– अजय “आवारा”
उत्तर प्रदेश एवं देश की राजनीति में दो रेखाएं हैं, जो कहने को तो दो रेखाएं हैं, परन्तु इन दोनों के अस्तित्व को अलग कर के नहीं देखा जा सकता। या यू कहें कि एक रेखा का अस्तित्व ही दूसरी रेखा के अस्तित्व पर आश्रित है। विचार योग्य बात यह है कि हमारे देश की राजनीति में ऐसा क्या है जो देश एवं प्रदेश की राजनीति को दिशा से भटका देता है।
आखिर ऐसा क्या है, उत्तर प्रदेश की राजनीति में? क्या हम उत्तर प्रदेश में व्यक्ति की योग्यता या कार्यशैली को नकार देते हैं। अपितु हम व्यक्ति के धर्म, जाति एवं वर्ग के आधार पर वोट करते हैं और इसी तरह जो प्रत्याशी चुनाव में खड़े होते हैं, उन्हें भी मौका इन्हीं मानदंडों के आधार पर मिलता है? तो क्या हम यह मान लें कि हमारे लिए धर्म, जाति एवं वर्ग ही राजनीति का प्रमुख शस्त्र है। विजन या आगे कार्य करने की क्षमता हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती? क्या इस तरह राजनीति अपने उद्देश्य से भटक नहीं गई हैं?
इसे हमारी कुंठा कहें या मूर्खता। हमारा स्वार्थ कहें या संकीर्णता, कि हम स्वयं को जाति धर्म और वर्ग के आधार पर इस तरह बांध लेते हैं कि विकास, विजन सामाजिक उत्थान आदि से हम अनायास ही दूर हो जाते हैं। क्या यह सही है कि हम जाति वर्ग के आधार पर वोट देकर अपना ही मार्ग अवरुद्ध कर लें और जिन प्रत्याशियों को अवसर मिलता है, उसके आधार में भी यही सब बातें होती हैं, तो क्यों उन्हें चुनकर अपना भविष्य दांव पर लगा दें।
क्या उत्तर प्रदेश इस चुनाव में जाग पाएगा? क्या उत्तर प्रदेश इस चुनाव में संकीर्णता से ऊबर पाएगा? जाति एवं वर्ग दरकिनार कर भारतीयता के तौर पर सोच पाएगा? क्या उत्तर प्रदेश इस चुनाव में पूरे हिंदुस्तान के लिए एक मानदंड स्थापित कर पाएगा? जो उत्तर प्रदेश राजनीति में सत्ता की दिशा तय करता है, वहीं राजनीति के सिद्धांतों की दिशा क्यों नहीं तय कर सकता?
उदाहरण के लिए हाई कोर्ट में अपर शासकीय अधिवक्ता रामउग्रह शुक्ला जी का उदाहरण लीजिए, जिन्होंने कोरोना काल में जनसेवा के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया।अपनी जमापूंजी, जो उन्होंने अपने बच्चों के भविष्य के लिए जमा कर रखी थी,उसे भी समाज सेवा के लिए खर्च कर देने में आपने एक बार भी नहीं सोचा।देश ही नहीं विदेशों से भी आपको बहुत मान सम्मान मिला।परंतु मुझे आश्चर्य है कि ऐसे व्यक्ति को भी आगामी चुनावों के लिए प्रत्याशी घोषित नहीं किया जा रहा।रामउग्रह शुक्ला जी ने इस पूरे कोरोना काल में आम जनमानस का विश्वास जीता है।हम सब को ऐसे ही व्यक्तित्व को आगे लाने की आवश्यकता है जो राजनीति में आकर और विधानसभा सदस्य के रूप में चुनकर आने के बाद भी समाज के ज़रूरत मंद लोगों की मदद को खड़े रहें। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन्हें सिर्फ इस आधार पर चुनाव में मौका नहीं दिया जा रहा कि वे एक जाति या वर्ग विशेष से संबंध नहीं रखते। तो क्या हम यह मान लें कि आज की राजनीति में सेवा भाव का कोई मोल नहीं है? सिर्फ एक वर्ग विशेष से संबंध रखना ही हमारी योग्यता का मानदंड है? तो यह क्या हमारी मानसिकता के लिए कोई प्रश्न चिह्न नहीं है?
आगामी चुनाव इस मंथन का ही एक अवसर है।
यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा भारत में जन सेवा जैसा पावन कार्य भी भविष्य में सम्भावित लाभ को ध्यान में रख कर किया जाता है ।
आपका आभार सर,भविष्य में भी आप ऐसे ही मार्गदर्शन देते रहें।
jai bharat