“ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।”
-फिराक़ गोरखपुरी
वास्तव में ज़िंदगी होती तो चार ही दिन की है और चार दिन होते भी काफी हैं,परंतु हममें से ज़्यादातर लोग उसमें से दो दिन तो यह सोचने में गुज़ार देते हैं कि हमें करना क्या है ? बाकी बचे दो दिन इसमें निकल जाते हैं कि हमें परिस्थितियां नहीं अनुकूल मिलीं, नहीं तो हम पता नहीं क्या- क्या कर जाते परंतु जो लोग ज़िंदगी में कुछ हासिल करते हैं और किसी मुक़ाम तक पहुंचते हैं, उनके जीवन को ज़रा गौर से देखिए, अपनी राह में आई हर विपरीत परिस्थिति का सामना उन्होंने बहुत सकारात्मकता से किया और उन विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में कर के ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल किया।
आज हम जिनकी बात करेंगे वे हैं ‘मैंगो मैन’ के नाम से दुनिया भर में मशहूर ‘पद्मश्री’ से सम्मानित कलीमुल्लाह खां साहब।साथ ही हम आपको एक ख़ास पेड़ के बारे में बताएंगे कि कैसे कलीमुल्लाह खां साहब ने एक ही पेड़ पर नई ग्राफ्टिंग तकनीक के द्वारा आम की लगभग 300 से अधिक किस्मों को उगाया है।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पद्मश्री सम्मान प्राप्त करते हुए कलीमुल्लाह खान साहब।
हम लोग तो पूरा जीवन भर आम के आम इंसान ही रह जाते हैं, परंतु उत्तर प्रदेश के लखनऊ के निकट मलीहाबाद में रहने वाले कलीमुल्लाह खां साहब ने ‘आम’ से ही स्वयं को ख़ास बना लिया।आपने एक ऐसा आम का पेड़ तैयार किया है, जिसे दूर से देखने पर तो वह पेड़ ही दिखेगा, परंतु उन्होंने बताया कि अगर करीब से देखा जाए तो वह एक बाग दिखाई देगा।उन्होंने कहा कि यह एक पेड़ भी है, बाग भी है और दुनिया का आमों का कॉलेज भी है।उन्होंने एक पेड़ पर 25000 आम लगाए हैं, जो अलग-अलग किस्मों के हैं।आपके अनुसार मलीहाबाद की अब्दुल्ला नर्सरी में जो यह पेड़ है, वह दुनिया मे आमों का कॉलेज है, परंतु खां साहब से बात करके ऐसा लगता है कि वे स्वयं में ही एक संस्था हैं, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
उनके इस हुनर के लिए ही उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया जा चुका है और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आपको ‘उद्यान पंडित’ का सम्मान भी मिल चुका है।इसके अलावा भी वे कई सम्मानों से सम्मानित किए जा चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के साथ।
कोरोना महामारी में अपनी जान गंवाने वाले डॉक्टरों और पुलिस वालों को भी आपने अपने अंदाज में श्रद्धांजलि दी है और कोरोना वारियर्स के नाम पर आमों के नाम रखे क्योंकि उनका कहना है कि ऐसे डॉक्टरों, जिन्होंने हम सभी की जान बचाई परंतु खुद अपना जीवन दे दिया, उनका नाम रहती दुनिया तक जिंदा रहना चाहिए।
आपसे मैंने अपने पॉडकास्ट में जितनी भी बात की तो उससे मुझे ऐसा लगा कि इतने हुनरमंद होने के अलावा वे एक बहुत ही अच्छा दिल भी रखते हैं।दुनिया में अमन चैन कायम रहे, इसके लिए उन्होंने बहुत सी बातें कीं।उनके अनुसार दुनिया ने हर क्षेत्र में बहुत तरक्की की है लेकिन सच्चाई यह भी है कि तबाही के मामले में भी हमने बहुत तरक्की की है, जो गलत है।हिरोशिमा नागासाकी का भी आपने ज़िक्र किया, जिसके कारण आज भी वहां बच्चे असामान्य पैदा हो रहे हैं और घास तक नहीं उगती है।उनके अनुसार ऐसी तरक्की का क्या फायदा जिससे नस्लें ही नष्ट हो जाएं।
कलीमुल्लाह खां साहब कहते हैं कि आम के अंदर वह विशेषता है जो इंसान में होती है।दो से मिलकर एक होना ही इसकी विशेषता है जैसे दुनिया में कोई दो इंसान एक से नहीं होते, उनके चेहरे, यहां तक कि एक-एक नस तक अलग होती है, वैसे ही आम की भी फितरत होती है।वे थोड़ा दुखी और चिंतित दिखाई दिए कि वैज्ञानिक और रिसर्च करने वाले लोग क्यों नही इन बातों पर ध्यान देते?उनके अनुसार जिस प्रकार इंसान दो से एक बनते हैं, वैसे ही आम की भी फितरत है।दो फूल और दो तरह के पेड़ मिलकर एक नए किस्म के आम को जन्म देते हैं।
आपके अनुसार आम से कई बीमारियों का इलाज भी किया जा सकता है।वे चाहते हैं कि रिसर्च द्वारा एक बार फिर से देसी इलाज को बढ़ावा मिलना चाहिए।वे इतना ज्यादा आमों को समझ चुके हैं कि कह सकते हैं कि आम उनके बच्चों के समान हैं। उनका कहना है कि पानी की कमी के बावजूद ऊसर भूमि में आम के पेड़ लगाकर आम की फसल की जा सकती है और इससे चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होगी।
सच में उनसे बात करके मुझे ऐसा ही लगा कि इतनी मोहब्बत इंसानों से और अपने देश से करने वाले वे शायद ऐसे शख्स हैं, जिनके जैसे बहुत कम लोग होंगे।
इस उम्र में भी उनके अंदर वह जोश, वह जज़्बा है कि वे सपना देख रहे हैं एक ऐसी दुनिया का जिसमें अमन-शांति हो और कहीं भी गरीबी न हो तथा क़ुदरत के साथ भी खिलवाड़ न हो, ऊसर भूमि को भी उपजाऊ बना देने का सपना रखने वाले इस शख़्स को ‘चुभन’ का सलाम।आपके साथ हुई मेरी पूरी बातचीत को आप ‘चुभन’ के पॉडकास्ट पर सुन सकते हैं।अंत में गोविंद माथुर जी की इन पंक्तियों को देना चाहूंगी-
“मेरे बाल ज़रूर सफेद हो गए हैं
पर सपने नहीं।
मेरे कदम थम से गये हैं
पर आंखें नहीं।
मेरी आँखों को यकीन है
मेरे सपनों के सच होने का।”
कलीमुलाह साहब के जजबे को सलाम
चुभन पर इतनी विभिन्नता से भरे कार्यक्रम सुनकर गर्व होता है कि हम भी इससे जुड़े हैं और आपके नियमित श्रोता हैं
खां साहब के दिल से निकली बात ज़रूर दूर तक जाएगी।भावना जी का आभार जो हमें हमेशा ही अलग अलग क्षेत्रों के व्यक्तित्व से मिलवाती हैं।यह आपका कार्य बहुत ही प्रशंसनीय तथा मिसाल के काबिल है।
सच मे सर आप खास ही हैं और आपको सुनकर हमें बहुत अच्छा लगा
इतना खास काम करने वाले व्यक्तित्व से हम अभी तक अपरिचित ही थे, धन्यवाद चुभन का जो हमें इस शख़्सियत से मिलवाया।