वर्षों बाद सोचता हूँ कि टिकली अब…..सॉरी !! आपको बताना भूल गया था. यही नाम तो रखा था उसका, ‘टिकली’। पता नहीं क्यों. मुझे ऐसा लगता है कि एक दिन… कभी न कभी टिकली, यकायक मेरे सामने आ खड़ी होगी और अपने माथे की टिकली दिखा कर कहेगी, “पहचाना डॉक्टर” !!?

उपसंहार – डॉ. बी. सी. गुप्ता जी की विराट अनुभूति की कहानी एक प्रेरणादायक और दिव्य यात्रा है, जो हमें जीवन की विशालता और सुंदरता को देखने के लिए प्रेरित करती है। उनका जीवन सेवा, सहयोग और प्रेम की भावना से भरा हुआ है, जो उन्हें विराट अनुभूति की अवस्था मे ले जाता है।

फीचर इमेज : सौजन्य से डॉ. बी. सी.गुप्ता जी

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